SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बढ़ता ही जा रहा है। चढावे वाले व्यक्ति अपने-अपने चढावे के अनुसार एकदम तैयार है। पारम्परिक परम्परानुसार तोरण के लिये आ गये है, श्री गुलाबचन्दजी मोटाजी। तोरण लगते ही शुरु हो गई प्रतिष्ठा की चहल पहल सभी यथा स्थान पहुँच गये। श्री कांतिभाई लहेरचन्द विधि विधानवाले सुध बुध खोकर तन्मय होकर प्रभु भक्ति गुण गान कर रहे है। मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी और मुनिराज श्री लोकेन्द्र विजयजी भी अपने अपने नियत स्थान पर पहुँच गये। ठीक ८/३० बजे (साढे आठ) मुनिराज श्री का इशारा पाते ही घंटे बजाये गये, तुमुल नाद हुआ, और प्रतिमाओं व गुरुमुर्ति को यथा स्थान प्रतिष्ठित किया गया। चारो ओर जिनशासनदेव की जय और गुरुदेव की जय' के नारे गुंजायमान होने लगे। दर्शनार्थीयों की अपार भीड दर्शनों के लिये उमड पड़ी। प्रतिष्ठा कार्य सम्पन्न हो जाने के तुरन्त बाद एक विशाल जनसभा का आयोजन किया गया। इस सभा की अध्यक्षता की बम्बई श्री किशोरचन्द्र जी.एम. वर्धन। इनके साथ ही श्री सुमरेमलजी लुक्कड भी पधारे थे। सभा के मुख्य अतिथि थे, बडौदा (गुज.) के श्री राजेशकुमारजी जैन, बम्बई के श्री प्रफुल्लभाई मणियार। मुनिद्वयने संक्षिप्त उदबोधन देकर मंदिर भेंटकर्ता परिवारवालोको विशेष रुप से आशिर्वाद दिया। इस विशाल जन सभा में दादा गुरुदेव श्री मद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी के विशाल छाया चित्र पर माल्यार्पण और वासक्षेप पुजन की गई। श्री पुखराजी भगवानजी परिवारवालों को उनके इस उदार कार्य के लिये साफा पहिनाकर स्वागत सत्कार कर अभिनन्दन पत्र भेंट किया गया। नस प्रतिष्ठा समारोह में नेरल नगर के श्री संघ के गणमान्य व्यक्ति पधारे थे। सभा के बीच उचित अवसर देखकर नेरल श्री संघ के सदस्योनें दोनो मुनिभगवन्तों को अपने नगर में जिन बिम्ब प्रतिष्ठा हेतू विनम्र निवेदन किया। मुनिद्वयने कुछ विचारविमर्श कर प्रतिष्ठा हेतू अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी इस खुशी में जय जय कार के नारे लगाये गये। साथ ही नेरल श्री संघ ने श्रमणी वर्या साध्वी श्री पुष्पाश्रीजी आदि ठाणा ६ को भी प्रतिष्ठा कार्य में पधारने हेतू निवेदन किया! जो स्वीकार कर लिया गया। उल्लेखनिय है, कि मोहना में प्रतिष्ठा के कार्यों में श्रमणी वर्या साध्वी श्री पुष्पाश्रीजी, श्री हेमप्रभाश्रीजी, श्री तरुणप्रभाश्रीजी, श्री रत्नरेखाश्रीजी, श्री दर्शनरेखाश्रीजी, श्री अनुभवदृष्टाश्रीजी आदि का सराहनीय सहयोग रहा। नेरल श्री संघ को प्रतिष्ठा का मुहुर्त दिया। और प्रतिष्ठा का दिन वैशाख सुद १२ संवत् २०४६ तदनुसार १७ मई १९८९ को होना निश्चित किया गया। प्रतिष्ठा का कार्यक्रम में सभा का अन्तिम समय था, इस समय मुनिराज श्री लेखेन्द्र शेखर विजयजी, मुनिराज श्री लोकेन्द्र विजयजी और साध्वी श्री पुष्पाश्रीजी को कामली ओढाई गई। अन्तमें प्रतिष्ठा समिति के सदस्यो के प्रति उनके अथक हार्दिक सहयोग के लिये आभार व्यक्त किया जाकर उनका यथोचित सम्मान किया गया। और जैन मित्र मंडल मोहना को उपहार देकर सम्मानित व प्रोत्साहित किया गया। प्रतिष्ठा के तुरन्त बाद एक चमत्कार हुआ। दादा गुरुदेव श्री मद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा.की प्रतिष्ठीत प्रतिमा की आँखो से अभीझरण हुआ। जिसको कई प्रत्यक्ष दर्शियो ने देखा। और अमीझरण में हाथ स्पर्श कर अपने जीवन को कृतार्थ किया। पूरे मोहना नगर में अमीझरणा अनन्त पाप के बोझ से जिसका ज्ञान विलुप्त हो जाता है वे कभी भी समझदारी पा नहीं सकते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012037
Book TitleLekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpashreeji, Tarunprabhashree
PublisherYatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy