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ओसियां
डा० ब्रजेन्द्रनाथ शर्मा ओसियाका वर्तमान ग्राम जोधपुरसे ३२ मील उत्तर-पश्चिममें स्थित है। प्राचीन शिलालेखों एवं प्रशस्तियों में इसका नाम उपेश, उपकेश, उवसिशल आदि मिलता है। ओसियाके प्राचीन इतिहासके बारेमें विशेष जानकारी प्राप्त नहीं है। परन्तु इतना ज्ञात है, कि आठवीं शताब्दीमें यह प्रतिहार साम्राज्यमें था। प्रतिहारोंके समयके बने लगभग एक दर्जन मन्दिर आज भी वहाँ विद्यमान हैं, जो उस समयकी उच्चतम भवन निर्माण कलाके परिचायक हैं। प्रतिहारोंकी शक्तिका ह्रास हो जाने पर ओसियां विशाल चौहान साम्राज्यका एक अंग बन गया था। बारहवीं शताब्दीके उत्तरार्धमें यह चौहान राजा कुमार सिंहके शासनमें था। इस समय तक यह एक विशाल नगरके रूपमें परिवर्तित हो चुका था और इसकी सीमायें दूर-दूर तक फैल गई थीं। उत्थानके बाद पतन प्रकृतिका शाश्वत नियम है । यही हाल ओसियांका भी हुआ ।' उपकेशगच्छप्रबन्ध'से विदित होता है कि तुर्की सेना इस स्थानसे सन् ११९५में होकर गुजरी और उसने इस महत्त्वपूर्ण एवं सुन्दर नगरको नष्ट कर डाला। यहाँके निवासी ओसवाल जैनी भी इसे छोड़कर दूर-दूरको पलायन कर गये।
__ मध्य प्रदेशमें स्थित खजुराहोकी भाँति ओसियां भी स्थापत्य एवं मूर्तिकलाके लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। खजुराहोकी भांति यहाँ भी हिन्दू एवं जैन मन्दिर हैं। ओसियाँके कई मन्दिर तो खजुराहोके मध्यकालीन मन्दिरोंसे कई शताब्दी प्राचीन हैं। उत्तरी भारतमें एक ही स्थान पर इतने अधिक मन्दिरोंका समूह खजुराहोके अतिरिक्त उड़ीसामें भुवनेश्वरमें ही प्राप्त है। परन्तु ओसियां में ही पंचायतन मन्दिरोंकी शैली सर्व प्रथम यहाँके हरिहर मन्दिर प्रस्तुत करते हैं। इन पर उत्कीर्ण देव प्रतिमाओंका अब हम संक्षेपमें वर्णन करेंगे। हरिहर मन्दिर नं. १ ( चित्र १)
यह मन्दिर ओसिया ग्रामके बाहर अलग स्थित है। मन्दिरके गर्भगृहमें कोई प्रतिमा नहीं है, परन्तु द्वार-शीर्षके ऊपर गरुडारूढ़ विष्णु की प्रतिमा है । इसके नीचे चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु तथा केतु आदि नवग्रहोंका अंकन है। द्वार शाखाओं पर बेल-बूटे, नाग-दम्पतियों तथा नीचे गंगा व यमुना का अपनी सेविकाओंके साथ चित्रण है। इसके बांई ओर ही भीगी वेणियोंसे जल निचोड़ती एक सुन्दरी विशेष रूपसे दर्शनीय है । इस मन्दिरके बाह्य भाग पर नीचे वाली लाईनमें अपने वाहन भैसे पर विराजमान तथा हाथमें खट्वांग लिये यमको मूर्ति है। इससे आगे गणेशकी प्रतिमा है। मध्यमें त्रिविक्रमकी कलात्मक प्रतिमा है जिसमें उनका बायां पैर ऊपर उठा हुआ है। इससे आगे चन्द्रकी बैठी मूर्ति है, जिनके शीर्षके पीछे अर्द्ध-चन्द्र स्पष्ट है। अगली ताखमें अग्निकी मूर्ति है, जिनके पीछेसें ज्वाला निकल रही है। यह अपने वाहन मेढे पर विराजमान है। इस मन्दिरके पीछे ऐरावत हाथी पर बैठे इन्द्र हैं और मध्यमें विष्णु तथा शिवको सम्मिलित प्रतिमा हरिहरकी है ( चित्र २)। यह सुन्दर प्रतिमा कलाकी दृष्टिसे अनुपम है। इनके दाहिनी ओर त्रिशूलपुरुष तथा नन्दि और बाईं ओर गरुड़ है ( चित्र ३ ) । इनसे आगे सूर्यकी स्थानक तथा १८ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ
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