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उपस्थित की है। शिल्प और कथ्य दोनों ही दृष्टियोंसे वे महनीय हैं। उनके पद-चिह्नोंका अनुसरण कुवलयमाला, सुरसुन्दरी चरियं, निर्वाणलीलावती आदिमें पाया जाता है। अतएव हम हरिभद्रको युग-संस्थापक युगप्रवर्तक कथा-काव्यनिर्माता मान सकते हैं। वस्तुतः वे बहुमुखी प्रतिभावान् कथारस और काव्य रसकी संगम प्रधान रचनाओंके लेखक हैं। इसे हम राजस्थानका सौभाग्य ही मानेंगे कि उसने बाणभट्टकी समकक्षता करने वाला अद्भुत कथा-काव्य निर्माता उत्पन्न किया । मैं हरिभद्रके चरण-चिह्नोंसे पवित्र हुई महाराणा प्रतापकी वीर भूमि राजस्थानको शत-शत प्रणाम करता हूँ।
इतिहास और पुरातत्त्व : १७७
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