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१६६ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय लगाय ने कयो के मने तो २ सागरोपम रो भासे है. सुणने इन्द्र महाराज मुलकीया ने कयो आप तो मने ओलख लियो. अब आप काइं ने काइं मांगो. श्रावकजी कयो के मारे तो काइं चायना नहीं, कारण मनुष्य जन्म ने जैनधर्म हाथे आय गयो फिर काई चहिजे. इतो कहतां पिण इन्द्र नही मानीयो, श्रावकजी जरे कह्यो कि आप नाराज हो तो हो, म्हारे रोजाना ५ रुपिया कमावारो जोग है. सो आप सवा पांच या पूणी पांच कर दिरावो. इन्द्र महाराज ज्ञान सं जोयो तो मालूम हुइ के पांच में कमति वत्ती नहीं हो सके. जरे फुरमायो के आ बात तो बैठे कोयनी. श्रावकजी कयो-ठीक है. आप आनन्द सूं पधारो. इन्द्र आपरे ठिकाणे गया. श्रावकजी धर्मध्यान में मस्त है. श्रावक री तारीफ सुनने आचार्य श्री दौलतरामजी म० श्रीभगवती सूत्र री वाचणी लेवा सारू दिल्ली पधारिया ने श्रावक जी ने कयो. श्रावक अर्ज करी के चौमासो अठ करावो, मैं सेवा में हाजर हूं. श्री दौलतरामजी म. सा० चौमासो कियो ने पाना भगवती सूत्ररा वाचणी लेवण सारु काढिया. श्रावकजी विनयपूर्वक अर्ज करी के स्वामी नाथ ! भगवती सूत्र घणो म्होटो है, आप पहली दसवेकालिक सूत्ररी वाचणी लिरावो. पूज्य श्री ने थोडो विचार आयो ने फुरमायो के श्रावक जी, दसर्वकालिक री तो म्हारा पोता पड़पोता चेला ही वांचणी लियोड़ा है. श्रावकजी कयो-कृपानाथ ! आप तो घणा बहुश्रुति हो पिण ताबेदार री अर्ज तो आइज है कि आप ने दसवैकालिक री वांचणी लेणी चोखी रहेला. आखिर दसवैकालिकरी वांचणी प्रारम्भ किवी-श्रावकजी भिन्न-भिन्न तरह सं समजावण लागा. पूजजी ने घणो आनन्द आयो. चार महिनां में छज्जीवणी तक री वाचणी लिवी. उणमें ही बत्तीस सूत्रों रा भाव बताय दिया. पूज्यजी म. फुरमायो के इत्तो छ जीवणी में जाणपणो है. धन्य है आपरी तर्क बुधि ने. दलपतरायजी अर्ज करी के आखिर छठे आरे छजीवनीज रेवेला सो इतरो इणा में ज्ञान नहीं वे तो पछे वे जीव किण तरह जाणपणो कर आत्मारो कल्याण कर सके. पूज्य महाराज और श्रावक जी रा प्रश्नोत्तर आज मौजूद है. उणां ने पढियां पत्तो पडे है के दोनों महापुरुष समर्थ ज्ञानी होय ने जिन शासन दिपाय ने आछी गती में पधारिया. (६) आचार्य श्री धनराजजी म०-जातरा पोरवाल. मारवाड़रा मालवाड़ा गामरा रेवासी, कामदार वाधाजी मूथारा बेटा हा. पोतियावंद धर्म में दीक्षा लिवी ने पछे धर्मदासजी महाराज रा चेला हुवा. आप आडो आसण करने सूवता नहीं-आतापना लेता-पांचों विगयरा त्याग ने एकान्तर निरन्तर तपस्या करता हा ने एक ही चादर प्रोढवा ने राखता हा. घणा चमत्कारी, वचनसिद्ध पुरुष हुवा ने म्होटा-म्होटाने दया धर्म में पक्का बनाय ने आपरो ने परायांरो उद्धार कियो. (७) आचार्य श्री भूधरजी म.-सोजतरा निवासी, जातरा मूणोयत, माणचन्दजी रा बेटा, जोधपुर महाराजा श्री अजितसिंह जी रा फोजी अफसर हा. घणी लड़ायां जीती, डाकू चोरां ने सर किया. एक बार सिरीयारी रे घाटा में ८४ डाकुवाने घेरिया, लड़ाई फत्ते करी, डाकुवों रो सफायो कियो. उण वखत एक डाकूरा हाथ सूं आपरा उंटरे तरवार रो झटको लागण सू आधी गर्दन कट गई ने ऊंट घणो तड़फ-तड़फ ने मरियो. ऐडो प्रसंग देखने आपने ग्लानी पैदा हो गई के ओ काम खोटो. आत्मा ने डुबोवण को रास्तो है. आप सरकारी नौकरी छोड़ पोतियाबंद धर्म में दीक्षित हो गया. घणी ऋद्धि, औरत, बेटा, परिवार छोड़ ने निकलिया. बाद में श्रीधर्मदासजी म० तथा श्री धनाजी म० रा संसर्ग में आया. साची बात जाण ने सुद्ध साधुपणो लियो. पांच पांचरो आप पारणों करता हा. चार विगय रा त्यागी हा. उपदेश आपरो घणो उमदा हो जिणासू घणा भविजीवां ने सुध समकितरो दान दिरायो, घणा राजा राणा उमरावां ने समजाया. दिल्ली रा बादशाहरा साहजादीरा प्राण बचाया-उणा राजी वेने चोमासो करायो, आठ दिन पजुसणों रो अगतारो परवाना करने दिया ने बारादरी रो मकान श्रावकां रे धर्म ध्यानरे वास्ते दियो. जैन धर्मरो नाम घणो दिपायो, जिणसुं जोधपुररा दिवान भंडारी खिवसीजी आपरा पक्का भक्त वणिया ने मारवाड में विनती कर ने लाया. मार्ग में आपने घणा परीषा पड़िया. सोजत में एक भय वाला मस्जिद में मरवाने वास्ते उतार दिया पिण त्याग तपस्या रा जोग सू आल आइ नहीं. पछे उण मस्जिरो दरबार सू परवानो होय गयो के आज पछे इण मकान में श्रावक, समाइ पोसा पडिकमणा कीजो ने साधां ने उतारजो, कोइ थाने खेचल नहीं कर सकेला. वो थानक कोटरा मोहला में सोजत में हाल मौजूद है. आपरा ६ चेला हुवा. धर्म दीपाय ने स्वर्ग में पधारिया,
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