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मुनि श्रीसन्तबालजी
जनशासन और जिनशासन
'सव्वे जीव करुं शासनरसि, ऐसी भावदया मन उलसी' इस प्रसिद्ध वाक्य का अर्थ स्पष्ट है कि जब सर्वांगीण और सच्चा आत्मज्ञान प्रकट होता है तब प्राणि-मात्र को जिनका रसिक बनाने की भाव-दया अपने आप उत्पन्न हो जाती है. परन्तु जिनशासन की इमारत जनशासन के दृढ़ पाये के विना लम्बे समय टिक नहीं सकती. इसी से उत्तराध्ययन सूत्र में कहा है कि चार अंग मिलना दुर्लभ है. उनमें भी मानवता सबसे पहला अंग है. वह मूल गाथा इस प्रकार है :
चत्तारि परमंगाणि, दुल्लहाणीह जन्तुणो,
माणुसत्तं सुई सद्धा संजमम्मि य वीरियं । मनुष्यत्व अथवा मानवता अर्थात् जनशासन की आधारशिला है ! भगवान् ऋषभनाथ इस अवसर्पिणी काल में, इस क्षेत्र में सर्व प्रथम तीर्थंकर भगवान् ऋषभनाथ ने युगलिक धर्म का निवारण करके इसी कारण सुयोग्य जनशासन का बीजारोपण किया था. उन्होंने स्वयं, जब वे स्वयं क्षायिक सम्यग्दृष्टि थे तब, जनता को रोजी-रोटी के लिये खेती, पशुपालन, व्यवहार के लिये कलम और सुरक्षा के लिये शस्त्रकला सीखने की प्रेरणा की थी. भारत के इस आदि समाज के नेता ने लोगों को इतना कर्मठ एवं स्वावलम्बी बनाया कि जिससे व्यक्ति स्वातंत्र्य की रक्षा के साथ-साथ सामाजिक जीवन का आनन्द मिला करे और मानव जाति का विकास होता रहे, क्योंकि मानव जाति निर्भय और शान्त हो तो ही संसार के छोटे मोटे सभी जीव निर्भयता और शान्ति अनुभव करने का सौभाग्य प्राप्त कर सकते हैं. ऋषभयुग में मानवबुद्धि और मानवहृदय का सुसमन्वय था. भले ही कर्मठता कच्ची थी. तत्पश्चात् विविध युग, आये, कालरात्रियां भी आईं और बीत गईं. इन युगों में हृदय और बुद्धि का समन्वय हुआ, साथ ही कर्मठता का विकास हुआ और अपरंपार बौद्धिक विकास हुआ. भगवान् महावीर भगवान महावीर का काल एक ओर जहां विषम था, दूसरी ओर चारित्र्य के चमत्कारों का भी था. उस युग में जनशासन के पाये को मजबूत करने के लिये जो भगीरथ पुरुषार्थ हुये उनमें से नीचे लिखी दो तीन घटनाएं उस रहस्य को स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त होगी.
[१] रत्न-कम्बलों का एक विक्रेता निराश स्वर में गुन-गुनाता हुआ राह पर जा रहा है. वह कहता है—मगध जैसे विशाल राज्य का और राजगृही जैसी राजधानी का राजा श्रेणिक भी यदि मेरा एक रत्न-कम्बल नहीं खरीद सकता तो मेरी कला की कद्र और कहां होगी ? क्या मगध राज्य भी अब अकिंचन हो गया है ? अटारी में खड़ी हुई भद्रा सेठानी इन उद्गारों को सुन कर व्यापारी को बुला कर समझाती है—'भाई, मगध राज्य
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