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मुनि नगराज : महावीर और बुद्ध-जन्म व प्रव्रज्यायें: ६४५ जिस अश्व पर बुद्ध सवार होकर घर से निकलते हैं, उसका नाम कन्थक था, वह गर्दन से लेकर पूँछ तक अट्ठारह हाथ लम्बा था.
एक सहस्र कोटि हाथियों जितना बल बुद्ध में बतलाया गया है. जैन परम्पराओं के अनुसार चालीस लाख अष्टापद का बल एक चक्रवर्ती में होता है और तीर्थंकर तो अनन्त बली होते हैं. महावीर ने जन्मजात दशा में ही मेरु को अंगूठे मात्र से ही प्रकंपित कर इन्द्रादि देवों को संदेहमुक्त किया. बुद्ध के जीवन-चरित में ऐसी कोई घटना नहीं मिलती, पर योगबल से यदा-कदा वे नाना चामत्कारिक स्थितियाँ सम्पन्न करते हैं.
महावीर और बुद्ध के जन्म और प्रव्रज्या प्रकरणों का यह एक अवलोकन मात्र है. इतने मात्र से उनके पूर्ण अध्ययन की अपेक्षा पूरी नहीं हो जाती. कहना चाहिए, वे प्रकरण शोध-सामग्री के अनूठे भंडार हैं. गवेषक अपनी जिज्ञासा के अनुकूल बहुत कुछ पा सकता है.
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