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२२४ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति ग्रन्थ : प्रथम अध्याय
चन्द्रप्रभु स्तवन
संवत् सोसियो
भाद्रचा सुदि आठम सार ए मंगलवारे तन कीधु बालापुर मकार ए ॥ गल्ल भाव श्राणी भगति जाणी, तवन भाइ जे एक मना । कर जोडी जीवराज बोलइ काज सरसइ सप्त जिन स्तवन
॥
निलो ।
सत्तमो जिनवर उदय दिनकर सोभागी महिमा भगति विरद जेहनें अन्य स्वामी त्रिभूवन तिजो ॥ संवत सोल उगणासी बरषे विजयदशमी सोमवार ए । बाहादरपुर मांहे तवन कीधु भणतां सुरगतां जयकार ए ॥ सुबुद्धि आणी सहज बाणी जिन तणां गुण भाषी ए । ऋषि सोमजीचा सीस जीवराज बोले दया तणां फल दाषी ए ॥
इन उद्धरणों से कवि के विहारप्रदेश पर भी प्रकाश पड़ता है. कवि कब तक जीवित रहे, यह कहना कठिन है, पर इतना असंदिग्ध तथ्य है कि सं० १७०४ तक विद्यमान थे जैसा कि उपर्युक्त महत्वपूर्ण गुटके की एक कृति दीपावली- स्वाध्याय ( जो इसी कवि की रचना है और इन्हीं के शिष्य लालजी द्वारा प्रतिलिपित है) से ज्ञात होता है.
प्रश्न होता है कि ये सोमजी कौन थे ? धर्मसिंहजी की परम्परा में एक सोमजी का नाम आता है, पर कवि-काल को देखते हुए तो वह पर्याप्त परवर्ती जान पड़ते हैं. संभव है कि रूपसिंह या जसवंतजी कालिक कोई मुनि रहे हों. १२ रूपसिंह जी ओसवाल साहलेचा गोत्रीय, पिता साह पथड माता कनकांदे, जन्म सं० १६५८, संयमग्रहण सं० १६७५ मार्गशीर्ष शुक्ला द्वादशी गुरुवार, पदस्थापन सं० १६६८ मार्गशीर्ष शुक्ला अष्टमी सोमवार अहमदपुर, सं० १६६७ आषाढ कृष्णा १० किशनगढ़ में स्वर्गवास.
इसी प्रबंध में रूपऋषि के प्रशंसात्मक ३ गीत दिये हैं, जिनमें प्रथम मानूं कृत ( रचनाकाल सं० १७७१ के पूर्व का है) दूसरी रचना इन्हीं के शिष्य प्रशिष्य भोजराज और बाघ मुनि की है. ऐतिहासिक दृष्टि से इनका विशेष मूल्य है.
रूपऋषि के जीवन पट पर विस्तृत प्रकाश डालनेवाली सामग्री अत्यल्प ही है, तथापि जो भी तात्कालिक स्फुट उल्लेख हैं इनसे उनका वैशिष्ट्य झलकता है. इनसे पूर्वकालिक आचार्य संस्कृत के कितने विद्वान् और साहित्यसेवी थे ? कहने के साधन नहीं है, पर रूपऋषि संस्कृत साहित्य से भलीभाँति परिचित रहे हैं, यह एक असंदिग्ध तथ्य है. इनके द्वारा रचित "नाममाला" संस्कृत भाषा में गुम्फित प्राप्त है जिसका परिचय यहाँ कराया जा रहा है
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प्रणम्य प्रमोदेन निम्र धनार्थ, प्रसिद्ध गुरु कीर्तिमंत चिदर्थं । हास्य व्यपाठी प्रथयामि काव्येरह नाममावो ॥१॥ दयोमुक्तिधर्मो च तीर्थंकरस्या, चतुर्विंशतिश्चाहंतांज्ञातपुत्रः । चतुस्त्रिंशदेवाधिबुद्धातिशेषा, ऋषिश्चोपवासोमतिः स्वामि मौने ॥ २ ॥
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श्रीतु कागच्छति श्री पूज्यवर सिंह पद्मभूषण श्रीषरी गहि शिष्य रूपकृतनाममालायां संक्षिप्तवादः ॥
दया नाम
दया १ विमुक्ति २ महती ३ विभूति ४ । नंदि ५ प्रमोदः ६ समितिश्च ७ शांति | कल्याण कीर्ति १० रति ११ कांति १२ भद्रा १३ पुष्टि १४ प्रतिष्ठा १५ च विशिष्ट दृष्टि १६|| १३॥
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