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इसमें नन्दी पर सवार शिव पार्वतीको अपनी जंघा पर लिए बैठे हैं, दाईं ओर दण्डधारी ब्रह्मा दिखाए गए हैं तथा नन्दीके नीचे एक उपासक और एक उपासिका । २
२. पल्लू के ब्रह्माणी मन्दिरकी दीवारमें जड़ी निम्नांकित प्रतिमाएँ ( चित्र १ ) -२
(क) जटामुकुट पहने एक आलेमें चित्रित पार्वतीकी एक सुन्दर स्थानक मूर्ति जिसकी बाईं टाँग टूटी हुई है । कर्णकुण्डल, कण्ठहार, सुन्दर एवं सुशोभित अधोवस्त्र तथा नूपुर स्पष्ट दिखाई देते हैं, दाएँ हाथ में कमण्डलु (?) दिखाया गया है और बाएँ में सर्प । दक्षिण पादके समीप एक छोटी-सी अस्पष्ट प्रतिमा है जो नन्दीकी हो सकती है, बाईं ओर एक सुचित्रित धज्जेके नीचे आलेमें दो स्त्रियाँ दिखाई गई हैं और दाई ओर इसी प्रकारके आलेमें एक स्त्री ।
(ख) भूरे रंगकी बालुका प्रस्तरकी २'६' x १' ६" आकारको खण्डित चतुर्भुजी प्रतिमा सम्भवतः शिवकी है। मुकुट, कर्णकुण्डल, कण्ठहार, भुजबन्ध तथा अधोवस्त्र दर्शनीय हैं । बाईं ओर तथा सिरके पीछे लता - वेष्टणकी सज्जा है। बाएँ पाँवके पास बाईं ओर मुख किए नन्दीकी छोटी-सी प्रतिमा है ।
(ग) जटामुकुट, कर्णकुण्डल, कण्ठी तथा कण्ठहार, भुजबन्ध, करधनी तथा अधोवस्त्र पहने ध्यान मुद्रा में बैठी प्रतिमा सम्भवतः पार्वतीकी है । प्रतिमा दाईं ओर तथा नीचे से खण्डित है ।
(घ) एक छोटेसे आलेमें त्रिभंग मुद्रामें जटा मुकुट, कर्णकुण्डल, कण्ठी, कण्ठहार, करधनी तथा अधोवस्त्र पहने यह प्रतिमा भी सम्भवतः पार्वतीकी
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(ङ) नन्दीकी खण्डित प्रतिमा ।
३. एक स्थानीय ग्रामीणके घरमें लगी हुई कङ्कर- पत्थरकी एक चौखट जिसमें बीचके आलेमें सिंहकी खाल के आसन पर पद्मासन में शिव आसीन हैं । चतुर्भुजी इस प्रतिमाके ऊपरी दाएँ हाथमें त्रिशूल है तथा ऊपरी बाएँ हाथमें कोई अस्पष्ट वस्तु, अन्य दोनों हाथ पद्मासन मुद्रामें अंक में एक दूसरे पर रखे हैं । शिव जटा मुकुट, कर्णकुण्डल, कण्ठहार आदि अलंकरण धारण किए हैं तथा भुजाओं में सर्प वेष्टण है । दोनों ओर नृत्य-मुद्रामें एक-एक पुरुष दिखाया गया है । इन पुरुषोंने सुन्दर पारदर्शी अधोवस्त्र पहिन रखे हैं । कंकर पत्थरकी होनेके कारण यह मूर्ति काफी घिसी हुई है ( चित्र २ ) ।
४. एक घरकी दीवारमें लगी यह प्रतिमा सम्भवतः सिंहवाहिनी दुर्गाकी है । चतुर्भुजी देवी वाममुख सिंह पर सुखासन में विराजमान है । उसके ऊपरी दक्षिण हस्त में खड्ग है तथा निचले हाथमें चक्र (?), ऊपरी वामहस्त में पुस्तककेसे आकारकी कोई वस्तु है और निचला हाथ वाम जंघा पर टिका है। बाईं ओरके संलग्न आलेमें हाथ में खड़ा दण्ड लिए पत्थर की यह प्रतिमा भी काफी घिसी हुई है, है ( चित्र ३ ) ।
देवीकी ओर मुख किए एक स्त्री दिखाई गई है । कंकरफिर भी मूर्तिकारकी कुशलताकी स्पष्ट झलकी प्रस्तुत करती
५. इस खण्डित चौखटके मध्य में तीन आलोंमें विभिन्न मुद्राओंमें तीन स्त्रियों, सम्भवतः दुर्गाके विभिन्न रूपोंका अंकन है । इसे दक्षिण हस्त में खड्ग तथा वाम हस्तमें ऊपरी प्रतिमामें शक्ति ( या कमल ) तथा नीचेकी दो प्रतिमाओं में ढाल लिए युद्ध - मुद्रा में दिखाया गया है, अधोवस्त्र का अंकन बहुत ही भव्य है । तीनों प्रतिमाओं में दोनों ओर विभिन्न मुद्राओंमें परिचारिकाएँ खड़ी हैं जो हाथोंमें वाद्य यन्त्र लिए हैं या नृत्य - मुद्रा में हैं ( चित्र ४ ) ।
१. परमेश्वरलाल सोलंकी, वही ।
२. सभी चित्र भारतीय पुरातत्त्व विभाग के सौजन्यसे प्राप्त हुए हैं ।
१४ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रन्थ
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