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'शार्दुल' एवं मुनिराज श्री लोकेन्द्र विजयजी 'मार्तण्ड' के साथ दक्षिण प्रदेश की तरफ विहार किया और लगभग ३ वर्ष तक पूरे दक्षिण प्रदेश का भ्रमण कर गुरु गच्छ की शोभा में अभिवृद्धि कर धर्मध्वजा फहराई। अपनी अमृतमयी वाणी से जनजागरण में नव संचार किया।
दक्षिण प्रदेश से वापस आकर अपना अन्तिम चातुर्मास श्री पालीताणा तीर्थ में सम्पन्न किया । पश्चात् चैत्र वद ९ संवत २०४० को रात्रि में प.पू. मुनिप्रवर श्री लक्ष्मण विजयजी 'शीतल' म. सा. अपने शिष्य द्वय को शुभाशिर्वाद प्रदान कर इहलोक से महाप्रयाण कर गये ।
इनके महाप्रयाण के पश्चात उस परम्परा के उद्वाहक उनके दोनो शिष्योंने धार्मिक नवोन्मेष को अधिकाधिक प्रचारित और प्रसारित करने के उद्देश से श्री मोहन खेडा तीर्थ में संवत् २०४५ का चातुर्मास सानन्द सम्पन्न करके पू. आचार्य देवेश श्रीमद्विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. को अपना मंतव्य बताया कि हम दोनो मुनि गुरुगच्छ और धर्मप्रचार हेतु महाराष्ट्र जाना चाहते है, और समग्र महाराष्ट्र प्रदेश में धर्म चेतना का संदेश देकर जिन शासन व गुरु परम्परा की सेवा करेंगे।
यह मात्र मनोइच्छा थी। यह सत्प्रेरित मनोकामना श्रध्दा पुरित भक्ति से की गई मनोवांछा यथा समय पूर्ण हुई। आचार्य श्री ने शुभ कार्य को ध्यान में रखकर अपनी आज्ञा सहर्ष प्रदान की और पूर्ण सफलता की मंगल कामना की।
मुनि द्वय को महाराष्ट्र प्रदेश से निवेदन पर निवेदन प्राप्त हुए । निवेदनो में निहित विशेष आग्रह यह था कि महाराष्ट्र के कोंकण प्रदेश में "गुरु सप्तमी" का पर्वोत्सव मुनि द्वय की शुभनिश्रा में इन्दापुर में सम्पन्न हो। इन्दापुर ( तलाशेत ) के श्री संघ का प्रस्ताव उन्हे मान्य हुआ। सन् १९८८ के चातुर्मास में श्री मोहनखेडा तीर्थ में आसोज सुद ५ को फत्तापुरा निवासी शा दलीचन्दजी भियाचन्दजी एवं शा फूटरमल सेनाजो इन्दापुर ( तालशेत ) श्री संघ सहित उपस्थित होकर पूज्य आचार्य देवेश की पावन निश्रा में पुनः उस आग्रह को दुहराया कि आप श्री के आज्ञानुवर्ति तथा पू. मुनिराज श्री लक्ष्मण विजयजी 'शितल' म.सा. के सुशिष्यरत्न मुनिराज श्री लेखेन्द्र शेखर विजयजी 'शार्दूल' तथा मुनिराज श्री लोकेन्द्र विजयजी 'मार्तण्ड' म.सा. को कोंकण क्षेत्र ( महाराष्ट्र प्रदेश) में मंगल विहार करने की इन्दापुर श्री संघ की विनंती मान्य कर आदेश प्रदान करें।
पुज्य आचार्य देवेशने तनिक सोच विचार के पश्चात प्रसन्न मुद्रा में उदारता पूर्वक मुनिद्वय को इन्दापुर में गुरु सप्तमी मनाने की आज्ञा प्रदान कर दी। आचार्य श्री का आदेश प्राप्त कर मुनिद्वय ने इन्दापुर श्री संघ की विनंती स्वीकार की
इन्दापुर श्री संघ का चिर संचित स्वप्न साकार हुआ। मुनिद्वय की शुभ निश्रा में गुरु सप्तमी का कार्यक्रम सम्पन्न होगा इस विचार से इन्दापुर श्री संघ गद्गद् हो गया।
इसी समय श्री मोहनखेडा तीर्थ में साध्वी श्री मगनश्रीजी की सुशिष्या साध्वीश्री पुष्पाश्रीजी
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