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संदेश' इसी स्थानसे प्रकाशित होता है। यहाँके 'ऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम' में जैनधर्म और संस्कृत भाषाके साथ ही साथ वर्तमान प्रणालीकी शिक्षा दी जाती है। इस स्थानके 'सरस्वती भवन' में जैनधर्मके ग्रन्थोंका अच्छा संग्रह है।
व्रजमंडलमें जैनधर्मका सबसे बड़ा केन्द्र आगरा है। यहाँ पर मध्यकालसे ही जैन धर्मावलम्बियोंकी प्रचुर संख्या रही है। जैन-ग्रन्थकार तो अधिकतर आगराके ही हुए हैं। इस समय वहाँ जैनधर्मको अनेक संस्थायें हैं, जो उपयोगी कार्य कर रही हैं। वहाँका जैन कालेज ग्रन्थभंडार भी प्रसिद्ध है।
मथुराके कंकाली टीलाका जैनकेन्द्र, जो 'देव निर्मित स्तूप' तथा अन्य स्तूपों और मन्दिर-देवालयोंके कारण विगतकालमें इतना प्रसिद्ध रहा था, इस समय वीरान पड़ा हआ है। आश्चर्यकी बात यह है, जिस कालमें वह नष्ट हआ. उसके बादसे किसीने उसका पनरुद्धार कराने की ओर ध्यान नहीं । सेठोंने भी उसके लिये कुछ नहीं किया, जबकि उन्होंने 'चौरासी' के सिद्ध स्थलका पुनरुद्धार कराया था। वास्तविक बात यह है कि कई शताब्दियों तक उपेक्षित और जड़ पड़े रहने के कारण कंकाली टीलाको गौरवगाथाको लोग भूल गये थे। मथुराके सेठोंके उत्कर्ष-कालमें भी यही स्थिति थी। यदि उस समय उन्हें इस स्थलकी महत्ताका बोध होता, तो वे अपने विपुल साधनोंसे वहाँ बहुत कुछ कर सकते थे ।
___ अबकी बार मथुरामें श्रीमहावीर जयन्तीका जो समारोह हुआ था, उसकी अध्यक्षता करने के लिए मझे आमंत्रित किया गया यद्यपि मैं जैन धर्मावलम्बी नहीं है। मैंने उस अवसरका सदुपयोग कंकालीकी गौरव-गाथा सुनाने में किया। उपस्थित जनसमुदायने मेरी बात बड़े कौतूहलपूर्वक सुनी। उन्हें इस बातका विश्वास नहीं हो रहा था कि मथरामें किसी समय इतने महत्त्वका स्थल था। उत्सवकी समाप्तिके पश्चात् अनेक व्यक्तियोंने मुझसे पूछताछ की। जब मेरे बतलाये हुए ऐतिहासिक प्रमाणोंसे उन्हें विश्वास हो गया, तब वे उक्त स्थलका पुनरुद्धार करानेको व्यग्र होने लगे। उसी कालमें मुनि विद्यानन्दजी मथुरा पधारे थे। उनके समय इस चर्चाने और जोर पकड़ा। अब ऐसी स्थिति बन गई है कि निकट भविष्यमें इस पुरातन स्थलका पुनरुद्धार हो सकेगा।
इतिहास और पुरातत्त्व : ३३
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