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________________ ३. हरिभद्र उत्तरयुगीन प्राकृत-कथा-साहित्य हरिभद्र के पश्चात् प्राकृत-कथा-साहित्य निरन्तर विकास के मार्ग पर बढ़ता गया तथा नाना रूपों को ग्रहण कर समृद्ध रूप में प्रतिष्ठित हुआ। इस युग की प्रमुख कृतियां निम्न हैं (क) कुवलयमालाकहा- इसकी रचना आचार्य हरिभद्र के शिष्य उद्योतन सूरि ने की। इनका समय वीं शताब्दी है । यह कथा साहित्यिक स्वरूप की दृष्टि से चम्पू विधा के अन्तर्गत आती है, यद्यपि यह एक कथा-ग्रन्थ है। इसमें पांच कषायों - काम, क्रोध, मान, माया, लोभ-- को पात्र रूप में उपस्थित किया गया है। (ख) निव्वाण लीलावईकहा- जिनेश्वर सूरि ने इसकी रचना वि० सं० १०८० और १०६५ के मध्य की । इसका मूल रूप अनुपलब्ध है, संस्कृत में संक्षिप्त रूप प्राप्त होता है । (ग) कहा कोसपगरण - इसके रचयिता भी जिनेश्वर सूरि हैं जिन्होंने वि० सं० १९०८ में इसकी रचना की । (घ) संवेग रंगशाला - जिनेश्वर सूरि के शिष्य जिनचन्द्र सूरि इस कथा - ग्रन्थ के रचयिता हैं। इसकी रचना वि० सं० ११२५ में की गई। (ङ) णाणपंचमीकहा - वि० सं० ११०९ से पूर्व महेश्वर सूरि ने इसकी रचना की। (च) कहारयणकोस - इस ग्रन्थ की रचना वि० सं० १९५८ में की गई। इसके रचयिता देव भद्रसूरि या गुणचन्द्र हैं । (छ) नम्मया सुन्दरीकहा— महेन्द्रसूरि ने वि० सं० १९८७ में इसकी रचना की । (ज) कुमारवाल वडिबोह - चारित्रिक निष्ठा को जाग्रत करने के लिए सोमप्रभ सूरि ने इस कथा - ग्रन्थ की रचना की । इसका रचना - काल वि० सं० १२४१ है । (झ) आख्यानमणिकोस- इसमें लघु कथाओं का संकलन किया गया है। इसके रचयिता नेमिचन्द सूरि हैं। आम्रदेव सूरि ने ईस्वी सन् १९३४ में इस पर टीका लिखी । (ञ) जिनदशास्थान- इसके रचनाकार आचार्य सुमति सूरि हैं जिन्होंने इसकी रचना वि० सं० १२४६ से पूर्व की (ट) सिरिसिरिवाल कहा- इसके रचयिता रत्नशेखर सूरि हैं। इसका रचना-काल वि० सं० १४२८ है । (ठ) रयणसेहर निवकहा- जिनहर्ष सूरि ने चित्तौड़ में वि० सं० १४८७ में इसकी रचना की। यह जायसी के पद्मावत का पूर्व रूप है । इसमें पर्व की तिथियों पर किये गये धर्म का फल वर्णित है । (ड) महिवालकहा - इसके रचयिता वीरदेव गणि ने इस कथा-ग्रन्थ की रचना १५वीं शताब्दी के मध्य में की। (ढ) पाइअकहा संगहो - पद्मचन्द्र सूरि के अज्ञात नामा शिष्य ने इस ग्रन्थ की रचना की, जिसका समय वि० सं० १३९८ से पूर्व का है। इन उपरोक्त कथा-ग्रन्थों के अतिरिक्त भी कई कथा-ग्रन्थ प्राकृत भाषा में रचे गये । उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि प्राकृतकथा-साहित्य पर्याप्त समृद्ध है। यह भारतीय कथा-साहित्य के इतिहास के लिए महत्वपूर्ण कड़ी है। प्राकृत-कथा-साहित्य का महत्त्व रचनाओं की दृष्टि से प्राकृत कथा साहित्य जितना विशाल है उसमें शैली एवं विषय-वैविध्य भी उतना ही है प्राकृत-कथासाहित्य प्राचीन सामाजिक, सांस्कृतिक, भाषा, कला आदि का एक अक्षय कोश है जिसमें भाषा, कला, साहित्य, संस्कृत, भूगोल आदि से सम्बन्धित जो सामग्री उपलब्ध होती है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। ज्यों-ज्यों हम इस साहित्य का मन्थन करते हैं त्यों-त्यों हमें इसमें से एक से एक अमूल्य एवं अलभ्य रत्नों (सामग्री) की उपलब्धि होती है। प्राकृत-कथा-साहित्य का महत्त्व संक्षिप्त रूप से इस प्रकार है १. प्रेमकथाओं के विकास का आधार - प्राकृत कथाओं से ही अन्य-संस्कृत, अपभ्रंश, हिन्दी-भाषाओं में प्रेम-कथाओं का विकास 'हुआ । 'नायाधम्मकहाओ' में मल्ली का एक आख्यान मिलता है जिससे छः राजकुमार प्रेम करते हैं । 'तरंगवती' प्रेमाख्यानक काव्य में चित्र के माध्यम से प्रेमी की प्राप्ति होती है। 'लीलावईकहा' भी एक उत्कृष्ट प्रेम-कथा है। 'रवणसेहरनिवका' भी एक सुन्दर प्रेम-कथा है जो कि पद्मावत का पूर्व रूप है । इनके अतिरिक्त नियुक्ति, टीका, भाष्य, चूर्णि आदि में एक से एक सुन्दर कथाएं निबद्ध हैं जिनके आधार पर पंचतंत्र इत्यादि लिखे गये । इन कथाओं में प्रेम का उदय स्वप्न-दर्शन, चित्र-दर्शन, रूप श्रवण, गुण-श्रवण आदि के द्वारा दिखाया गया है। सामान्यतः इन कथा - काव्यों के नायक एवं नायिका उच्चवर्गीय न होकर मध्यवर्गीय हैं। २. चम्पूकाव्य के स्वरूप का प्रतिनिधि - गद्य-पद्य मिश्रित काव्य को चम्पूकाव्य कहते हैं। इसमें भावों का निरूपण पद्य एवं विचारों का निरूपण गद्य में किया जाता है जिनका सम्बन्ध क्रमशः हृदय एवं मस्तिष्क से है। प्राकृत-कथा-साहित्य की अधिकांश कृतियों में यह गुण विद्यमान है। प्राप्त कथा-ग्रन्थों में कथाओं को प्रभावोत्पादक बनाने के लिए कथाकारों ने गद्य में पद्य एवं पद्य में गद्य का मिश्रण किया है । आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ १०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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