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अभिनन्दन ग्रंथ के लिए रचनाएँ विशेष अनुरोध के साथ मंगवायी गयी थीं। हमें अत्यन्त खेद है कि हम, आर्थिक स्थिति के कारण उन सबका उपयोग नहीं कर सके। उनके विद्वान् लेखकों से क्षमा मांगने के अतिरिक्त अब हमारे लिए दसरा चारा नहीं है।
अभिनन्दन-ग्रन्थ के प्रकाशन में भी अप्रत्याशित देर हो गयी। अनेक लेख हमारे पास कई वर्ष पूर्व आ चुके थे। उनके लेखकों का धैर्य निस्संदेह कड़ी कसौटी पर कसा गया है। अनेक लेखकों से उपालंभ भरे पत्र भी मिले और अब भी मिल रहे हैं । मैं सभी महानुभावों से हृदय से क्षमायाचना करता हूँ।
लेखों को संगृहीत करने में डा० बी० एन० शर्मा तथा डा० कंसारा आदि ने बड़ी सहायता दी। उनका सहयोग अगर नहीं होता तो इतने अच्छे लेख प्राप्त नहीं हो पाते।
संपादन-कार्य में प्रधान संपादक डा० दशरथ शर्मा तथा डा० रत्नचन्द्र अग्रवाल से बराबर मार्गदर्शन मिला । श्री नरोत्तमदास स्वामी और डा० मनोहर शर्मा से लेखों के चयन और संपादन में जो सक्रिय सहयोग मिला उसके लिए, मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि, किन शब्दों में आभार प्रकट करूं। वे अपने ही हैं-इतने अधिक अपने हैं कि उनके प्रति आभार प्रकट करने की औपचारिकता बरतना उनके अपनेपन के महत्त्व को कम करना होगा।
श्री नाहटाजी जैसे महापुरुष का अभिनन्दन करके हम उनकी गरिमा की वृद्धि नहीं करेंगे; उनका सम्मान करके वास्तव में हम अपना ही सम्मान करेंगे, यह अभिनन्दन तो वस्तुतः हमारे हृद्गत भाव-सुमनों का सुरभित गुच्छक मात्र है।।
यह विशेष रूप से स्मरणीय है कि श्रीनाहटाजी के अध्ययन और शोध-खोज-रत कर्मठ जीवन के पचास वर्ष इसी वर्ष संवत् २०३४ में पूर्ण हो रहे हैं। इस साहित्य साधना व आत्मसाधना की स्वर्ण जयन्ती के उपलक्ष्य में अभिनन्दन ग्रन्थ का यह द्वितीय भाग प्रकाशित एवं समर्पित किया जा रहा है।
रामवल्लभ सोमाणी
प्रबन्ध-सम्पादक
नाहटाजो के प्रेरणा-स्रोत जीवनसूत्र
१. करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान ।
रसरी आवत-जात ते, सिल पर परत निसान ।।
२. काल करै सो आज कर, आज कर सो अब्ब ।
पल में परलै होयगी, बहुरि करंगो कब्ब ।। ३. एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय ।। ४. रे मन । अप्पह खंच करि, चिता-जालि म पाडि । फल तित्तउ हिज पामिसइ, जित्तउ लिहिउ लिलाडि ।।
(श्रीपाल चरित्र)
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