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आलमशाह खान : लोंकागच्छ की साहित्य-सेवा : २०६
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संप्रदाय संघर्ष की स्थिति में थी तथापि ये साहित्य-रचना में लगे रहे. इतिहास के प्रति इनका विशिष्ट अनुराग था. तेजपाल इन्हीं के शिष्य थे. इनकी निम्नांकित रचनाएँ प्राप्त हैं१. नेमिनाथ स्तवन (सं० १७११) २. ऋषभजिन स्तवन (सं० १७२७ चैत्र पूणिमा जालौर) ३. शांतिनाथ स्तवन (सं० १७३३ बुरहानपुर) ४. वीर स्तवन (सं० १७३३) ५. जिन स्तवन (सं० १७६४ रतलाम) ६. अंतराका स्तवन (सं० १७३५ नादेसमा-मेवाड़) ७. श्रीसीमंधर स्तवन (सं० १७४८) अज्ञात रचनाएँ१. सत्ताईस पीठ स्वाध्याय २. हरिवंशोत्पत्तिरास ३. सोलह स्वप्न स्वाध्याय ४. सुविधिजिन स्तवन ५. तमाखू की स्वाध्याय श्रीतेजसिंह संस्कृत के भी अच्छे ज्ञाता थे. दृष्टांतशतक इनकी सर्वज्ञात रचना है. विक्रम—यह नागौरी गच्छीय आसकरण के प्रशिष्य और वणवीर के शिष्य थे. इनका 'रूपचन्द ऋषि का रास' (सं० १६६६ भादों बदि ३ बुधवार, अकबरपुर) लोंकागच्छीय इतिहास की दृष्टि से अपना स्वतन्त्र स्थान रखना है. जीवनचरित लेखन की दृष्टि से भी यह रचना महत्त्वपूर्ण है. इनकी रचनायें इस प्रकार हैं१. अमरसेन रास (सं० १६६८) २. बंगचूल का रास (सं० १७०६ भादों सुदि ११ गुरुवार किशनगढ़) दीप—यह लोंकागच्छ की १३-१४ वीं गद्दी के आचार्य के समय स्वतंत्र मत चलाने वाले श्रीधनराज की परम्परा में थे. इनकी रचनायें हैं१. सुदर्शन घेष्ठि रास २. बीर स्वामी का रास ३. पांचम चौपाई ४. गुणकरण्ड गुणावली रास (सं० १७५७)
कुलथ में इन्होंने एक धमार भी लिखी थी. धर्मदास--यह लोंकागच्छीय जीवराज के शिष्य थे. इनकी कृति 'जसवंत मुनि का रास' सं० (१६५२ भादों वदि १०, खण्डेहरा) प्राप्त है. धर्मसिंह- इन्होंने सं० १६६२ में, उदयपुर में चातुर्मास रहकर आचार्य शिवजी का ऐतिहासिक रास निर्मित किया. सं० १६८५ में इन्होंने लोंकागच्छ से अलग एक स्वतंत्र शाखा स्थापित की जो 'दरियापारी (पुरी) शाखा' के नाम से विख्यात है. इनकी परम्परा में कई स्वतन्त्र ग्रन्थकार मुनि हुए हैं. नन्दलाल -यह रतिराम के शिष्य थे. इन्होंने 'लब्धिप्रकाश चौपाई (सं० १९०३ कपूरथला) और 'ज्ञानप्रकाश' (सं० १९०६) की रचना की.
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