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वे अभिनन्दनीय है
गृह और व्यापार का त्याग करके जो अपने आपको महावीर के मार्ग में प्रयोगों के पथ पर अग्रसर कर लेते है,
अहिंसा की प्रतिष्ठा में एकनिष्ठ होकर जो स्वयं अपना जीवन अहिंसक-जीवन जीवन-पदति की मिसाल बना लेते
है।
परिवाह लिप्सा के लिए जग जिसके फेर में पड़ा है, ऐसे असत्य को त्याग कर जो, आत्म - साक्षातकार के सत्य की शोध में निकल पड़ते
सत् का विधात और असत् का उद्भावन जिनके आचरण से दूर हो गया है। मानवता का शील और सज्जनता - भरा सौजन्य जिनके जीवन को सूरभित कर गया है और पुरुषार्थ को पंगु करनेवाली परिवाह लिप्सा से जिन्होंने अपने आपको ऊपर उठा लिया है।
ऐसे साधक सहज अभिनन्दनीय हैं।
पूज्य मुनिराज श्री लेवेन्द्रशेखर विजयजी मध्यप्रदेश की माटी के एक ऐसे ही सुरभित पुष्प हैं। उनके अभिनन्दन के क्षणों में, मैं उनके यश, दीर्घायु और सुख-शाता की कामना करता हूँ।
नीरज जैन
"कोंकण केशरी' पद प्रदान समारोह में मेरी हार्दिक शुभ कामनाएँ
दाड़मचन्द बोरा, रतलाम
"कोंकण केशरी' पद प्रदान समारोह पर हार्दिक बधाई
पनराजजी जैन शा. नेनमल पद्माजी बिजापुर (कर्नाटक)
प. पूज्य मुनिराज श्री लेवेन्द्रशेखर विजयजी म.सा. के "अभिनन्दन गन्थ" प्रकाशन के शुभावसर पर हमारा हार्दिक बधाई संदेश।
प्रकाश कावेडिया
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महापुरुषों की प्रसादी रुप में मात्र उनकी चरण रज भी घर में पड जाय तो दैन्यता नष्ट हो जाती है। घर की बेहाली २३ Jain Education International दूर ही कर जीवन की विडम्बना भी शांत हो जाती है।
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