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राम-लक्ष्मण तथा बालि का युद्ध वाल्मीकीय रामायण तथा आनन्द रामायण में बालि-सुग्रीव की शत्रुता के कारण है जो उनके पारिवारिक अनैतिक सम्बन्धों (बालि का सुग्रीव की पत्नी में लिप्त रहना)' तथा राज्याधिकार विषयक कलह (बालि दुन्दुभि के पुत्र मायावी या दुर्मद राक्षस से युद्ध करते समय, उसका वध करने गुफा में जाता है तथा सुग्रीव भी पीछे-पीछे जाता है। दुन्दुभि द्वारा गुफा का द्वार बन्द कर दिया जाता है। बालि दुन्दुभि का वध कर देता है जिससे रक्त गुफा से बाहर निकलता है। लेकिन बालि के गुफा से न लौटने पर सुग्रीव उसे मरा समझ लेता है, तथा लोगों द्वारा कहने पर राज्य पर बैठ जाता है। इस पर बाद में बालि आकर सुग्रीव से झगड़ा करता है तथा नगरी से निकाल देता है) के कारण है परन्तु जैन ग्रंथ उत्तरपुराण में इस शत्रुता को नवीन रूप प्रदान किया गया है जो कतिपय राजनीति से प्रभावित प्रतीत होता है। उक्त वर्णन में लक्ष्मण रावण को मारना चाहते हैं। बालि तथा रावण में मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध हैं । अतः लक्ष्मण की रावण के विरुद्ध युद्ध में विजय तब ही सम्भव है जब वह शत्रु (रावण) के मित्र (बालि) का नाश कर दे। बालि से स्थापित करने के लिए वे अपने दूत के द्वारा (बालि से) महामेघ नामक हाथी मंगाते हैं जिसे देने से बालि इन्कार कर देता है।
धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक कारणों से हुए परिवर्तन के अतिरिक्त जैन ग्रंथों व आनन्द रामायण में किचित् ऐसे भी परिवर्तन हैं जो मूल साहित्य (वा० रा०) से न लेकर अन्य साहित्य के प्रभाव से ग्रन्थ में बणित किए गए हैं। जैन साहित्य तथा आनन्द रामायण में वणित सीता-जन्म, सीता-त्याग एवं लव-कुश युद्ध का प्रसंग वाल्मोकीय रामायण से अर्वाचीन साहित्य से प्रभावित प्रतीत होता है । जैन ग्रंथ पउमचरियम्, जैन रामायण में सीता तथा भामण्डल का जनक तथा विदेहा से जन्म वाल्मीकीय रामायण के प्रभाववश नहीं है, वरन् ब्रह्माण्ड पुराण, विष्णु पुराण, वायु पुराण में भानुमान जनक का पुत्र कहा गया है । अनुमान है, उसीके प्रभाव से ग्रन्थ में ऐसा वर्णन किया गया हो ।
गुणभद्र-कृत उत्तरपुराण में वणित सीता की जन्म-कथा जिसमें सीता को रावण की पुत्री कहा गया है", का विकास वाल्मीकीय रामायण की राम-कथा से नहीं है, वरन् उक्त वृत्तान्त सर्वप्रथम वसुदेवहिण्डि में उल्लिखित है जिसका विकास उत्तर पुराण में है।
जैन रामायण तथा आनन्द रामायण में सीता-त्याग के प्रसंग में सपत्नियों अथवा कैकेयी के आग्रह करने पर सीता द्वारा बनाए गए रावण के चित्र को देखकर राम द्वारा उसके (सीता के) त्याग का उल्लेख सर्वप्रथम हरिभद्रसूरि-कृत उपदेश-पद नामक संग्रह-गाथा में मिलता है, उसीके प्रभाववश उपयुक्त ग्रन्थों में इसका वर्णन किया गया है। आनन्द रामायण में इसी प्रसंग में धोबी के कथनका समावेश कथा-सरित्सागर के प्रभाववश किया गया है।'
लव-कुश युद्ध का उल्लेख करते हुए आनन्द रामायण में कहा गया है कि लव माता (सीता) त्याग के प्रतिकार के लिए राम से शत्रता स्थापित करने तथा सीता के सौभाग्यशयन व्रत की पूर्ति के लिए राम के बगीचे से स्वर्ण-कमल तोड़कर लाता है। उक्त कथा का उल्लेख कथासरित्सागर से प्रभावित५ प्रतीत होता है जिसमें वाल्मीकि द्वारा पूजित शिवलिंग से खेलने के कारण लव कुश को प्रायश्चित्तस्वरूप कुबेर के सरोवर से स्वर्ण कमल तथा उनकी वाटिका से मन्दार-पुष्प लाकर उससे शिवलिंग-पूजा की आज्ञा वाल्मीकि द्वारा दी जाती है।
राम-कथा के परिवर्तन व परिवर्धन में उपर्युक्त कारणों के अतिरिक्त कतिपय गौण कारण भी हैं। गौण कारणों में वाल्मीकीय १. (क) वा०रा०, किष्किन्धा कांड, सर्ग १०
(ख) आ०रा०, सारकाण्ड, सर्ग ८ २. वही, सर्ग: ३. गुणभद्रकृत उत्तरपुराण, ६८/४४४-४८ ४. वही, ६८/४४६-५८ ५. पउमरियम्, पर्व २६ ६. ब्रह्माण्डपुराण, ३-६४/१८ (ख) विष्णु पुराण, ४/५/३० (ग) वायुपुराण, ८६/१८ ७. गुणभद्रकृत उत्तरपुराण, पर्व ६८ ८.बल्के कामिल : रामकथा, प० ३६६ १. जैन रामायण, पृ० ३१५-१८ १०. आनन्द रामायण, सर्ग ५/३ ११. कामिल बुल्के : 'रामकथा', पृ० ६६५ १२. आनन्द रामायण, ३/२८-३० १३. कथासरित्सागर, ९/१/६६ १४. आनन्द रामायण, जन्मकांड, सर्ग ६-८ १५. कथासरित्सागर, ६/१/९५-११२
जैन साहित्यानुशीलन
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