SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 759
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२० wwwwwwwwwww १५७ २१६ २३२ २३७ " २८७ ७२४ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय ३. भदंतणागज्जुणिया तु पढंति ४. भदंतणागज्जुणिया वृत्तिपत्र १६६ पृ०२ भदंतणागज्जुणिया पढंति १३६ १८३ पृ० २ एत्थ सक्खी भदन्तनागार्जुनाः १६८ पृ० २ ७. नागार्जुनीयास्तु १६१ २०१ पृ० १ ८. णागज्जुणीया २०७ २३६ पृ० १ भदन्त णागज्जुणा तु २४५ पृ० १ १०. णागज्जुणिया उ २१६ णागज्जुणा वृत्तिपत्र २५३ पृ० २ १२. णागज्जुणा तु २५६ पृ० १ १३. णागज्जुणा १४. णागज्जुणा तु पढंति वृत्तिपत्र ३०३ पृ० १ १५. भदन्तनागार्जुनीया तु यहां पर आचारांगचूणि और शीलांकाचार्य रचित वृत्ति के जो पृष्ठ-पत्रांक आदि दिये गये हैं वे आगमोद्धारक पूज्य आचार्य श्री सागरानन्दसूरि सम्पादित आवृत्ति के हैं. उपर्युक्त पंद्रह उल्लेखों में से पांच उल्लेख शीलांकीय वृत्ति में नहीं हैं. बाकी के दस उल्लेख शीलांकाचार्य ने दिये हैं. वे सभी उल्लेख आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध की चूणि-वृत्ति में ही हैं. द्वितीय श्रुतस्कन्ध की चूणि-वृत्ति में नागार्जुनीयवाचना का कोई उल्लेख नहीं है. यहां आचारांग-चूणि में से नागार्जुनीयवाचना के जो पंद्रह उल्लेख उद्धृत किये गये हैं उनमें सात जगह अति पूज्यतासूचक 'भदन्त' विशेषण का प्रयोग किया गया है जो अन्य किसी चूणि-वृत्ति आदि में नहीं है. इससे अनुमान होता है कि इस चूणि के प्रणेता, जिनके नाम का उल्लेख कहीं भी नहीं मिलता, कम-से-कम नागार्जुनीय परंपरा के प्रति आदर रखने वाले थे. (३) सूत्रकृतांग की चूणि में नागार्जुनीय वाचना के जो उल्लेख मिलते हैं उन सभी स्थानों पर 'नागार्जुनीयास्तु' ऐसा लिखकर ही नागार्जुनीय वाचनाभेद का उल्लेख किया गया है जो प्रथम श्रुतस्कन्ध में चार जगह व दूसरे श्रुतस्कन्ध में नौ जगह पाया गया है. आचार्य शीलांक ने अपनी वृत्ति में 'नागार्जुनीयास्तु पठन्ति' लिखकर नागार्जुनीय-वाचना का उल्लेख चार जगह किया है. संभव है पिछले जमाने में नागार्जुनीय वाचनाभेद का कोई खास महत्त्व रहा न होगा. प्रसंगवशात् एक बात की सूचना करना हम यहां उचित समझते हैं कि सूत्रकृतांगणिकार 'अणुत्तरणाणी-अणुत्तरदंसी अणुत्तरणाणदंसणधरो, एतेण एकत्वं णाण-दसणाणं ख्यापितं भवति' [श्रुत १ अध्य० २. उ० २ गा० २२] इस उल्लेख से एकोपयोगवादी आचार्य सिद्धसेन के अनुयायी मालूम होते हैं. (४) उत्तराध्ययनसूत्र की चुणि में चूर्णिकार आचार्य ने पाँच स्थानों पर नागार्जुनीय वाचनाभेद का उल्लेख किया है. पाइय-टीकाकार वादिवेताल शान्तिसूरिजी ने भी इन पाँच स्थानों पर नागार्जुनीय वाचनाभेद का उल्लेख किया है. किन्तु सिर्फ एक स्थान पर नागार्जुनीय का नाम न लेकर 'पठ्यते च' ऐसा लिखकर नागार्जुनीय वाचनाभेद का उल्लेख किया है. [पत्र २६४-१]. कुछ विद्वान् स्थविर आर्य देवधिगणि के आगम-व्यवस्थापन व आगम-लेखन को वालभी वाचनारूप से बतलाते हैं किंतु ऊपर वालभी वाचना के विषय में जो कुछ कहा गया है उससे उनका यह कथन भ्रान्त सिद्ध होता है. वास्तव में वालभी वाचना वही है जो माथुरीवाचना के ही समय में स्थविर आर्य नागार्जुन ने वलभीनगर में संघसमवाय एकत्र कर जैन आगमों का संकलन किया था. AAMAARIGINARICA WINNINNINISTENINवानाNANENTEN Jaironmental For Private Personaruse my romartembrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy