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________________ डा० नथमल टाटिया निदेशक, प्राकृत जैनशास्त्र और अहिंसा - शोधसंस्थान, मुजफ्फरपुर, बिहार. 'मोक्षमार्ग स्वनेतारम्' के कर्ता पूज्यपाद देवनन्दि पूज्यपाद देवनन्दिकृत सर्वार्थसिद्धि नामक तत्त्वार्थवृत्ति के प्रारम्भ में निम्नांकित श्लोक उपलब्ध होता है : मोक्षमार्गस्य नेतारं भेणारं कर्मभूभृताम् ज्ञातारं विश्वतस्वानां वन्दे सद्गुणलब्धये. इस श्लोक के कर्तृत्व के बारे में कुछ वर्ष पहले ऊहापोह चला था और यह सिद्ध करने की चेष्टा की गई थी कि इसके कर्ता तत्त्वार्थसूत्रकार आचार्य उमास्वामी है. पर वस्तुस्थिति अन्यथा प्रतीत होती है. (१) आप्तपरीक्षा में आचार्य विद्यानन्द ने इस श्लोक के कर्ता के लिए सूत्रकार और शास्त्रकार ये दोनों शब्द प्रयुक्त किये हैं. अतएव संशय होना स्वाभाविक था. पर इन्हीं विद्यानन्द के तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक के प्रारम्भ में की गई परापरगुरुप्रवाह विषयक आध्यान की चर्चा से तथा आप्तपरीक्षा गत प्रयोगों से यह स्पष्ट सिद्ध हो जाता है कि सूत्रकार शब्द केवल आचार्य उमास्वामी के लिए ही प्रयुक्त नहीं होता था, इसका प्रयोग दूसरे आचार्यों के लिए भी किया जाता था. (२) उसी वालोकयातिक के अन्तर्गत तत्त्वार्थसूत्र के प्रथमसूत्र की अनुपपत्ति उपस्थापन और उसके परिहार की चर्चा से भी यह स्पष्ट फलित होता है कि आचार्य विद्यानन्द के सामने तत्त्वार्थसूत्र के प्रारम्भ में 'मोक्षमार्गस्य नेतारम् * श्लोक नहीं था. (३) अष्टसहस्री तथा आप्तपरीक्षान्तर्गत कुछ विशेष उल्लेखों से यह सिद्ध होता है कि आचार्य विद्यानन्द के मतानुसार इसी श्लोक के विषयभूत आप्त की मीमांसा स्वामी समन्तभद्र ने अपनी आप्तमीमांसा में की है. इन तीनों मुद्दों पर हम क्रमश: विचार करेंगे. सूत्रकार - शास्त्रकार परापरगुरुप्रवाह की चर्चा के प्रसंग में आचार्य विद्यानन्द ने तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक के प्रारम्भ ( पृ० १ ) में अपरगुरु की व्याख्या इस प्रकार की है : अपरगुरुगंणधरादिः सूत्रकारपर्यन्तः यहां सूत्रकार शब्द से केवल आचार्य उमास्वामी का बोध अभिप्रेत नहीं हो सकता, पर वे तथा उनके पूर्व तथा पश्चाद्वर्ती अन्य आचार्य भी यहां अभिप्रेत हैं. अन्यथा आचार्य उमास्वामी के बाद के आचार्यों को आध्यान का विषय बनाने की परम्परा असंगत प्रमाणित होगी. आचार्य विद्यानन्द स्वयं अपनी अष्टसहस्त्री के प्रारम्भ में स्वामी समन्तभद्र का जो अभिवन्दन करते हैं वह भी असंगत ठहरेगा. आचार्य आदिदेवसूरि अपने स्याद्वादरत्नाकर ग्रंथ के आदि में आचार्य विद्यानन्द के एतेनापरगुरुगंणपरादिः सूत्रकारपर्यन्तो व्याख्यांत – इस वचन की प्रतिध्वनि इस प्रकार करते हैं - एतेनापरगुरुरपि गणधरादिरस्मद्गुरुपर्वन्तो व्याख्यातः ५. ४ १. देखो - अनेकान्त, वर्ष ५, (किरण ६-७, ८-ह तथा १०-११ ). २. श्राप्तपरीक्षा, पृ० १२ - किं पुनस्तत्परमेष्ठिनो गुणस्तोत्र शास्त्रादौ सूत्रकारा: प्राहुः ३. वही, पृ० २ – कस्मात्पुनः परमेष्ठिनः स्तोत्र शास्त्रादौ शास्त्रकाराः प्राहुः. ४. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, पृ० १. ५. स्याद्वादरत्नाकर; पृ० ५. Janicatrenatht Forate & Pers www.aelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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