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६६८ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : तृतीय अध्याय पंक्ति १८. श्री चण्डमहासेन प्रचण्डरिपुदर्पसातनः स इह । धवलपुरीतो' व्रजति (च) आहेटक कौतुकत्वेन ।। (१६) अ
[ट] वी दृष्टा चेयं खणीया रम्य१६. वृक्षगुणयोगात् । विषमतरदुर्गगहना प्रतिदिनमभिगच्छता तेन ॥ (२०) सादूलसिंघशूकरवृकहरिण शिवाकुला
भीमा। आ२०. सन्न-स्थित-सलिला योग्या देवालय-सदा।। (२१) शाभतर कृत पुण्योदय समाज्जिताऽशेषद्रव्यनिचयेन.
चण्डस्वामि निवेश [श्च] २१. ण्डेन कृत प्रचण्डेन ॥ (२२) वसुनवाष्टौवर्षा (:) गतस्य कालस्य विक्रमाख्यस्य वैशाखस्य सितायां रविवार
युतद्वितीयायां ।। (२३) चन्द्रे रो२२. हिणीसंयुक्ते लग्ने सिंघस्य शोभने योगे सकलकृतमंगलस्य ह्यभूत्प्रतिष्ठास्य भवनस्य ।। (२४) गम्भीर विपुलं
शुभासयमलं. २३. सत्तापहृत्सेवितं [1] जंतूनां मनसः प्रसादजननं सेव्यं शुभं निर्मलं ॥ कोवेयां दिशि संस्थितं च सुमहत् श्रेष्ठ
तटाकं ततः चि२४. तस्येह सतां विभाति सदृशं तेनैवे तत्तानितं ।। (२५) यत्कीर्त्यां जगति प्रकाशितमलं तत्रोरु शुभ्र यं सः [1]
नानापक्षिगणा रवं: श्रुति२५. सुखैश्चण्डस्य तद्गीयते. पूर्वेणापि शिला च यः सुघटितर्बद्धा विशाला दृढ़ाः [1] वाणी तस्य विभाति पुण्य
निचयस्यां श्रोनिधिः २६. साश्वतः ।। (२६) आम्राली निम्वपंक्तिर्वरवाकुलयुता चम्पका शिग्रुसज्जाः [1] सज्जाती मल्लिकानां सतत
कुसुमिता पंक्तयः चट्पदस्थ [1] खेद है कि उपर्युक्त शिलालेख की आधुनिक स्थिति का कुछ भी पता नहीं है. वास्तव में समूचे धौलपुर व भरतपुर क्षेत्र में प्रर्याप्त शोध-खोज-कार्य होना चाहिए. तब ही उस क्षेत्र के प्रारंभिक पुरातत्त्व एवं इतिहास का समुचित मूल्यांकन हो सकता है. राजस्थान का यह प्रदेश अति महत्त्वपूर्ण है और इसके पुरातत्त्वीय स्थलों की खोज नितान्तावश्यक है.
१. अर्थात् 'धौलपुर. इस नगरी का वृत्त आगे दिया गया है. २. अर्थात् चण्डमहासेन का इष्टदेव 'चण्डस्वामी' का सूर्य मंदिर. ३. अर्थात् विक्रम संवत्. ४. काल एवं ठीक समय की गणना यहाँ समाप्त होती है. २१ वी पंक्ति में संवत् तो अंकों के स्थान पर अक्षरों में अंकित है (अर्थात् विक्रम
संवत् ८६८-०४२ ई०). सिंह के स्थान पर सिंघ शब्द का प्रयोग भी महत्त्वपूर्ण है. ५. प्रतिलिपि में यत्र तत्र कुछ अशुद्धियाँ प्रतीत होती हैं. इन्हें ठीक करना आवश्यक है.
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