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________________ आचार्य सोमकीर्ति अपने समय के प्रभावशाली भट्टारक एवं राजस्थानी मनीषी थे, जिन्होंने दो बड़ी एवं पांच छोटी रचनायें निबद्ध की थीं। ब्रह्म यशोधर का समस्त जीवन ही साहित्य सेवा के लिये समर्पित था।' इन्होंने चुपई संज्ञक काव्य लिखा, नेमिनाथ, वासपूज्य एवं अन्य तीर्थंकरों के स्तुतिपरक गीत लिखे । ये सभी कवि जैन साहित्य के तो जगमगाते नक्षत्र हैं, साथ ही हिन्दी के भी जाज्वल्य तारागण हैं। ब्रह्म गूणकीर्ति १६ वीं शताब्दी के ऐसे सन्त कवि हैं जिनके सम्बन्ध में साहित्यिक जगत् अभी तक अनजान-सा है। राजस्थानी विदोते हुए भी उनकी साहित्यिक सेवायें उपेक्षित बनी हुई हैं । प्रस्तुत लेख में उन्हीं के सम्बन्ध में परिचय दिया जा रहा है। ब्रह्म गणकीति महाकवि ब्रह्म जिनदास के कनिष्ठतम शिष्य थे। अपने गुरु के अन्तिम समय में ये उनके सम्पर्क में आये ये अपनी अदभत काव्य-प्रतिभा के कारण अल्प समय में ही उन्होंने अपना विशिष्ट स्थान बना लिया था। स्वयं ब्रह्म गणकीर्ति ने अपने गुरु का निम्न प्रकार स्मरण किया है श्री ब्रह्मचार जिणदास तु, परसाद तेह तणो ए। मनवांछित फल होइ तु, बोलीइ किस्यु घणु ए॥ कविवर ब्रह्म गुणकीति की अभी तक एक ही कृति हमारे देखने में आई है, और वह है 'रामसीता रास' जो एक लघु प्रबन्ध पित कति के अतिरिक्त कवि ने और कितनी कृतियां निबद्ध की थीं इसके सम्बन्ध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता किन इनकी काव्य-प्रतिभा को देखते हुए इनकी और भी कृतियां होनी चाहिए। ब्रह्म जिनदास ने सम्वत् १५०८ में विशालकाय की रचना की थी लेकिन उस युग में पाठकों की रामकथा के अध्ययन की ओर विशेष रुचि थी इसलिये ब्रह्म गुणकीति को लष रूप में 'रामसीतारास' को निबद्ध करना पड़ा। रामसीतारास' एक खण्ड काव्य है जिसमें राम और सीता के जन्म से लेकर लंका विजय के पश्चात् अयोध्या प्रवेश एवं मिलेक तक की घटनाओं का संक्षिप्त वर्णन किया गया है। इसमें १२ ढालें हैं जो ११ अध्यायों का काम करती हैं। जैन कवियों ने काल में अपनी सभी काव्यकृतियों में इसी परम्परा को निभाया था। 'रामसीतारास' एक गीतात्मक काव्य है जिसकी ढालों को गा करके पाठकों को सुनाया जाता था। समय प्रस्तत काव्य का रचना-काल तो मिलता नहीं जिससे स्पष्ट रूप से किसी तथ्य पर पहुंचा जा सके लेकिन ब्रह्म जिनदास यि होने के कारण 'रामसीतारास' की रचना संवत् १५४० के आसपास होनी चाहिए । जिस गुटके में 'रामसीतारास' का संग्रह किया सावन भी संवत १५८५ का लिखा हुआ है। इसके अतिरिक्त ब्रह्म जिनदास का संवत् १५२० तक का समय माना जाता है। प्रस्तुत ति उनकी मत्यु के पश्चात् की रचना होने के कारण इसका संवत् १५४० का ही समय उचित जान पड़ता है । इस तरह प्रस्तुत कृति के मआधार पर ब्रह्म गुणकीति का समय भी संवत् १४९० से १५५० तक का निर्धारित किया जा सकता है। भाषा रास की भाषा राजस्थानी है । यद्यपि गुजरात के किसी प्रदेश में इसकी रचना होने के कारण इस पर गुजराती शैली का प्रभाव भी स्पष्ट दष्टिगोचर होता है लेकिन क्रियापदों एवं अन्य पदों को देखने से यह तो निश्चित ही है कि कवि को राजस्थानी भाषा से अधिक लगाव था। विचारीउ (विचार कर), मांडीइ (मांडे), आवीमाये (आये), मानकी (जानकी), घणी (बहुत), पाणी (हाथ), आपणा (अपना), घालपि (डालना), जाणुए, बोलए, लीजइ, वापडी जैसे क्रियापदों एवं अन्य शब्दों का प्रयोग हुआ है। -डॉ० कासलीवाल, प्रकाशक-वही। १. देखिये "माचार्य सोमकीर्ति एवं ब्रह्म यशोधर" २. -वही-, पृष्ठ संख्या १५६. १४८ आचार्य रत्न श्री वेशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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