________________
Jain Education International
मुनि कान्तिसागर : लोकाशाह की परंपरा और उसका अज्ञात साहित्य : २३३
ओघ मुहपत्ति कर आणि पारंभ वडो हुव्य प्रमांण । रूगि सोहि जसवंत रषि शुदगर तणों साचो रिषि ॥ वदहि जेम ज साहे वचन विकसे तेम सुगर वदन । वरसंघ कियो एम विचार भूज जूं दीओं गच्छ रो भार ॥ पूरव छाई
नयरी सीरोडी नयर पड़िया जसु गट । थरि तेंग थानक थपीउ महीपद ठवण प्रगट || छंद
पद ठवण शुदग तणो प्राभो ठांमि तेण उद्धव थयो । मालवो गुजर धा मंडल गछ संघ लोग हि गह्यो । साध - साधवी अनेक श्रावक वसहि सहि सजस वेंचाइये ॥ चारित्र खंडाधार चलि चति चोखि नवि चलि । नव धन्य धूना गच्छनायक नवो नेह अमृत नलि ।। दरीयाउ शुदगईं तणों दरसण पुन्य पाप नि पाइएँ । श्रीपूज्य वरयंत्र पाठ बुदमर एं आंकणी ॥ पुन्यवंत प्रज्ञावंत प्राझो ध्यानि शुद्ध मनि धरि । अगियार अंग उपांग बारह उग्र करणी आदरि । आगम नीगम अरथ अनोपम सकल सूत्र सराहीए ॥ महाव्रत पंच मूल मंडे करम आठे कापीआ । कषाय च्यारि दूर कीधी भला शुदगर भेटीया ॥ वेग वेलि समु द्रव्य सुद्धां ध्यान निर्मल ध्याइएं । श्रीपूज्य वरसंघ पाट खुदगर गुण जसवंत गाइए ||
कलश
गिरवो गितारथ ।
गाइजे गुण जांण गुंण प्रतपो चारित्र पात्र पुंन्य अंकोरे पदारथ ॥ परबत पिता प्रचंड उदर सहोद्रां ऊपनो ।
निरमल मति निधांन सकल श्रीसाध संपनो ||
रूप ऋषि जीव ऋषिवरसंघ ऋषि तेहने प्रताप अध्यकार तिम | श्रीपूज्य पाठ परसंघजी जसो जोति जग वसि ज्यम || ॥ इति श्री जसवंतजी नो छन्द ॥
३
मुनि माधव रचित जसवंत चतुर्मास
श्री वीतरागाय नमः दुहा
प्रथम जिणेसर पायकमल, पहिलं प्रणमी पाय, गछनायक गुण गायवा, मुझ मनि उलट थाय ॥१॥ मास वसंति कोकिला, देषी चकवो चंद, मोर मेघ गाजि करी पामि परमानंद ||२||
For Private & Personal Use Only
333333333333333
www.jainelibrary.org