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________________ प्रबुद्ध रौहिणेय--समीक्षात्मक अनुशीलन - डॉ० रामजी उपाध्याय छ: अंकों में प्रबुद्ध रोहिणेय नामक प्रकरण के रचयिता रामभद्र मुनि हैं। रामभद्र के गुरु जयप्रभ सूरी वादिदेव के शिष्य थे। इनका समय ईसा की बारहवीं शनी का अन्तिम भाग है। __नाट्यकथा के अनुसार रोहिणेय के पिता लोहखुर नामक डाकू ने मरते समय उसे शिक्षा दी कि महावीर स्वामी की वाणी कान में कहीं न पड़ जाये- इसका प्रयत्न करना, क्योंकि वह वाणी हमारे कुलाचार का विध्वंस कर देने वाली है। एक दिन रौहिणेय ने देखा कि वसन्तोत्सव के अवसर पर नागरिक प्रेयसियों के साथ मकरन्दोद्यान में क्रीड़ा कर रहे हैं। उसने निर्णय किया कि सर्वाधिक सुन्दरी का अपहरण करूं, क्योंकि-- वणिग्वेश्या कविर्भट्टस्तस्करः कितवो द्विजः । यापूर्वोऽर्थलाभो न मन्यते तदहवं या॥१.१३॥ उसने छिपकर किसी धनी की रमणीयतम सुन्दरी को अपने उपपति से बातें करते देखा। सुन्दरी मदनवती अपने निजी भाग्य से परम सन्तुष्ट थी। उसका उपपति उसके लिए निखग्रह सौभाग्य की सृष्टि कर रहा था। नायिका ने नायक से कहा कि पहले पुष्पावचय कर लें और फिर शीतल कदली गृह में क्रीड़ारस का आनन्द लें। उन दोनों में स्पर्धा हुई कि हम अलग-अलग दिशाओं में जाकर पुष्पावचय करते हुए देखें कि कौन अधिक फूल तोड़ लाता है। रोहिणेय ने नायिका को फूल तोड़ते हुए देखा पुष्पार्थ प्रहित भुजेऽनिलचलन्नोलाहिककाविष्कृतः सल्लावण्यलसत्प्रभापरिधिभिर्दोमलकूला कषः । ईषन्मेघविमुक्तविस्फुर दुरुज्योत्स्नाभरभ्राजित व्योमाभोगमगाङ्कमण्डलकलां रोहत्यमुष्याः स्तनः ॥१.२६।। रोहिणेय ने उपपति के दूर चले जाने पर नायिका का अपहरण करने की योजना बनाई और अपने साथी शबर से कहा कि इसके उपपति को किसी बहाने रोककर फिर आना । नायिका ने डाकू रोहिणेय का उससे परिचय पाकर शोर मचाना चाहा। डाक ने कहा कि यदि ऐसा किया तो तुम्हारा सिर काट डालूगा। उसके बाहर निकलने पर वह उसे कन्धे पर उठाकर भाग निकला कि उसे यथाशीघ्र पर्वत के गह्वर में प्रवेश कराऊ। उपपति ने लौटकर ढूंढ़ने पर भी जब नायिका को नहीं पाया तो उसे रोहिणेय के सेवक शबर से पूछने पर ज्ञात हुआ कि परिजनों से घिरा कोई क्रोधी पुरुष वृक्ष की ओट में निकट ही कुछ मन्त्रणा कर रहा है । उपपति ने समझा कि वह नायिका का पति है और मुझे मार डालने की योजना बना रहा है। वह डर कर भाग गया। दूसरे दिन राजगृह में किसी का अपहरण करना था। रोहिणेय के चर शबर ने पहले से ही ज्ञात कर लिया था कि कहां, क्या और कौन है । रोहिणेय भी घटनास्थली एक बार देख चुका था। सुभद्र सेठ, मनोरमा सेठानी और मनोरथ वर हैं। रात्रि के समय रोहिणेय शबर के साथ सेठ के घर के समीप पहुँचा। वर-वधू गृह प्रवेश के मुहूर्त की प्रतीक्षा में थे। गन्धर्व-वर्धापनक उत्सव में सोत्साह लगे हुये थे। पहले शवर उनके बीच जाकर नाचने लगा। सेठानी घर के भीतर सज्जा करने चली गई। फिर वामनिका का सतूर्य नृत्त हुआ । अन्त में रोहिणेय स्त्री बनकर आया । वह वेशभूषा से सेठानी के समान था। उसने वर से १. त्वरितमग्रतो भव । नो चेदन यासिधेनुकया शिरः कमांडपात पातयिष्यामि । २. कुसुममुकुटोपशोभितापट्टाककृत नीङिगकानना कूकमस्तबकाश्वितललाटा युवतिः कक्षान्त रेऽलक्षश्चीरिकासर्पश्च । जैन साहित्यानुशीलन १७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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