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________________ ५४० : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-प्रन्य : तृतीय अध्याय पुरों के स्वामियों से युद्ध का वर्णन है. ऋग्देव (७-१८) में दिवोदास के पोत्र सुदास द्वारा एक शत्रुदल के पराजय का वर्णन है, उसमें निम्नलिखित जातियों तुर्वसु, मत्स्य, भृगु, द्रुध्यु, पक्थ, मलानस, अलिनस्, शिव, विषाणिन्, वैकर्ण अनु अज, शिघु और यन्तु का उल्लेख है. इन जातियों के संबन्ध में विद्वानों को बहुत कम मालूम है. श्री हरित कृष्णदेव ने इनमें से बहुत कुछ जातियों की पहचान मिश्रदेशीय रिकाडों से की है. उनके कथनानुसार ये बारहवीं शताब्दी ई० पूर्व की मध्य-एशिया की जातियां थीं, तथा कुछ द्रविड़ों की सजातीय और कुछ आर्यों की सजातीय थीं. वेदरचना की पूर्ववर्ती तिथि यदि इन घटनाओं के आसपास मानी जाय तथा उत्तरवर्ती तिथि अवेस्ता के प्राचीन भागों की रचना सातवीं शता० ई० पूर्व और अखेमेनियन राजाओं के प्राचीन फारसी में लिखे गये अभिलेखों की, जिनसे वैदिक भाषा का बहुत कुछ मिलान होता है-तिथि छठी शता ई० पूर्व मानी जाय तो हम वेदरचना का समय दसवीं ईसा पूर्व कह सकते हैं. इसी समय आर्य लोग समूहों (ग्रामों) में भारत आये थे. मिश्र और चाल्डिया के प्रागैतिहास और इतिहास की घटना की तुलना में आर्यों के आने की घटना कोई बहुत प्राचीन नहीं बैठती. कतिपय विद्वान आर्यों के आगमन की बात ज्योतिष गणना के अनुसार बहुत सुदूर प्राचीन काल में ले जाते हैं पर उस ज्योतिष गणना की व्याख्या वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर की जाय तो आर्यों के आगमन का समय बहुत बाद बैठता है. इसीलिए वैदिक काल की तिथि के निर्णय के लिये हमारे पास सुरक्षित पक्ष भाषाविज्ञान और पुरातत्त्व ही हैं. कुछ विद्वान् आर्यों का भारत में बाहर से आना नहीं मानते. वे इन्हें यहीं का निवासी मानते हैं पर उनका यह कथन अनुमानाश्रित है. मानववंश विज्ञान और भाषाविज्ञान के अध्ययन से उनका यह मत पुष्ट नहीं होता. आर्यों के बाहर से आने की घटना कोई कल्पित नहीं है तथा उसका उल्लेख भी वेदों तक ही सीमित नहीं. वह ऐसी घटना है जिसकी ध्वनि बाद के साहित्य में भी मिलती है. संस्कृत पुराणों में असुरों की उन्नत भौतिक सभ्यता का तथा बड़े-बड़े प्रासाद और नगर बनाने की कला का उल्लेख है. ब्राह्मण, उपनिषद् और महाभारत आदि परवर्ती साहित्य में असुरों की अनेक जातियों का उल्लेख हैं जैसे कालेयनाग आदि. ये सारे भारत में फैले थे. इनके अनेक स्थानों पर बड़ेबड़े किले थे. युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ का मण्डप इसी असुर जाति के मय नामक व्यक्ति ने बनाया था. महाभारत और पुराणों में ब्राह्मण-क्षत्रियों के साथ अनार्य नाग और दासों के विवाह के अनेक उल्लेख मिलते हैं. ये शान्तिप्रिय, उन्नतिशील और व्यापारी थे. अपने इन उपायों से ये भौतिक सभ्यता में बहुत बड़े चढ़े थे. इन पर भौतिक सभ्यता से पिछड़ी पर युद्धप्रिय एवं उद्यमशील तथा समृद्ध भाषा से सम्पन्न आर्य जाति ने आक्रमण प्रारम्भ किया. उन्हें भौतिक सभ्यता के वैभव सुख में पली सुकुमार अनार्य जाति को जीतना कठिन प्रतीत नहीं हुआ और बड़ी सरलता से उसे उन्होंने वश में कर लिया. आर्यों के भारत में प्रबल दो आक्रमण हुए ऐसा विद्वानों का अनुमान है. आर्य लोग प्रायः झुण्डों (ग्रामों) में आये थे एवं अपने साथ बड़ा पशुधन तथा आशुगामी अश्वों के रथ लाये थे. वे प्रकृतिपूजक थे तथा उन्हें होम और यज्ञ के रूप में पशुबलि, यव, दूध, मक्खन और सोम चढ़ाते थे. वे अपनी पूर्व निवासभूमि-लघु एशिया (Asia minor) और असीरिया बाबुल से कुछ धार्मिक मान्यताएं, कुछ कथा इतिहास (प्रलय कालीन जलप्लावन) आदि भी साथ में लाये थे. उनका जातीय देवता इन्द्र था जो कि बाबुल के देवता मईक से मिलता-जुलता है. अपनी समृद्ध भाषा से अनार्यों को विशेष प्रभावित किया था. आर्यों ने यहाँ बसकर यहां के निवासियों को ही अपने में परिवर्तित नहीं किया बल्कि स्वयं बहुत हदतक उनमें परिवर्तित हो गए. आर्य संस्कृति के निर्माण में आर्यों की अपेक्षा अनार्यों का बड़ा भाग है. जब अनार्य, आर्यों में सम्मिलित हुए तो उस जाति के समृद्ध कवियों ने आर्यभाषा में अपने भी भाव व्यक्त किये, पद रचनायें की. उन्होंने अपने दार्शनिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक कथानक, आख्यान आदि सामग्री को आर्य भाषा में प्रकट करना शुरू किया जैसे कि आज का भारतीय अपने साहित्य को अंग्रेजी में प्रकट करता है. उससे आर्य साहित्य में अनार्य संस्कृति का बहुत बड़ा भाग आ गया. अनार्य साहित्यिकों ने आर्यों की भाषा को सम्भाला, सुधारा. दो प्रबल संस्कृतियों के संघर्ष का परिणाम ही यह होता है. Private Lywordarne prary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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