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________________ लोक-जीवन और संस्कृति (क) धार्मिक विश्वास - अपभ्रंश के सभी कथा - काव्य जैन कवियों द्वारा रचित हैं । इसलिए यह स्वाभाविक ही है कि इनमें २४ तीर्थंकरों का स्तवन तथा उनके द्वारा निर्दिष्ट धर्म का स्वरूप एवं मोक्ष प्राप्ति का उपाय वर्णित है। किन्तु मध्यकालीन देवी-देवता विषयक मान्यताओं का उल्लेख भी इन काव्यों में मिलता है। यही नहीं, जल (वरुण) देवता का पूजन, जल देवता का प्रत्यक्ष होना, संकट पड़ने पर देवी-देवताओं द्वारा संकट निवारण आदि धार्मिक विश्वास कथाओं में लिपटे हुए परिलक्षित होते हैं । (ख) शकुन-अपशकुन अपभ्रंश के कथा-काव्यों में शकुन-अपशकुन तथा स्वप्न सम्बन्धी विश्वास लगभग सभी रचनाओं में मिलते हैं । भविसयत्त कथा में जब भविष्यदत्त मेनागद्वीप में अकेला छोड़ दिया जाता है, तब वह वन में भटकता हुआ थककर सो जाता है। दूसरे दिन वह फिर आगे बढ़ता है तभी उसे शुभ शकुन होने लगते हैं ( भ० क० ३, ५) । विलासवइ कथा में भी शकुन का वर्णन है (ग) जाति सम्बन्धी अपभ्रंश की इन कथाओं में जाति-विषयक सामान्य विश्वास भी मिलते हैं। इन विश्वासों में मुख्य हैंरात को भोजन न करना, देव दर्शन एवं पूजन के बिना सुबह उठकर भोजन न करना, विविध देव देवियों की पूजा करना और वृत्त-विधान का पालन करना आदि । "एतहि सारसुखु वित्थरियउ । इति सुमिण पोषण दाहिण वादु फुरि तह लोणु । सहणु सत्थु अणुकूलउ दीसइ, रन्ने वि कन्नय लाहु पयासइ ॥" (५, २४) (घ) सामाजिक आचार-विचार-अपभ्रंश कथा - काव्यों में सामाजिक आचार-विचारों का जहां-तहां समावेश हुआ है । दोहला होने पर सभी की मनोकामनाएं पूर्ण की जाती थीं। बालक जन्म का महोत्सव किया जाता था। विवाह का कार्य प्रायः ब्राह्मण लोग करते थे । प्रेम-विवाह भी होते थे। विलासवती का सनत्कुमार के साथ ऐसा ही प्रेम विवाह हुआ था। विवाह कार्य प्रमुख सामाजिक उत्सव के रूप में किये जाते थे । जल-विहार, जल-क्रीड़ा, वन विहार होते थे । राजपूतकालीन प्रभाव भी दृष्टिगोचर होता है। आखेट क्रीड़ा करना, बलि देना, शूली पर चढ़ाना आदि बातें अपभ्रंश के कथा- काव्यों में नहीं मिलतीं । जैन साहित्यानुशीलन Jain Education International अपभ्रंश साहित्य हिन्दी के लिए अमृत की घूंट के समान है। इसका कारण स्पष्ट है। भाषा की दृष्टि से अपभ्रंश साहित्य प्राचीन हिन्दी का एक महत्त्वपूर्ण मोड़ प्रस्तुत करता है। जब प्राकृत भाषा के अति उत्कर्ष के बाद जनता का सम्पर्क जनपदीय संस्कृति से हुआ और उसे साहित्यिक मान्यता प्राप्त हुई, तब अपभ्रंश भाषा साहित्यिक रचना के योग्य कर ली गई । अपभ्रंश एवं अवहट्ट भाषा ने जो अद्भुत विस्तार प्राप्त किया उसकी कुछ कल्पना जैन भंडारों में सुरक्षित साहित्य से होती है। अपभ्रंश भाषा के कुछ ही ग्रन्थ मुद्रित होकर प्रकाश में आये हैं । और भी सैकड़ों ग्रन्थ अभी तक भंडारों में सुरक्षित हैं एवं हिन्दी के विद्वानों द्वारा प्रकाश में आने की बाट देख रहे हैं । अपभ्रंश साहित्य ने हिन्दी के न केवल भाषा रूप साहित्य को समृद्ध बनाया, अपितु उनके काव्यरूपों तथा कथानकों को भी पुष्पित एवं पल्लवित किया। इन तत्त्वों का सम्यक् अध्यापन अभी तक नहीं हुआ है, जो हिन्दी के सयोगपूर्ण साहित्य के लिए आवश्यक है क्योंकि प्राचीन हिन्दी सहस्रों शब्दों की व्युत्पत्ति और अर्थ अपभ्र भाषा में सुरक्षित है। इसी के साथ-साथ अपभ्रंश कालीन समस्त साहित्य का एक विशद इतिहास लिखे जाने की आवश्यकता अभी बनी हुई है । ( डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल : पं० परमानन्द जैन शास्त्री की पुस्तक जैन-ग्रंथ-प्रशस्तिसंग्रह के प्राक्कथन के अंशों से संकलित । ) For Private & Personal Use Only १११ www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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