________________
पृष्ठ
क्रम निबन्ध
लेखक ८. उपनिषद् पुराण और महाभारत में जैनसंरकृति के स्वर
मुनि नथमल जी १. वैशालीनायक चेटक और सिन्धु सौवीर का राजा उदायन
आचार्य जिनविजय जी १०. भारतीय संस्कृति में सन्त का महत्त्व
साध्वी कुसुमवती जी ११. जैनागम और नारी
___ कलावती जैन १२. श्री एल०पी० जैन और उनकी संकेतलिपि
नथमल दूगड़ तथा गजसिंह राठौड़ १३. दक्षिण भारत में जैनधर्म
श्रीरंजन सूरिदेव १४. वृषभदेव तथा शिव संबंधी प्राच्य मान्यताएं
डा० राजकुमार जैन १५. राजस्थान में प्राचीन इतिहास की शोध
डा० देवीलाल पालीवाल १६. कालिदास और विक्रम पर एक विचार
सूर्यनारायण व्यास १७. महावीर और बुद्ध-जन्म व प्रवज्यायें
मुनि नगराजजी १८. महावीर द्वारा प्रचारित प्राध्यात्मिक गणराज्य और उसकी परंपरा
बद्रीप्रसाद पंचोली १६. रइधू साहित्य की प्रशस्तियों में ऐतिहासिक व सांस्कृतिक सामग्री
राजाराम जैन २०. धौलपुर का चाहमान 'चण्डमहासेन' का संवत् ८६८ का शिलालेख
रत्नचन्द्र अग्रवाल २१. प्राचीन वास्तुशिल्प
भगवानदास जैन शास्त्री २२. महापंडित टोडरमलजी
अनूपचन्द्र न्यायतीर्थ २३. तुम्बवन और आर्य वन
विजयेन्द्र सूरीश्वर २४. देबारी के राजराजेश्वर मन्दिर की अप्रकाशित प्रशस्ति
रत्नचन्द्र अग्रवाल २५. राजस्थानी चित्रकला
प्रो० परमानन्द चोयल २६. मध्य भारत का जैन पुरातत्व
परमानन्द जैन
MMOGGARAK ० ० ० ० ० nGum
ان
اي
۳ي
۴
من ۴
चतुर्थ अध्याय ७१३-९१६
भाषा और साहित्य १. जैन श्रागमधर और प्राकृत वाङ्मय
मुनि पुण्यविजयजी २. जैनवाङ्मय के योरपीय संशोधक
गोपालनारायण बहुरा ३. रामचरित सम्बन्धी राजस्थानी जैन साहित्य
अगरचन्द नाहटा ४. जैन कृष्ण-साहित्य
महावीर कोटिया ५. राजस्थानी जैन सन्तों की साहित्य-साधना
डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल ६. तीन अर्धमागधी शब्दों की कथा
डा० हरिवल्लभ चुन्नीलाल भायाणी ७. जैनशास्त्र और मंत्रविद्या
अम्बालाल प्रेमचन्द्र शाह ८. काहल शब्द के अर्थ पर विचार
बहादुरचन्द छाबड़ा १. राजस्थानी साहित्य में जैन साहित्यकारों का स्थान
पुरुषोत्तमलाल मेनारिया १०. प्राचीन दिगम्बरीय ग्रंथों में श्वेताम्बरीय आगमों के अवतरण
पं० बेचरदास दोशी ११. संस्कृत कोषसाहित्य को प्राचार्य हेमचन्द्र की अपूर्व देन
डा० नेमिचन्द्र शास्त्री १२. अपभ्रंश जैन साहित्य
प्रो० देवेन्द्र कुमार जैन १३. श्रागमसाहित्य का पर्यालोचन
मुनि कन्हैयालाल जी 'कमल' १४. अजमेर-समीपर्वी क्षेत्र के कतिपय उपेक्षित हिन्दी साहित्यकार
मुनि कान्तिसागर जी १५. कर्णाटक साहित्य की प्राचीन परम्परा
वर्धमान पा० शास्त्री
IM SIGG G GOGGG G6 6
MMMMG GKKK K००० Wwwxx
७८१
८२५
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org