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चन्द्र शास्त्री द्वारा मीरा कला प्रतिष्ठान, उदयपुर से मीरांबाईसे सम्बन्धित प्रामाणिक जानकारी शीघ्र ही प्रकाशित की जा रही है। मीरांकी भाषा राजस्थानी है जो डिंगलके सरल शब्दोंसे पूरी तरह प्रभावित है ।
(२१) महाराणा उदयसिंह – महाराणा सांगा के पुत्र और उदयपुर नगर के संस्थापक महाराणा उदयसिंह (वि० सं० १५९४ - १६२८ ) की साहित्यके प्रति विशेष रूचि थी । ये स्वयं डिंगलमें कविता करते थे । कवि गिरवरदानने 'शिवनाथ प्रकाश' नामक अपने प्रसिद्ध ग्रन्थमें इनके दो गीत उद्धृत किये हैं ।" उदाहरण के लिये एक गीतकी चार पंक्तियां निम्न हैं
कहै पतसाह पता दो कूंची, गढ़पत कहे हमे गढ़ म्हारौ,
धर पलटिया न कीजें धौड़ । चूंडाहरौ न दे चीतोड़ ॥
(२२) रामासांदू - महाराणा उदयसिंहके समकालीन थे । 3 इन्होंने महाराणाकी प्रशंसामें 'बेलीये राणा उदयसिंह की वि० सं० १६२८के आस-पास रचना की । इस वेलिमें कुल १५ वेलिया छन्द हैं । ५ वेल अतिरिक्त फुटकर गीत भी मिलते हैं । रामासांदूके लिये ऐसा प्रसिद्ध है कि जोधपुर के शासक मोटाराजा उदयसिंह (वि० सं० १६४०-१६५१ ) के विरुद्ध चल रहे चारणोंके आन्दोलनको छोड़कर मुगल विरोधी संघर्ष में मेवाड़ में चले आये । ये हल्दीघाटीकी लड़ाईमें महाराणा प्रतापकी ओरसे मुगलोंके विरुद्ध लड़ते हुए मारे गये । ७
(२३) कर्मसी आसिया - इनके पूर्वज मारवाड़ में थकुके समीप स्थित भगु ग्रामके रहने वाले थे । महाराणा उदयसिंहके आश्रित कर्मसी के पिताका नाम सूरा आसिया था । जालौरके स्वामी अक्षयराजने कर्मसीकी कार्यपटुतासे मोहित होकर इन्हें अपने दरबार में नियुक्त कर दिया ।" जब महाराणा उदयसिंहका अक्षयराजाकी पुत्री से हुआ, उस समय महाराणाने कर्मसीको अक्षयराजसे मांग लिया । चारण कवि सुकविरायका कहा हुआ इस घटनासे सम्बन्धित एक छप्पय प्रसिद्ध हैं। चित्तौड़ गढ़पर उदयसिंहका अधिकार होनेपर कर्मसीको रहनेके लिये महाराणाने एक हवेली दी थी और इनकी पुत्री के विवाहोत्सवपर स्वयं महाराणा उदयसिंह इनके मेहमान हुए थे । तथा इस अवसरपर महाराणाने इन्हें पसंद गाँव ( राजसमन्द तहसील के अन्तर्गत) रहनेके लिये दिया था। इस घटनाका भी एक छप्पय प्रसिद्ध है । वर्तमानमें इनकी संतति पसुंद, कड़ियाँ, मंदार, मेंगटिया, जीतावास तथा मारवाड़ के गाँव बीजलयासमें निवास करती है । फुटकर डिंगल
१. महेन्द्र भागवत द्वारा सम्पादित ब्रजराज काव्य माधुरी, डॉ० मोतीलाल मेनारियाकी भूमिका, पृ० ५ ॥
२. डॉ० मोतीलाल मेनारिया - राजस्थानी साहित्यकी रूपरेखा, पृ० २२३ ।
३. रामनारायण दूगड़ द्वारा सम्पादित मुहणोत नैणसीकी ख्यात, प्रथम भाग, पृ० १११ ।
४. टेसीटरी - डिस्क्रप्टीव केटलॉग, सेक्सन it, पार्ट i, पेज-६ ।
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५. सीताराम लालस कृत राजस्थानी सबद कोस, (भूमिका) पृ० १३० ।
६. डॉ० देवीलाल पालीवाल - डिंगल गीतों में महाराणा प्रताप, परिशिष्ट ( कवि परिचय) पृ० १११,१२ ।
७. गिरधर आसिया कृत सगत रासो, हस्त लिखित प्रति, छन्द सं० ७३ ।
८. सांवलदान आसिया - कतिपय चारण कवियोंका परिचय, शोध पत्रिका, वर्ष १२ अंक ४ पृ० ४२-४३ ९. प्राचीन राजस्थानी गीत भाग ८ साहित्य संस्थान, उदयपुर प्रकाशन, पृ० २० ।
१०. वही, पृ० २० ।
भाषा और साहित्य : २३५
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