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मैंरट हुय गयौं । हाथ पटकै दांतां सूं हथेली नूं बटका भरै । कटारी सुं तकियों फाड़ नांखियो । 'जे म्हांरी भणा दिनां री संची जाजम बीकानेर रा खाली कर दीवी । मैं तो इहां नूं जोधपुर रं पगां संचिया था, सो हमें जोधपुर री आस तो चूकी दोस छँ ।' मुत्सद्दी अमराव हजूर री धीरज बंधावै, परचावै । पण अमरसिंह तो बावल सी बात करें । "
राव अमरसिंह की ऐसी मनोदशा उस समय प्रकट की गई है, जब उसे अपनी जागीर (नागौर) से पराजयका संवाद मिलता है और शाही दरबारसे घर जानेके लिए उसे छुट्टी प्राप्त नहीं हो रही है ।
(२) एकै दिन राजड़िया रो बेटो वीजड़ियौ वीरमदेजी री खवासी करें छे । तिण आँख भरी, चौसरा छूटा । वीरमदेजी पूछियो - " वीजड़िया क्यूं, किण तोनें इसो दुख दोघो ?” तह वीजड़ियो को"राज, माथे धणी, मोनें दुख दै कुण ? पिण नींबो म्हारा बाप रो मारण हारी, गढां-कोटां मांहि बड़ा बड़ा सगां मांहे धणीयां रो हांसा रो करावणहारी बल गढ़ मांहे खंखारा करै छै नैं पोढे छै । तीण रौ दुख आयो । २
इस प्रसंग वीजड़ियाका हृदय उसके पिताको मारनेवाले नींबाको राजमहल में आरामसे रहते देख - कर जल रहा है । परन्तु वह सेवक है, अतः उसकी मानसिक पीड़ा नेत्रों की राह बह चली है ।
(३) अचलदासजी नूं आंख्यां हो न देखे छै, तर ऊमांजी झीमो नूं कहियो - " हि मैं क्यों कीजसी ? एकेक रात बरस बराबर हुई छै । आखी खाधी, तिका आधी ही न पावू, इसड़ी हुई ।" तरं ऊमांजी झीमा नूं कहै छै - जसू ? कोइक विचारणा करणो, ओ जमारो क्यों नीसरं ? जो तूं वीण वजावै, तरै रन रामृग आवै नै आगे ऊभा रहता, सो तूं अचलजी नूं मोह नै ल्यावै तो तूं खरी सुघड़राय ।" तरं झीमी कहियो - " जो अचलदासजी नां एक बार आंख्यां देखूं तो मगन करां । आंख्यां ही न देखूं तो किसो जोर लागे ?' 3
इस प्रसंगमें सौतसे वशीभूत पति के द्वारा परित्यक्ता पत्नी की मनोवेदना प्रकट हुई और किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थितिने इस वेदनामें विशेष रूपसे वृद्धि कर दी है ।
(४) रात रै समीमैं सोंधल आपरे ठिकाण पधारिया । त्यों सुपियारदे पिण कपड़ा पेहर अर महलमें सींधल कन्हें गई । त्यों कपड़ां री सुगंध आई । त्यों सींधल कह्यौ - "आ सुवासनी काहिण री आवे छे ?” त्यों सुपियारदे बोली—“राज, मोनू खबर नहीं ।" इतरै सोंधल बोलियो -- "जू म्हे कह्यो हुवै म्हो जांणायौ जू जांणीजै बैनोई भेंट कीवी छै ।" तद सींधल चादर तांण नैं पौठि रह्यौ अर सुपियारदे ने किम को नहीं । राति पोहर ४ उठे ही ज ठोड सुपियारदे खड़ी रही । तद सुपियारदे हो को
प्रसूती धण ओजगै, राति विहाणी जाइ ।
सोंधल बोल्या बोलड़ा, कहूँ नरबद नैं जाइ ॥ ४
इस प्रसंग सुपियारको उसका पति जली-कटी बात सुनाकर उसके चरित्र पर लांछन लगाता है । और फिर वह चादर तानकर सो जाता है । सुपियारदे रात भर खड़ी हुई चिन्ता करती है । इस समय उसके
१. राजस्थानी वात-संग्रह (परम्परा), पृष्ठ १५६ ।
२. राजस्थानी वातां, पृष्ठ ७६-७७ ।
३. पँवार वंश दर्पण, परिशिष्ट ।
४. सुपियारदे री वात (हस्तप्रति, श्री अ० सं० पुस्तकालय, बीकानेर )
२५४ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रन्थ
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