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मुनि कान्तिसागर : अजमेर-समीपवर्ती क्षेत्र के कतिपय उपेक्षित हिन्दी साहित्यकार : ८४१
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के लिये सुरक्षित रख लिया जान पड़ता है. राजस्थान में भाट का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना जाता रहा है. भगवान् के भाट नागरीदासजी-सांवतसिंह हैं जिसने उनका यश चतुर्दिक फैलाया. कवि के ही शब्दों में पढ़िए---
भाट वर्णन भाट नागरीदास नृप इशक शानशा हेत ।
सब जग मय जाहिर किया इश्कचिमन रस केत ॥२२॥ भाट इति—यामैं भाट को वर्णन हैं. इश्क जो शहनशाह राजाधिराज हैं ताके हेत कहिये, सिंह के कारण नागरीदास नृप जो कृष्णगण के महाराज सांवतसिंहजी द्वितीय हरि संबंध नाम नागरीदासजी सो भाट है, सो यह महाराज बड़े महानुभाव परम भगवत् भक्त सो इनकी महिमा तो लघु पुस्तक में लघु बुद्धि सौं कहां तक वर्नन करै, अरू आपके कवित्वछंदादि तो बहुत हैं परन्तु तिन में दोय प्राचीन छप्पय लिखते हैं
सुत कौं दै युवराज आप दृदावन आये। रूपनगर पतिभक्त वृन्द बहु लाड लडाये ।। सर धीर गंभीर रसिक रिझवार अमानी । संत चरनामृत नेम उदधि लौं गावत वानी ।। नागरीदास जग विदित सो कृपाठार नागर ढरिस । सांवंतसिंह नृप कलि विष सत त्रैता विधि आचरिय' ।।१।।
पुनः
रंग महल की टहल करत निज करन सुधर वर । जुगल रूप अवलोक मुदित आनंद हिौं भर ।। ललितादिक जिहिं समैं रहत हाजर सुखरासी । तहाँ नागरीदास जुगल की करत खवासी ।। श्रीलाड लडैती करि कृपा परिकर अपनौं जाँन किय । शक्रादि ईशहूकौं अगम सो दृदावन वास दिय ॥२॥
कृष्ण कृपा गुन जात न गायो मनहु न परस करि सकै सो सुख इन ही दृगनि दिखायो । गृह ब्यौहार भुरट २ को भारो शिर पर तै उतरायो ।।
नागरिया कौं श्रीबदाबन भक्त तख्त बैठायो ।। ऐसे महाराज नागरीदासजी इश्क महाराज को सुयश बहुत बनन कियो हैं. सोई उत्तरार्द्ध में कह हैं. सब जगमय कहिये सर्व संसार में "इश्कचिमन" नाम ग्रंथ "रस केत" कहिये रस की ध्वजा जैसो जाहिर किया कहिये प्रगट कियो हैं. इश्क महाराज को सुयश वर्णन कियो या ते भाट कहैं. "भा" नाम सोभा ताके अर्थ "अट" कहिये फिर ताको नाम भाट हैं. अरु भाट सौं जाति की उत्तमता अरु उत्पत्ति की शुद्धता जगत मैं जानी जाय हैं, तैसें "इश्कचिमन" सौं इश्क की उत्तमता, अरु इश्क को शुद्ध स्वरूप जान्यौं जाय हैं तातै भाट कहैं .......
१. कहा जाता है कि नागरीदास का जो स्मारक वृदावन में बना है उस पर यह पद्य अंकित है. २. राजस्थान के रेतीले प्रदेश में "भूरट" नामक काटेवाला खाद्य पदार्थ होता है.
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