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मुनि कान्तिसागर : अजमेर-समीपवर्ती क्षेत्र के कतिपय उपेक्षित हिन्दी साहित्यकार : ८५५
इसकी एकमात्र प्रति मेरे संग्रह में सुरक्षित है. इसका आजतक कहीं उल्लेख नहीं हुआ है. पत्र स्वलिखित है, इससे इसका महत्त्व और भी बढ़ जाता है. दूसरा पत्र है कल्याणमंदिर समस्यापूर्ति स्वरूप. यह भी विज्ञप्ति पत्र है जो मसूदा से सं० १७७८ में आचार्य श्री क्षमाभद्रसूरि की सेवा में अजबसागर, ईश्वरसागर, अनूपसागर, तथा गोकल, गोदा और वषता की ओर से भेजा गया है. उपर्युक्त मुनिवर अधिकतर सथाणा और मसूदा में रहे हैं. इनकी लिखी और रची कृतियां उपलब्ध हैं. सथाणा से भी अजबसागर ने सं० १७७७ में एक संस्कृत भाषा में रचित वार्षिक पत्र प्रेषित किया था, जो मेरे संग्रह में है. रूपनगर के बीसों आदेश पत्र तथा उदयपुर के यतियों पर समय-समय पर वहां के रहनेवाले यतियों द्वारा लिखित पत्रों की संख्या कम नहीं है. ये पत्र उस समय की परिस्थिति के अच्छे निदर्शन तो हैं ही, साथ ही भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से भी उपादेय है. उपर्युक्त पंक्तियों में यथाशक्य जो कुछ भी अज्ञात साहित्यकार और उनकी रचनाओं पर प्रकाश डाला गया है, मेरा विश्वास है कि हिन्दी भाषा की व्यापकता को देखते हुए यदि शोध की जाय तो और भी प्रचुर और नव्य साहित्यिक सामग्री मिलने की पूर्ण संभावना है. विज्ञों से निवेदन है कि वे स्वक्षेत्र के उपेक्षित साहित्यिकों पर अनुसंधान कर नूतन आलोक से सारस्वतों की उज्ज्वल कीत्ति को प्रशस्त बनावें.
निबंध में उल्लिखित कवि और उनकी रचनाएं जिनरंगसूरिजी धर्मदत्त चतुःपदी
रचनाकाल सं० १७३७, किशनगढ़ मेघविजयजी गणि मेघीयपद्धति मानसिंहजी स्फुट-पद
राज्यकाल सं० १७००-१७६३ राजसिंहजी ब्रजविलास
रचनाकाल सं० १७८८ राजा पंचक कथा
रचनाकाल सं० १७८७ के पूर्व स्फुट-पद, स्फुट कवित्त ब्रजदासी-बांकावती सालवजुद्ध, आशीष संग्रह रचनाकाल सं० १७८३
स्फुट कवित्तादि बिड़दसिंहजी गीतिगोविंद टीका
राज्यकाल सं० १८३८-१८४५ कल्याणसिंहजी स्फुट-पद
राज्यकाल १८५४-९८ पृथ्वीसिंहजी
" १८९७-१९३६ जवानसिंहजी
रसतरंग जल्वये शहनशाह इश्क
रचनाकाल सं० १९४५ नखशिख-शिखनख
"सं० १९४६ धमार शतक (संकलन) यज्ञनारायणसिंहजी स्फुट पद, रसिया
राज्यकाल सं० १९८३-६५ नानिंग मजलिस शिक्षा
रचनाकाल सं० १७६० पंचायण मुहूर्त कोश
रचनाकाल सं० १८१५, अजमेर विजयकीत्तिजी भरत बाहुबली संवाद
रचनाकाल सं० १८२३ के पूर्व अजमेर गज सुकमाल चरित्र जसराज भाट
राजाराम तिलोकसी संघ नीसानी रचनाकाल सं० १८७८ के पूर्व
निबंध में प्रयुक्त सभी हस्तलिखित ग्रन्थों को प्रतियां लेखक के निजी संग्रह की हैं.
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