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४२२ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति ग्रन्थ : द्वितीय अध्याय
के उल्लेख से मेल खाता है. मक्खलि गोशाल के नियतिवाद का तात्त्विक रूप वस्तुतः गवेष्य है. 'नियति' देव का रूप है अथवा कर्म का यह प्रश्न विद्वानों द्वारा विचारणीय है.
देववादी 'देव' को ही प्रत्येक कार्यसिद्धि का हेतु मानते हैं किन्तु जैन दार्शनिक सिद्धसेन दिवाकर ने एकान्त कालवाद, स्वभाववाद, नियतिवाद, पूर्वकृतवाद, पुरुषार्थवाद आदि की अलग-अलग एकान्त मान्यता को मिथ्यावाद कहते हुए इन सबके समुदाय को ही कार्यसाधक माना है
कालो सहाव यिई पुव्वकयं पुरिसकारगंता । मिच्छत्तं ते चेत्र उ, समासश्र होंति सम्मतं ॥
-सन्मतितर्क प्रकरण तृतीय खण्ड
गीताकार ने भी किसी भी कर्म की सिद्धि के लिये अधिष्ठन, कर्त्ता, भिन्न-भिन्न साधन, भिन्न-भिन्न चेष्टाएँ तथा देव - ये पाँच हेतु माने हैं. "
१. पंचैतानि महाबाहो कारणानि निबोध मे । सांख्ये कृतान्ते प्रोक्तानि सिद्धये सर्वकर्मणाम् ।। अघिष्ठानं तथा कर्त्ता करणं च पृथग्विधम् । विविधाश्च पृथक् चेष्टा दैवं चैवात्र पंचमम् ॥
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