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________________ कितने मीठे और मधुर शब्द थे उस महापुरुष के. दीक्षा के बाद गुरुदेव की छत्रछाया में दो चातुर्मास साथ-साथ किये, अजमेर और जोधपुर जोधपुर चातुर्मास के बाद हमें विहार करना पड़ा. अजमेर जाकर गुरुणीजी म० को आचार्य की एवं मुझे शास्त्री की परीक्षा देनी थी- पाथर्डी बोर्ड की. अतः गुरुदेव का शुभाशीर्वाद लेकर प्रस्थान किया. उस समय कौन सोच सकता था कि यही गुरुदेव के अन्तिम दर्शन हैं ? गुरुदेव से आज्ञा लेकर जयपुर चातुर्मास करके अलवर, देहली, शिमला, भाखड़ा नंगल होते हुए लुधियाना आचार्य महाराज की सेवा में पहुँचे. वहाँ चातुर्मास करके जम्मू-कश्मीर आदि स्थानों में पहुंचे. वहाँ भी गुरुदेव की ओर से बराबर पत्र मिलते रहते थे. हम जब तक उधर रहे, आपको हमारी बड़ी चिन्ता रही. आने जाने वालों से आप हमारे समाचार पूछते, जिनमें छोटी-छोटी बातें भी सम्मिलित रहती थीं. कश्मीर और पंजाब का विहार समाप्त कर हम सब शीघ्र गुरुदेव की सेवा में पहुँचने और साथ ही चातुर्मास करने को उत्कंठित थीं, परन्तु विधि को यह स्वीकार नहीं था. देहली में ही यह हृदय-वेधी समाचार सुनने को मिला कि गुरुदेव स्वर्ग सिधार गए. श्रीश्रानन्दराजजी सुराणा तार लेकर आए. गुरुदेव के स्वर्गप्रयाण के समाचार से दिल दहल उठा. हृदय से चीख निकल पड़ी. नेत्रों के आगे अंधकार छा गया. मानों सब कुछ लुट गया. आशाओं पर पानी फिर गया. लोकोत्तर सरलता, सौजन्य और संयम की वह महनीय सजीव प्रतिमा सहसा विलीन हो गई । आह, असीम सामर्थ्य का धनी मानव इस जगह, कितना विवश है ! यहाँ पर असहाय और क्षुद्र बन जाता है. गुरुदेव, आप उसी उदारता करुणाशीलता और सौजन्य की प्रतिमूर्ति बनकर हमारी कोटि-कोटि वन्दना स्वीकार कीजिए. साध्वी श्रीउम्मेद कुंवरजी विभिन्न लेखक : संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ : ११७ श्रद्धा पुरुष स्वामीजी महाराज सूक्ष्म अहिंसावादी, कठोर ब्रह्मचारी, परमविनीत, अत्यन्त निरभिमानी थे. उनका हृदय करुणा और वात्सल्य के अणु परमाणुओं से निर्मित हुआ था. आत्मा के उक्त स्वाभाविक गुण उन्होंने फूल - सी कोमल अवस्था में गुरुचरणों की छाया में रह कर प्राप्त किये थे. आज के जैन मुनियों को देख कर मैं मानता हूँ कि उनका जीवन परम आदर्शमय था. वे करुणा भावना से निर्मित हुए, कठोराचरण में इसे और ब्रह्मचर्य के तेज से चमके थे. मैं और मेरी प्रत्येक शुभ प्रवृत्ति का क्षण उस श्रद्धापुरुष मुनिराज श्रीहजारीमलजी महाराज के प्रति श्रद्धानत है. 704 वह सन्तपुरुष महान् इस संसार में अनन्तकाल से समय-समय पर ऐसे जगत् प्रसिद्ध सन्त महात्मा होते आये हैं जिनके प्रातःस्मरणीय नाम आज तक चले आ रहे हैं. परन्तु कुछ ऐसे भी सन्त हुये हैं जिनका नाम जगविख्यात नहीं हुआ. किन्तु उन्होंने अपनी आत्मा का परम साध्य पाकर उच्च स्थान प्राप्त किया है. ऐसे ही संतों की पंक्ति में इस सदी की महान् आत्माओं में श्रीहजारीमलजी म० भी हैं. कवि शेक्सपीयर के शब्दों में 'उनके जीवन का सदैव यही ध्येय था कि नाम में क्या रखा है 'आत्मा का उद्धार या जीवन की सफलता तो सदैव कृतित्व में है.' मेरी दृष्टि में इसी कथन को उन्होंने साकार रूप दिया था. वे हमेशा उपदेश में यही भाव दर्शाते थे कि जिनके हृदय में लेशमात्र भी दया नहीं है वे यदि ज्ञान की बड़ी 100000 Jain Education Internationat अचल सिंह, एम० पी० अध्यक्ष, अ० भा० स्था० जैन कॉन्फरेंस, देहली For Private & Personal Use Only 300 3000 300 30 30 30 30 30 383838308 30 30 30 35030030 www.jatnelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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