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७७६ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय
३ देवता --- चौबीस तीर्थंकरों में से किसी भी तीर्थंकर का जाप किया जाय तो उनके सेवक यक्ष और यक्षिणी सेवक बन कर साधक की मनोवांछित सिद्धि में सहायक होते हैं.
२४ यक्ष
"जक्खा गोमुह महजक्ख तिमुह जक्खेस तुंबरु कुसुमो । मायंगी विजयाजिय बंभो मरणुओ सुरकुमारो अ । छम्मुह पयाल किन्नर गल्लो गंधव्व तह य जविखंदो । कुबेर वरुणो भिउडी गोमे हो पासमायंगा ||"
अर्थात् - १ गोमुख, २ महायक्ष, ३ त्रिमुख, ४ यक्षेश, ५ तुंबरु, ६ कुसुम, ७ मातंग, ८ विजय, ६ अजित, १० ब्रह्म, ११ मनुज, १२ सुरकुमार, १३ षण्मुख, १४ पाताल, १५ किन्नर, १६ गरुल, १७ गन्धर्व, १८ यक्षेन्द्र, १६ कुबेर, २० वरुण, २१ भृकुटि २२ गोमेथ, २३ पार्श्व और २४ मातंग.
२४ यक्षिणी
"देवीओ चनकेसरि अजियारियारि कालि महकाली । अच्चुआ संता जाला सुतारयासोअ सिरिवच्छा ॥ चण्डा विजयकुसी पन्नी नव्याणी अछुआ धरणी। वइरुट्टछुत्त गंधारी अंब पउमाबाई सिद्धा ॥"
अर्थात् १ व २ अजिता ३ दुरितारि ४ काली ५ महाकाली, ६ अच्युता, शांता सुतारका १० अशोका, ११ श्रीवत्सा, १२ चण्डा, १३ विजया, १४ अंकुशा १५ प्रज्ञप्ति, १६ निर्वाणी, १७ अच्छुप्ता, १८ धरणी, वराट्या, २० अच्छ्रुप्ता २१ गन्धारी, २२ अंबा, २३ पद्मावती, और २४ सिद्धा. १६ विद्यादेवी
"तु मम रोहिणिती वसा गया। वज्जं कुसि चक्केसरि नरदत्ता कालि महकाली ।। "गोरी तह गन्धारी महजाला माणवी अ वइरुट्टा | अच्छुत्ता माणसिआ महमाणसिआ उ देवीओ ॥"
१ रोहिणी, २ प्रज्ञप्ति ३४ बच्चांकुशी, ५ चक्रेश्वरी गांधारी, ११ महाज्वाला, १२ मानवी १२ रोया, १४
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६ नरदत्ता ७ काली महाकाली, गौरी, १० १५ मानसी और १६ महामानसी.
इन रोहिणी वगैरह विद्याओं के प्रभाव से विद्याधर ऐसे मनुष्य देव समान सुख प्राप्त करते हैं. विद्यादेवियों का ध्यान खूब भक्ति से करना चाहिये.
४ सकलीकरण
ध्यान करने के पहिले सकलीकरण अर्थात् आत्मरक्षा करनी चाहिए. सकलीकरण से विद्या की साधना में निर्विघ्न कार्यसिद्धि होती है.
प्रथम दिग्बंध करना चाहिए. फिर जल से अमृत-मंत्र बोलकर शरीर पर छिटकना चाहिए. फिर मंत्रस्नान करके शुद्ध धुले वस्त्र पहनकर एकान्त और निरुपद्रवी स्थान में ( ब्रह्मचर्य आदि श्रावक के पांच व्रतों का पालन करते हुए) भूमि शुद्ध करके आसन पूर्वक बैठना चाहिए.
१. ओ णमो अरहंताणं हाँ शीर्ष रक्ष रक्ष स्वाहा । २. ओ णमो सिद्धाणं ह्रीं वदनं रक्ष रक्ष स्वाहा । ३. ओं णमो आयरियाणं हृ हृदयं रक्ष रक्ष स्वाहा ।
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