________________
पारसमल प्रसून : दीर्घदृष्टि लोकाशाह : १८३
विवरण प्रस्तुत कर हम अब पुरानी भूलों का परिमार्जन कर सकते हैं. अन्यथा आनेवाला कल हमें कदापि क्षमा नहीं करेगा. धर्मवेदी पर बलिदान सुधारक का पथ कंटकाकीर्ण होता है. उन्हें पूजा मिलती है तो प्रहार भी. मूर्ख जनता अपने वीर सुधारक का एकदम स्वागत कहाँ करती है ? ईसा को शूली पर चढ़ना पड़ता है तो सुकरात को विषपान करना होता है. पैगम्बर मुहम्मद साहब को मक्का से मदीना प्रयाण करना पड़ता है. यही बात इस सुधारक लोकाशाह के साथ हुई. चैत्यवासी एवं स्वार्थी लोग लोंकाशाह की विमल कीर्ति व उनका दिन प्रतिदिन बढ़ता प्रभाव सहन नहीं कर सके. एक दिन विषयुक्त आहार से इस वीर ने अपने प्राणों तक को समाज धर्म की बलिवेदी पर हँसते-हँसते न्यौछावर कर दिया. क्रांति की मशाल की कितनी दीप्ति ? लोकाशाह धर्म के लिये ही जिये व धर्म के लिये ही मरे. वे क्रांति की लपट बनकर आये और प्रकाशपुंज फैला गये.
REMEMAKERMEXNXNNNX
अंतिम आकांक्षा नश्वर शरीर से न सही क्रांति के अविनश्वर स्वर से वे आज भी अमर हैं. उनकी क्रांति के स्फुलिंग आज भी वायुमण्डल में इतस्ततः व्याप्त हैं. उनकी सिंहगर्जना से आज भी दिशाएँ गूंज रही हैं. लोकाशाह के क्रान्तिमय जीवन के अंगारे आज भी मंद नहीं हुए हैं. उनकी ज्योति अखंड है. आवश्यकता है कि उस क्रांति की ज्वाला में से एफ शोला फूटकर बाहर आये व चमके तथा पुनः सशक्त नई क्रांति करे ताकि आज का अज्ञान, भय, अविश्वास, द्वेष, फूट से जर्जरित विशृंखल जैन-समाज पुनः संयुक्त व सुदृढ़ बनकर इस आकुल विश्व में नवमंगलसंचारित कर सके.
Jain Education Interational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org