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५८० : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : तृतीय अध्याय हिन्दुस्तान के ऐतिहासिक युग के उद्गमकाल के रूप में गिने जाने वाले इस युग के इतिहास के अभ्यासियों का ध्यान आकृष्ट करने की दृष्टि से प्रस्तुत लेख में, जैनमतानुसार वैशाली के गणतंत्रात्मक राज्य के राजा माने जाने वाले चेटक और उससे संबंधित राजाओं के विषय में जैन ग्रंथों में प्राप्त सामग्री का सारात्मक अंश यहाँ प्रस्तुत किया जाता है.
तीर्थंकर महावीर के वंश के साथ चेटक का सम्बन्ध
यह पहले ही कहा जा चुका है कि तीर्थंकर श्री महावीर की माता त्रिशला-क्षत्रियाणी चेटक राजा की बहन थी. इसका सबसे प्राचीन प्रमाण जैन आगम आवश्यक-चूणि में प्राप्त होता है. इस चूणि का रचनाकाल अभी तक अनिर्णीत ही है फिर भी वह विक्रम की आठवीं सदी मे अधिक अर्वाचीन नहीं है, यह निश्चित ही है. आवश्यक सूत्र के टीकाकार हरिभद्र का समय विक्रम संवत् ८०० के आस-पास मैंने निश्चित किया है. (देखो जैन साहित्य संशोधक खण्ड १, अंक १, पृष्ठ ५३) आचार्य हरिभद्र ने अपनी संस्कृतटीका में इस चुणिसे सैकड़ों उद्धरण लिये हैं, इससे स्वतः प्रमाणित होता है कि चूणि का रचनाकाल हरिभद्र से पूर्व का है. इसी चूर्णि में लिखा है कि महावीर की माता त्रिशला चेटक की बहन थी और त्रिशला के बड़े पुत्र 'नन्दिवर्द्धन' की पत्नी-महावीर की भौजाई, चेटक की पुत्री होती थी. पाठ यह है'भगवतो माया चेडगस्स भगिणी, भो (जा) यी चेडगस्स धूया.' भगवान् महावीर की माता, चेटक की भगिनी,' भौजाई चेटक की पुत्री" इस उल्लेख को ध्यान में रखकर बाद के ग्रंथकारों ने भी कहीं-कहीं चेटक को महावीर के मातुल (मामा) होने का उल्लेख किया है. जैन आगमों में सबसे प्राचीन और प्रथम आगम आचारांग में महावीर की कुछ जीवनी प्राप्त होती है-उसमें एक स्थान पर महावीर की माता का एक नाम 'विदेहदिन्ना' भी आता है. जैसा कि-'समणस्स णं भगवओ महावीरस्स अम्मा वासिट्ठस्स गुत्ता तीसे णं तिन्नि नामधिज्जा एवमाहिज्जति तंजहा-तिसला इ वा विदेहदिन्ना इ वा पियकारिणी इ वा" (आचारांग आगमोदय समिति द्वारा प्रकाशित पृ० ४२२) श्रमण महावीर की माता के, जिसका वाशिष्ठ गोत्र था, इसके तीन नाम थे- एक त्रिशला, दूसरा विदेहदिन्ना और तीसरा प्रियकारिणी. विदेहदिन्ना के व्युत्पत्त्यर्थ से यह जाना जाता है कि इनका जन्म विदेह के राजकुल में हुआ था. माता के इस कुलसूचक नाम से महावीर का भी एक नाम विदेहदिन्न था जिसका उल्लेख आचारांग सूत्र के उपर्युक्त सूत्र के बाद तुरत ही आया है जैसा कि--"समणे भगवं महावीरे नाए नायपुत्ते नायकुलनिव्वत्ते विदेहे विदेहदिन्ने विदेहजच्चे विदेहसूमाले" (पृ० ४२२) ये दोनों अवतरण कल्पसूत्र में भी हैं. वहाँ टीकाकार विदेहदिन्न की व्याख्या इस प्रकार करते हैं—'विदेहदिन्ना त्रिशला तस्या अपत्यं वैदेहदिन्नः.' अब हम देखेंगे कि वैशाली विदेह का ही एक भाग था, अतएव चेटक के वंश को विदेह-राजकुल कहा जाना स्वाभाविक ही है. इस प्रकार महावीर की माता त्रिशला विदेह राजकुल के चेटक की बहन होती थी, यह आवश्यक चूणि एवं आचारांग सूत्र के उल्लेख से अधिक स्पष्ट हो जाता है.
त्रिशला के बड़े पुत्र और महावीर के बड़े भाई नंदिवर्द्धन की पत्नी चेटक की पुत्री थी, यह मैं ऊपर कह आया हूं. इसका भी उल्लेख आवश्यकचूर्णि में आता है कि चेटक की किस लड़की ने किस राजा के साथ विवाह किया है. इसके अनुसार चेटक की सात पुत्रियां थीं जिनमें से छह के विवाह हो चुके थे और एक अविवाहित ही रही. इन छहों में ५ वी पुत्री जेष्ठा का विवाह नन्दिवर्द्धन के साथ हुआ था. यह उल्लेख इस प्रकार है-'जेट्ठा कुंडग्गामे वद्धमाणसामिणो जेट्ठस्स नन्दिवद्धणस्स दिन्ना' जेष्ठा (नाम की कन्या) को कुण्डग्राम में वर्द्धमान (महावीर का मूल नाम) स्वामी के जेष्ठ (बन्धु) नन्दिवर्द्धन को दी थी. इसका उल्लेख आचार्य हेमचन्द्र ने अपने महावीरचरित्र में भी किया है :
१. देखो-कल्पसूत्र, धर्मसागर गणि कृत किरणावली टीका पृ० १२४ चेटक महाराजस्य भगवन्मातुलस्य. २. कल्पकिरणावली धर्मसागर कृत पृ०५६३, कल्पसुबोधिका विनय वजय कृत पृ० १४४,
ICCCES.
Jair Edcats
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