________________
होथल निगामरी और ओढा जामकी सुप्रसिद्ध लोककथाके वस्तुसाम्य एवं इसके आधार-बीजपर विचार
श्री पुष्कर चन्दरवाकर, राजकोट . सौराष्ट्र, कच्छ और राजस्थान में होथल एवं ओढा जाम की प्रेम कथा बहुत ही लोकप्रिय तथा सुप्रसिद्ध है, जो अपने-अपने प्रदेशकी जनवाणी अथवा लोक-कथाके रूपमें आज भी वहाँ-वहाँके लोगोंकी जिह्वापर स्थित है, साथ ही यह उन-उन प्रदेशोंकी जन-वाणीमें ग्रन्थस्थ भी कर दी गई है।
होथल-पद्मिणीकी लोक-कथाके महत्त्वके दो पाठ गुजराती भाषामें उपलब्ध होते हैं। उनमें एक है स्व. श्री झवेरचन्द मेघाणी द्वारा सम्पादित कथा 'होथल' में और दूसरा पाठ प्राप्त होता है स्व० श्री जीवराम अजरामर गौर द्वारा सम्पादित 'उठोकेर अने होथल निगामरी २ में।
इसके आधार-बीजके विचारके लिये ये दोनों पाठ महत्त्वपूर्ण हैं। इन दोनों पाठों वाली होथलकी कथा वार्तालापका Trait-Study तुलनात्मक अध्ययनके लिये अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हो सकती है। इसे लोकभोग्य बनानेके लिये इसमें आवश्यक परिवर्तन किया गया है। लोक-कथाका गठन कैसा हो सकता है, इस हेतु स्व. श्री झवेरचन्द मेघाणीकी कथा 'होथल'को विस्तारपूर्वक समझ लेना आवश्यक है। जब श्री स्व० गौरकी लोक-कथा 'निगामरी अने उठो केर'के आधारबीजके निर्णय हेतु विशेषरूपसे यह उचित प्रतीत होती है। डॉ. स्टिथ थोम्पसन द्वारा बताई गई लोक-
वाके व्यावर्तक लक्षणोंपर दृष्टिपात करते हुए लोकवार्ताका अध्ययन करने हेतु भी ये दोनों पाठ उपयोगी लग सकते हैं । इस प्रकारसे ये लोक-कथायें अनेक दष्टिसे लोक-शास्त्रज्ञको अध्ययन-सामग्रीकी पूर्ति कर सके, जैसी है।।
किन्तु, यहाँ केवल आधारबीजके अध्ययन हेतु चर्चा-विचार-करनेकी आवश्यकता होनेके कारण स्व० श्री गौरकी लोक-कथाका पाठ विशेष उपयोगी सिद्ध होगा, ऐसा प्रतीत होता है। क्योंकि, उसका सम्पादन विशेष करके मूल लोककथाके आधारपर स्थित है, ऐसा स्पष्ट और वैज्ञानिक विचार मानसपर उभर आता है। उसकी वार्ताका सार निम्न है। इस लोक-वार्ताका काल नवमी शताब्दी का है।
१. सौराष्ट्र नी रसधार, भाग ४, संपादक : श्री झवेरचंद मेघाणी, प्रकाशक : श्री गुर्जर ग्रन्थरत्न कार्या
लय, अहमदाबाद, पंचमावृत्ति ई० स० १९४७, पृ० १५ से ४९ । २. कच्छकी गुजराती लोकवार्ताओं, संपादक : स्व० श्री कवि जीवराम अजरामर गौर, प्रकाशक : राजा
रामजी गौर झांझीबार, प्रथमावृत्ति ई० स० १९२९, पृ० १९७ से २६४ । ३. The Occen of Story, vol VIII, by C. H. Towny & N. M. Penzer, Pub. by
Motila IBanarasidas, Varanasi, Indian Reprint, 1968, Forward, p. 10, 20, 21. ४. The Folk Tale, by Dr. Stith Thompson, Pub. by Holt Rinchart and Winston,
Inc. New York, 1946, p. 456.
३१२ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org