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________________ सतरी-यह लोक का संख्यापरफ काव्यरूप है। इसमें सत्तर की संख्या का प्रयोग होता है । सत्रहवीं शती में कविवर सहज. कीति" द्वारा इस काव्यरूप का प्रयोग हुआ है। इसमें सप्त व्यसनों का सुन्दर विवेचन मिलता है। इस प्रकार हिन्दी के जैन कवियों द्वारा अपनी भक्त्यात्मक, आध्यात्मिक, नीति और उपदेशपरक भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए उपयुक्त अनेक संख्यापरक काव्यरूपों का प्रयोग हुआ है। इनमें अनेक काव्यरूप परम्परानुमोदित हैं किन्तु अनेक काव्यरूपों के व्यवहार का दायित्व इन जैन कवियों व आचार्यों पर निर्भर करता है जिन्होंने जनसाधारण में कल्याणकारी भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए इन्हें गृहीत किया। उनके इस प्रयत्न से काव्यरूप परम्परा भी प्रोन्नत हुई है। १. आनन्दघन अष्टपदी (श्री यशोविजय उपाध्याय), २. दर्शनाष्टक (श्री विद्यासागर), ३. मूढाष्टक (भगवतीदास), ४. भवसिन्धु चतुर्दशी (बनारसीदास), ५. ज्ञानछन्द चालीसा (भवानीदास) ६. चौबीसी (जिनहर्ष), ७. सुबिद्धि चौबीसी (भैया भगवतीदास), ८. जैन चौबीसी (बुलाकी दास), ६. हिन्दी काव्यरूपों का अध्ययन, पृष्ठ १२५ (डा० रामबाबू शर्मा), १०. स्थूलभद्र छत्तीसी (कुशल लाभ), ११. भजन छत्तीसी (उदयराज जती), १२. उपदेश छत्तीसी (जिनहर्ष), १३. सूरधा छत्तीसी (भवानी दास), १४. शिव पचीसी (बनारसीदास), १५. समाधि पचीसी (रामचन्द्र), १६. वैराग्य पचीसिका (भैया भगवतीदास), १७. धर्म पचीसी (ध्यानतराय), १८. हुक्का पचीसी (भूधरदास), १६. राजुल पचीसी तथा फुलमाला पचीसी (विनोदी लाल), २०. पाखंड पंचासिका (सुन्दरदास), २१. आध्यात्मिक पंचासिका (ध्यानतराय), २२. संबोधि पचासिका (बिहारीदास), २३. मदनमोहन पंच श ती (क्ष त्रपती), २४. सिंहासन बतीसी (हरिकलश), २५. ध्यान बत्तीसी (बनारसीदास), २६. कक्का बत्तीसी (अजयराज पाटनी), २७. कक्का बत्तीसी (भवानीदास), २८. चेतन बत्तीसी तथा उपदेश बत्तीसी (लक्ष्मीबल्लभ), २६. मन बत्तीसी और स्वप्न बत्तीसी (भैया भगवतीदास), ३०. कर्म बत्तीसी (अचलकीर्ति), ३१. बत्तीसी (मनराम), ३२. हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि, पृ० २०४ (डा. प्रेम सागर जैन), ३३. आनन्दधन बहत्तरी (आनन्दघन), ३४. रंग बहत्तरी (जिनरंग सूरि), ३५. हिन्दी का बारहमासा साहित्य : उसका इतिहास तथा अध्ययन, पृष्ठ १० (डा. महेन्द्रसागर प्रचंडिया), ३६. जैन कवियों के हिन्दी काव्य का काव्यशास्त्रीय मल्यांकन, पृष्ठ ५१ (डा० प्रचंडिया), ३७. नेमिनाथ बारहमासा अर्थात् नेमिनाथ चतुष्पदिका (विनयचन्द्र सूरि), ३८. नेमिनाथ बारहमासा (रत्नकीर्ति), ३६. नेमिनाथ बारहमासा (कुमुदचन्द्र), ४०. लघु सीता बारहमासा (भगवतीदास), ४१. राजमती बारहमासा (जिनहर्ष), ४२. नेमिराजुल बारहमासा (लक्ष्मीबल्लभ), ४३. नेमिराजुल बारहमासा (विनोदीलाल), ४४. अध्यात्म बारहमासा और सुमति कुमति बारहमासा, नेमिनाथ बारहमासा (भवानी दास), ४५. नेमिनाथ बारहमासा (शान्ति हर्ष), ४६. व्रज रत्न मुनिवर का बारहमासा (नैनसुखदास), ४७. हिन्दी काव्यरूपों का अध्ययन, पृष्ठ १२२ (डा. रामबाबू शर्मा) ४६. प्राचीन काव्यों की परम्परा, पुष्ठ १३ (श्रा अगर चन्द्र नाहटा), ४६. अष्टापद तीर्थ बावनी (जयसागर), ५०. नाम बावनी (छीहल कवि), ५१. गुण बावनी (उदयराज जती), ५२. अध्यात्म बावनी (हीरानन्द सूरि), ५३. ज्ञान बावनी (बनारसीदास), ५४. हितोपदेश बावनी (हेमराज), ५५. चिन्तामणि मान बावनी (मनोहरदास), ५६. जसराज बावनी (जिनहर्ष), ५७ प्रबोध बावनी (जिनरंग सूरि), ५८. बावनी (खेतल कवि), ५६. दहा बावनी (लक्ष्मीबल्लभ), ६०. पदम शतक, भूमिका पृष्ठ ५ डा. महेन्द्र सागर प्रचंडिया), ६१. चन्द्र शतक (त्रिभुवन), ६२. परमार्थी शतक (रूपचन्द्र पौडे), ६३. फुटकर शतक (भवानीदास), ६४. जैन शतक (भधरदास), ६५. परमात्म शतक (भैया भगवतीदास), ६६. उपदेश दोहा शतक (हेमराज), ६७. साम्य शतक (यशोविजय), ६८. छन्द शतक (वृन्दावनदास), ६६. देवानुराग शतक (बुधजन), ७०. देवानुराग शतक (बासी लाल), ७१. चमा शतक (चम्पाबाई), ७२. पदम शतक (पदमचन्द्र जैन भगत जी), ७३. जिन जन्ममहोत्सव षट्पद (विद्यासागर), ७४. जैन कवियों के हिन्दी काव्य का काव्यशास्त्रीय मूल्यांकन, पृष्ठ ६४ (डा. महेन्द्र सागर प्रचंडिया), ७५. सुन्दर सतसई (सुन्दरदास), ७६. बुधजन सतसई (कविवर बुधजन), ७७. व्यसन सत्तरी (सहजकीति), ७८. जैन कवियों के हिन्दी काव्य का काव्यशास्त्रीय मूल्यांकन, पृ० ६४ (डा० महेन्द्रसागर प्रचंडिया)। १४६ आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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