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________________ आकाशमें २८ नक्षत्र मुकरर किये है। हरेक को अपना क्षेत्र दिया है। हर एक राशी को || नक्षत्रका क्षेत्र दिया है। जिस तरह नक्षत्रमें ग्रह फरते है उसी तरह वे राशीमें भी फिरते है। नक्षत्रकी तरह वे राशीमें भी फल देते है। ग्रहोंकी गति एक जैसी नहि है। राहु, केतु छाया ग्रह है ये वक्र गीतसे चलते है। सूर्य और चंद्र जब एक साथ होते है तब अमावस्या कहलाते है। सूर्य से चंद्र १२ अंश जाने पर एक तीथी होती है और सूर्य एक दिन में १ अंश आगे जाता है। ज्योतिष शास्त्र में ग्रह और नत्रक्ष प्रधान है। उसमें से वार, करण योग आदीका जन्म हुआ, तीथी-वार-नक्षत्र-योग-करण ये पंचाग के पांच अंग है। ज्योतिष प्रसादमें प्रवेश करनेका पंचाग मुख्य द्वार है। पंचाग ज्योतिष के आगे ज्योतिष के बड़े दो प्रवाह बहते है एक जातक ज्योतिष और दूसरा फल ज्योतिष जातक गणित इतना विशाल स्वरूप है कि कोई जातक का गणित करने को बारा मास लग जाते है। पंचाग-दशवर्ग कुंडली ग्रहोंके बलाबल भावोंकी व्यवस्था - दशा - अंतरदशा गणित अगर व्यवस्थित हो तो फल ज्योतिष बरोबर हो सकता है। एक ही कुंडलीका फल हर एक ज्योतिष भीन्न कहता है इसलिये ज्योतिष उपरकी श्रध्धा लोगोमें कम होती है। ये बहुत अटपटा विषय है। इसमें सूक्ष्म रूपसे देखा जाये तो फल कहना आसान हो जाता है। ज्योतिष शास्त्रका दूसरा भाग है मुहुर्त/भावि काल जांचनेके लिये मुहुर्त देखा जाता है। लोगोके मनकी श्रध्धा है मुहुर्त साधनेसे जिवन मार्ग सुलभ बन जाता है कोई विपत्ति नही आती मुहुर्त शास्त्रके बारेमें अगर विचारणा करनी हो तो उसमें प्रधान साधन शास्त्र है। जैन दर्शनमें आगम मुख्यत्वे है। आगमोमें ज्योतिष विषय पर व्यवस्थित निरूपण दिया गया है। खगोल ज्योतिष चक्रके स्वतंत्र आगम है। सूर्य प्रज्ञप्ति और ज्योतिष करंडक। गुरुगम परंपरा और योग्य श्रम कम होते जा रहे है। आज सहज ज्ञान ज्योतिषमें पाते है। आगम ज्योतिषके बारेमें कोई नही जानता। ये मिलना भी मुश्कील हो गया है। वेदांग ज्योतिष नामका एक ग्रंथ है। ये ग्रंथ इतना छोटा और पति महत्वपूर्ण था कि उसका अर्थबोध लगाने बड़े बड़े विद्वान पंडितोको भी बहुत परिश्रम करना पड़ा। कई वर्षों तक उसका लगाने में निकल गये। आगमो के बाद विशीष्ट बडे विद्वान आचार्योने ग्रंथोकी कई रचना की। जैन दर्शन ज्योतिष विषयमें पीछे नही है। वर्तमानमें भी अग्रस्थान विश्वकी प्रवृत्तिके दो प्रकार है। एक आत्मलक्षी और दूसरी संसार लक्षी। सामान्य जीवोंका लक्ष्य संसारलक्षी प्रवृत्ति तरफ विशेष रहता है। जैन दर्शकाका ध्येय संसार कम रहे, यह है ज्योतिष का उपयोग संसार के लिये ठीक नही है इसलिये त्याग मार्गको वफादार रहनेवाले जैनाचार्य ज्योतिका भौतिक उपयोग नही करते। । ___ मुहुर्त शास्त्र पर अनेक ग्रंथ है। जिसमें मुहुर्त मार्तंड, मुहुर्त चिंतामणी, पीयूषधारा, ज्योतिष गणितका समावेश है। कोई ऐसा देश नही है जहां ज्योतिष न हो। युरोप-अमेरीकामें राफेल एफेमरी की अच्छी प्रतिष्ठा है आज तो राफल अफेमरी मीलनी मुश्कील हो गयी है। मानव स्वभाव ही ऐसा है जो भूतभविष्य जानने की उत्कंठ आकांक्षा करता है। फल अगर अपेक्षित निकला तो उस पर विश्वास बैठ जाता है। फलादेश के लिये संहिता ग्रंथ की अच्छी नामना है। एक प्रसंग पेश करती हूं। एक राजाको ज्योतिष विद्या की परीक्षा लेने का मन हुआ। उसने प्रसिध्ध ज्योतिषकार को बुलाया और पूछा मुझे कल क्या खाना मिलेगा ये बताओ? ये ऐसे प्रश्नका उत्तर ऐसे ही देना ये विद्या का गौरव है। उसने एक कागज के टुकडे पर कुछ लिखके ३६२ सत्य कभी कडवा नही होता मात्र जो लोग सत्य के आराधक नही होते वे ही सत्य से डरकर ऐसा कहते है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012037
Book TitleLekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpashreeji, Tarunprabhashree
PublisherYatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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