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इसके खलवाना
बानाके युद्ध में लड़ते हुए मरनेका उल्लेख किया है। इसकी स्मृतिमें जसराक द्वारा देवली बनानेका उल्लेख है। डुगरपुरसे वि० सं० १४९८ और १५३० के लेख मिले हैं। वि० सं० १४९८ के लेखमें वर्णित है कि जब डूंगरपुर' पर शत्रुका आक्रमण हुआ तब रक्षा करते काम आनेवाले वीरोंका उल्लेख है । यह आक्रमण महाराणा कुम्भाने किया था । वि० सं० १५३० के लेखमें जैसा कि ऊपर उल्लेखित है सुल्तान गयासुद्दीन खिलजोके मालवाके आक्रमणकी ओर संकेत है। इसी प्रकार अकबर और गुजरातके सुल्तान अहमदशाहके बागदपर आक्रमण के समय मरनेवालोंकी स्मृतियोंमें लेख खुदे हुए मिले हैं। ये लेख चबूतरोंपर लगे हुए हैं। मेवाड़से भी कई लेख मिल हैं। करेड़ा जैन मंदिरमें लगे वि० सं० १३९२ के एक लेख में युद्ध में मृत वीरकी स्मृति में 'गोमट्ट" बनाने का उल्लेख है। बीकानेर क्षेत्रके उदासरसे वि० सं० १६३४ और १७५० के लेखोंमें भी ऐसा ही उल्लेख है। राजस्थानमें दीर्घकाल तक युद्ध होते रहे हैं । अतएव ऐसे लेखोंकी अधिकता होना स्वाभाविक है।
गायों की रक्षा करते हुए मरना भी गौरव और धार्मिक कर्त्तव्य माना जाता था। ऐसे कई लेख भारतके विभिन्न भागोंके मिले हैं। पश्चिमी राजस्थानमें गायोंकी रक्षा करते हुए मरना एक विशिष्ट घटना थी। इन वीरोंकी स्मृतिमें जो लेख लगाये गये हैं इन्हें "गोवर्द्धन" कहते हैं । इन स्तम्भोंपर गोवर्द्धनधारी कृष्णका अंकन होनेसे इन्हें गोवर्द्धन कहते हैं। प्रारम्भमें गायों की रक्षा करते हुए मरनेवालोंके लिए ही थे बनते थे किन्तु कालान्तरमें इनको बाहरी मुस्लिम आक्रान्ताओंके साथ मरनेवालों के लिए भी मान लिया गया। इस प्रकार इनका अर्थ व्यापक हो गया था। ये लेख राजस्थानके उत्तरी पश्चिमी सीमान्त प्रान्तसे लेकर नागौर डीहवागा साँभरके पास स्थित भादवा गाँव तकसे मिले हैं। इस क्षेत्रवासियोंको सदैव मुस्लिम आक्रान्ताओंसे लोहा लेना पड़ा था अतएव इस क्षेत्रमें ही ये लेख अधिक मिले हैं जो प्रायः १० वीं शताब्दीसे १३ वीं शताब्दी तकके हैं । इनमें जैसलमेरकी प्राचीन राजधानी लोद्रवासे सं० ९७० ज्येष्ठ शुक्ला १५ का लेख अबतक ज्ञात लेखों में प्राचीनतम है। इसमें क्षत्रिय वंशमें उत्पन्न रामधरके पुत्र भद्रकद्वारा गोवर्द्धनकी प्रतिष्ठा करानेका उल्लेख है। नागौरके पास बीठनसे सं० १००२ के लेखमें भी गोवर्द्धनके निर्माणका उल्लेख है। पोकरण जैसलमेर और मारवाड़की सीमापर स्थित है यहाँसे २ लेख मिले हैं सं० १०७० आषाढ़ सुदि ६ (२६।७।१०१२) का और दूसरा लेख बिना तिथिका है । ऐसा प्रतीत होता है कि सुल्तान महमूद गजनीके आक्रमणके समयकी ये घटनायें हैं। उसके मुल्तान आदि क्षेत्रोंपर अधिकार हो जानेके बादकी टुकड़ियोंके साथ उसका संघर्ष सोमान्त प्रान्तके निवासियोंसे हुआ था। सं०१०७० के शिलालेखमें परमारवंशी गोगाका उल्लेख है। दूसरे लेखमें गुहिलोतवंशी शासकोंका उल्लेख है। इसे अत्यन्त पराक्रमी और रणभूमिमें युद्ध करनेका उल्लेख किया है। संभवतः यह गजनीके सोमनाथके आक्रमणके समय युद्ध करते हुए काम आया हो तो आश्चर्य नहीं। जोधपरके पाससे पालगाँवसे वि० सं० १२१८ और १२४२ के गोवर्द्धन लेख मिले है । भांडियावास (नागौर) से वि० सं० १२४४ का एक गोवर्द्धन लेख मिला है। लेखमें गोवर्द्धनकी प्रतिष्ठाका सुन्दर वर्णन है। जैसलमेरमें भट्रिक सं०६८५ के कई लेख मिले हैं। इनमें स्त्रियों और गायोंकी रक्षा करते हुए प्राण देना वर्णित है । यह घटना जैसलमेर पर अलाउद्दीन खिलजीके आक्रमणके समयकी है। गायों की रक्षा करते हुए, मरना भी गौरव माना जाता था ।
१. महाराणा कुम्भा पृ० ९६-९७ । २. उपरोक्त पृ० १९९ फुटनोट ५५ । ३. वरदा वर्ष अप्रेल १९६३ १० ६८ से ७९ । ४. शोध पत्रिका वर्ष २२ अंक २ १०६७ से ६९ ।
१२६ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ
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