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महावीर कोटिया : जैन कृष्ण-साहित्य : ४६१ हिन्दी-जैन-कृष्ण साहित्य :-हिन्दी भाषा में जैन-साहित्यकारों द्वारा रचित बहुत साहित्य उपलब्ध है और दिनप्रतिदिन जैसे-जैसे जैन-भण्डारों की खोजबीन की जा रही है, नया-नया साहित्य प्रकाश में आता जा रहा है. पिछले कुछ ही वर्षों में हिन्दी का जैन-साहित्य (विद्वानों के अथक परिश्रम के फलस्वरूप) बहुत बड़े परिमाण में प्रकाश में आया है. जहाँ तक हिन्दी के आदिकालिक साहित्य का प्रश्न है, इन खोजों के फलस्वरूप बहुत ही मजेदार परिणाम सामने आये हैं. प्रायः शुक्ल जी आदि हिन्दी के विद्वानों ने आदिकालिक हिन्दी साहित्य में जिन कृतियों की गिनती की थी,' आधुनिक खोजों के आधार पर उनमें से कुछ को छोड़कर सभी कृतियां संदिग्ध सिद्ध हो गई हैं तथा बहुत काल बाद की रचना बताई जाने लगी हैं. उनके स्थान पर बहुत सी नवीन कृतियाँ आदिकालिक साहित्य में प्रतिष्ठित हो रही हैं. उनमें अधिकांश कृतियां जैन रचनाकारों की हैं. जहां तक हिन्दी के जैन-कृष्ण-साहित्य का प्रश्न है, यह विपुल मात्रा में उपलब्ध है. इस साहित्य की एक बड़ी विशेषता यह है कि यह अधिकांश में प्रबन्धकाव्य की कोटि का है, जब कि जैनेतर हिन्दी-कृष्ण-साहित्य मुख्यत: मुक्तक है. पुनः हिन्दी-जैन-कृष्ण-साहित्य में कृष्ण के व्यक्तित्व का बड़ा भव्य चित्रण हुआ है. जैनेतर हिन्दी साहित्य के कृष्ण जहाँ गोपीजनवल्लभ, राधाधर-सुधापान-शालि-बनमाली और 'होरी खेलन वाले लला' हैं, वहाँ हिन्दी जैन-कृष्ण-साहित्य के श्रीकृष्ण महान् पराक्रमी व शक्तिशाली राजा हैं. वे वासुदेव हैं और अधम तथा आततायी पुरुषों के भार से पृथ्वी को मुक्त करने वाले हैं. वे गोपियों के साथ यमुनातट पर रासलीला करते नहीं घूमते, वे तो निर्विकार पुरुष हैं. वेसठशलाका पुरुषों में उनका अन्यतम स्थान है. पिछले २-३ वर्षों से हिन्दी जैन कृष्ण-साहित्य की खोज के दौरान कोई आधा सैकड़ा हस्तलिखित पुस्तकें उपलब्ध हुई हैं. इनमें कुछ तो काव्य की दृष्टि से अति सुंदर हैं तथा भाषा-शास्त्र की दृष्टि से भी उनका महत्त्वपूर्ण स्थान है. विशेषतया आदिकाल की कालावधि में रचित पुस्तकों का तो अपना ही महत्त्व है. हिन्दी-जन-कृष्ण साहित्य पर स्वतंत्र रूप से बहुत कुछ लिखा जा सकता है. इस छोटे से लेख में उसके विषय में कुछ थोड़ा-सा उल्लेख भर दिया जा रहा है. इस दृष्टि से कि पाठक को 'जैन-कृष्ण-साहित्य' का एक ही स्थान पर परिचय मिल सके. प्रस्तुत लेख का कलेवर भी काफी बढ़ गया है, इसलिए हिन्दी-जैन-कृष्ण-साहित्य की विभिन्न कृतियों का विशेष रूप से उल्लेख न करते हुए सूची मात्र दे देना पर्याप्त होगा. ग्रंथ के नाम के साथ लेखक का नाम, रचना संवत् तथा उपलब्धि का स्थान भी दिया जा रहा है. क्रम सं० रचना का नाम रचयिता समय उपलब्धि का स्थान १. नेमिनाथरास सुमतिगणि वि०सं० १२७० हस्तलिखित प्रति जैसलमेर दुर्ग स्थित भण्डार में उपलब्ध २. गयसुकुमालरास देल्हण १३१५-२५ हस्तलिखित प्रति जैसलमेर दुर्ग स्थित बड़े भण्डार में
उपलब्ध ३. पंचपाण्डवचरितरास शालिभद्रसूरि १४१० गुर्जर रासावली गा०ओ० सीरीज बड़ौदा, पृ०१-३४
तथा 'आदि काल के अज्ञात हिन्दी रास काव्य' पृ० १२६
५८ पर उपलब्ध. ४. प्रद्युम्नचरित सधारु १४११ जैन शोध संस्थान, जयपुर से प्रकाशित, ५. बलभद्र रास यशोधर वि० सं० १५८५ दि० जैन मन्दिर बड़ा, उदयपुर
नेमिजिनेश्वररासो ब्रह्मरायमल्ल १६१५ दि० जैन मन्दिर पटौदी ७. प्रद्युम्नरासो
१६२८ दि० जैन मन्दिर लूणकरणजी पांड्या, जयपुर
१. (१) खुमाणरासो (२) वीसलदेवरासो (३) पृथ्वीराजरासो (४) जयचंद प्रकाश (५) जयमयंकजस चन्द्रिका (६) परमालरासो (७)
रणमल छन्द (८) खुसरो की पहेलियाँ (8) विद्यापति की पदावली.
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