________________
मुनि कान्तिसागर : लोंकाशाह की परंपरा और उसका अज्ञात साहित्य : २३५ ।। बगडी एकवीसमें हव रे, बाबीसमें करूं षंभाइति साहा नरा सील व्रत उचरेरे, जहनो जस विष्यात । २५ सुगुण. उसमापुरि महिमा घणे रे, शेवीसमि थयो सार भवीक जन समझाय घणां रे, कहितां नावि पार । २६ सुगुण० चउमासि चउवीसमि रे, गुंदवचि गुणनो ठाम साहा पेथड पुत्र भणि घणुरे, जेहनु रूपसीह नाम । २७ सुगुण० पटोधर पंचवीसमि रे, सबि पुर सदगुरू सार दानादिक उछव घणां रे, वरत्यो जयजयकार । २८ सुगुण० साल दशम गुंदवचि रहा रे, श्रावक हर्ष अपार रूपकुमर तिहां सज थया रे, वरवा संजम सार । २६ सुगुण०
राग सामेरी गुंदवचि नगरि उछव घणां, साह पेथड पुत्र दिक्षा तणां
तेह तणां मनोरथा पहाचि अति घाए । ३० रूपकुमर तव सज थया, सामग्री सहुइ गहि गया
उछव करवा संघ सहु मलाए । ३१ संवत साल पंचोतरि, मागसिर श्रुदि बारसि सही करि
स्वहस्ते श्रीजसवंत संजम दीएए। ३२ दिनदिन प्रति चढती कला, रूपऋषि गुणे भला
गुण निला सास्त्र सुविध भणा भलाएं । ३३ पीपाडि पूज्य पधारीया, सतावीसमें घरीया
गुंदवचि अठावीस पुरां थयां ।३४ सीरोही सदगुरू आवइ, संघ सहु मली वधावि
गोरि गावि उगणत्रीसमि उछव थाविए । ३५ जालोरे त्रीस पुरा थयां, सीध गुणे सीरोही रह्या
योग संग्रहे पाटिण पूज्य पधारीयाए । ३६ वडोदरि वारू धरी, सामग्री पोति पुण्य भरी
तेत्रीसमि सदगुरूनी सेवा करी । ३७
ढाल फागनी सूरति सदगरू आवीया श्रीसंघ हरष अपार, वधावि वर कामनी बोली जयजयकार । ३८ वोहरा हापा हरष घणो थयो वीरजी वारू विचार दानादिक विध साचवि पारिष प्रमुष उदार । ३६ बुधि निधान बुहरानपुरि सानी माणिकदास धायतादिक संघ सहु मली वांदवा आवि उल्हास । ४० संघ सहु संतोषीया पोहोती मननी आस, अतीसइ समु सहु जाणयो श्री गुरू रह्या चउमास । ४१ पांत्रीसम पूज्य आवीया त्रांबावती मझारि संघ सहु साता घणी उलटि अंगि अपार । ४२
राग मारूणी कोणीक राजा रंजीयो, आव्या जाणी वीर जिणंदजी । तेम सोरठ संघ हरषीउ, सुणी आगम महा मुर्णिदजी, श्री गुरु धन्य धन्यजी । ४३
Mara
Jain Education Interational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org