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७५० : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय
कुछ पूर्ण रूप से विस्तार से चरित उपस्थित करती हैं तो कुछ प्रसंग विशेष को संक्षिप्त रूप में प्राप्त सभी रचनाओं का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है(१) दि० ब्रह्म जिनदास रचित रामचरित काव्य ही राजस्थानी का सबसे पहिला रामकाव्य है. इस रामायण की रचना सं० १५०८ में हुई है. इसकी हस्तलिखित प्रति डुगरपुर के दि० जैन मंदिर के शास्त्रभण्डार में है. देणिए-राष्ट्र भारती के दिस०६३ में प्रकाशित मेरा लेख. (२) रामसीतारास (भास १२) जिनदास गुणकीर्ति, नैनवा दि० शास्त्रभण्डारस्थ गुटका प्राप्त हुआ है. देखो राष्ट्रभारती फरवरी ६४ में प्रकाशित मेरा लेख. (३) इसके बाद के राजस्थानी रामकाव्य में 'जैन गुर्जर कविओ' भाग १ के पृष्ठ १६०६ में उपदेश गच्छीय उपाध्याय विनयसमुद्र रचित पद्मचरित का उल्लेख पाया जाता है. यह रामकाव्य सं० १६०४ के फाल्गुन में बीकानेर में रचा गया एव पद्मचरित्र के आधार से बनाया गया है. विनयसमुद्र के पद्मचरित की प्रति गौडीजी भण्डार उदयपुर में भी है. कवि के सम्बन्ध में राजस्थानभारती में मेरा लेख दृव्य है. (४) पिगलशिरोमणि-सुप्रसिद्ध कवि कुशललाभ ने जैसलमेर के महाराजकुमार हरराज के नाम से यह मारवाडी भाषा का सर्वप्रथम छन्दग्रंथ बनाया है. इसमें उदाहरण रूप में रामकथा वर्णित है. राजस्थानी शोध संस्थान, जोधपुर से यह ग्रंथ प्रकाशित हो चुका है. (५) सीताचउपई—यह ३२७ पद्यों की छोटी-सी रचना है. इसमें सीता के चरित्र की प्रधानता है. खरतरगच्छ के जिनप्रभ सूरि शाखा के सागरतिलक के शिष्य समयध्वज ने इसकी रचना संवत् १६११ में की. श्रीमाल भरदुला गोत्रीय गुजर वंशीय गढ़मूल के पुत्र भीषण और दरगहमल के लिये इसकी रचना हुई है. इसकी संवत् १७०२ में लिखित १६ पत्र की प्रति हंसविजय लाइब्रेरी, बड़ौदा में है. (६) सीताप्रबंध--यह ३४६ पद्यों में है. १६२८ में रणथंभोर के शाह चोखा के कहने से यह रचा गया. 'जनगुर्जर कविओ' भाग ३ पृष्ठ ७३३ में इसका विवरण मिलता है. इसकी प्रति नाहर जी के संग्रह (कलकत्ते) में भी है. (७) सीताचरित-यह सात सर्गों का काव्य पूर्णिमागच्छीय हेमरतनरचित है. महावीर जैन विद्यालय तथा अनन्तनाथ भंडार बम्बई एवं बड़ौदा में इसकी प्रतियाँ हैं. पद्मचरित्र के आधार से इसकी रचना हुई है. रचनाकाल का उल्लेख नहीं किया, पर हेमरत्न सूरि के अन्य ग्रंथ संवत् १६३६-४५ में (मारवाड़ में) रचित मिलते है. अतः सीताचरित की रचना इसी के आसपास होनी चाहिए. रामसीतारास--तपागच्छीय कुशलवर्द्धन के शिष्य नगर्षि ने इसकी रचना १६४६ में की. हालाभाई भंडार, पाटण में इसकी प्रति है. जैन गुर्जर कविओ' भाग १ पृष्ठ २६० में इसकी केवल एक ही पंक्ति उद्धृत होने से ग्रंथ की पद्यसंख्यादि परिमाण का पता नहीं चल सका. (8) लवकुशरास-पीपलच्छ के राजसागर रचित इस रास में राम के पुत्र लव-कुश का चरित्र वर्णित है. पद्यसंख्या ५०५ (ग्रंथाग्र ६००) है. संवत् १६७२ के जेठ सुदि बुधवार को थिरपुर में इसकी रचना हुई है. उपर्युक्त हालाभाई, पाटण भंडार में इसकी १२ पत्रों की प्रति है. (१०) लवकुश छप्पय गा० ७० भ० महीचन्द्र (डूंगरपुर दि० भ०) (११) सीताविरह लेख – इसमें ६१ पद्यों में सीता के विरह का वर्णन (पत्रप्रेषण के रूप में) किया गया है. संवत् १६७१ की द्वितीय आषाढ़ पूर्णिमा को कवि अमरचन्द ने इसकी रचना की. जैन गुर्जर कविओ, भाग १, पृष्ठ ५०८ में इसका विवरण मिलता है.
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