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[ रागधनात्री विपु ]
जिन दर्शन तरसिये, दर्शन दुर्लभ देव, मत मत भेदे रे जो जइ पूछिये, सहु थापे श्रहमेव - श्रभि० सामान्ये करी इतिशय दोहिलु निर्णय सकल विशेष
मदमें घेर्यो रे धंधो केम करे, रवि शशि रूप विलेख - श्रभि० हेतु विवाद हो चित घरी जोइए, यति दुर्गम नयवाद
श्रागमवादे हो गुरुगम को नहीं, एसबलो विषवाद-ग्रभि० घाती डुंगर आड़ा प्रति घणा, तुज दरिशण जमनाथ,
ढिठाइ करी मारग संवरु सेंगु कोइ न साथ -- श्रभि० दर्शन-दर्शन रटतो जो फरु, तो रण रोक समान,
जेहने पिपासा हो अमृत पाननी, किम भाजे विषपान - श्रभि० तरस न थावे हो मरण जीवनतणो, सीजे जो दर्शन काज,
दरिशण दुर्लभ सुलभ कृपा थकी, 'आनन्दघन' महाराज - - श्रभि०
अभिनन्दन
प्रेरक
मुनि श्री मिश्रीमल मधुकर' जीवन- २५
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[ रागकेदारा-गौड़ 1
देखण दे रे सखी मने देखण दे, चंद्रप्रभ मुखचंद, सखी० उपशम रसनो कंद, सखि गत कलिमल दुखदंद, सखी चंद्र० सूक्ष्म निगोदे न देखी सखी बादर अति विशेष सी पुढवी आउ न लेखियो, सखी तेउ वाउ न लेश, सखी चंद्र० वनस्पति अति घण दिहा, सखी दीठो नहीं दीदार, सखी० विति चरिंदि जललीहा, सखी गोपणार, सखी पं० सुर तिरि निरयनिवासमां, सखी मनुज अनारज साथ, सखी०
अपज्जत्ता प्रतिभासमां, सखी चतुर न चढ़ीओ हाथ, सखी चंद्र० एम अनेक थल जाणीए सखी दर्शन विणु जिनदेव, सखो० आगमथी मत जाणीए सखी कीजे निर्मल सेव, सखी चंद्र० निर्मल साधु भक्ति लही, सखी योग प्रवंचक होय, सखी०
क्रिया श्रवंचक तिम सही, सखी फल ग्रवंचक जोय, सखी चंद्र०
अवसर जिनवरु, सखी मोहनीय क्षय जाय, सखी०
कामित पूरण सुरतरु, सखी 'श्रानन्दघन' प्रभु पाय, सखी चंद्र०
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[ राग-रामग्री - कड़खा ]
धार तरवारनी सोहिली, दोहिली चउदमा जिनतणी चरणसेवा, धार पर नाचता देख बाजीगरा, सेवना-धार पर रहे न देवा - घा०
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