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३८८ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : द्वितीय अध्याय
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उपसंहार यह विज्ञान का युग है. प्रत्येक व्यक्ति की जिज्ञासा आज तीव्र हो उठी है. उसे कोरे शास्त्रीय तर्कों से ही सन्तोष नहीं. विज्ञान की तुला पर तोले बिना वह किसी भी सिद्धान्त से सहमत नहीं होता. फलतः सर्वोपरि सिद्धान्त-दर्शन आज वही माना जाने लगा है जो शास्त्र-सम्मत तो हो ही, विज्ञान-सम्मत भी हो. आज की इसी प्रवृत्ति को लक्ष्य में रखकर मैंने पुद्गल द्रव्य का यह विश्लेषण प्रस्तुत किया है. विश्लेषण दर्शन और विज्ञान, दोनों दृहियों से किया गया है. पुद्गल द्रव्य के विषय में स्थान-स्थान पर दर्शन और विज्ञान की समता तो दिखाई ही गई है, विषमता भी दिखाई गई है. इस निबन्ध में पुद्गल द्रव्य के लगभग सभी पहलुओं का विश्लेषण किया गया है-तुलनात्मक दृष्टि से भी और विवेचनात्मक दृष्टि से भी. विश्लेषण में शास्त्रीय भाषा का प्रयोग प्रायः नहीं किया है ताकि जन-साधारण उसे सहज ही समझ सके. इसी दृष्टि से यथास्थान अंग्रेजी पर्याय भी देता गया हूँ. कथित विषय की पुष्टि के लिये सन्दर्भ-ग्रन्थों का हवाला भी दिया गया है. ऐसे ही विश्लेषण जीव द्रव्य, धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य, आकाश द्रव्य और काल द्रव्य के विषय में आज अनिवार्यरूप से अपेक्षित हैं.
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