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चक्र जागरण की विधि
आप सुखासन अथवा पद्मासन से बैठ जाइये। आसन स्थिर रखे मन से सारे संकल्प-विकल्प बाहर निकाल दें। स्थिरचित्त होकर दीर्घश्वास लें, पूरक करें, श्वास में ली हुई प्राणवायु को फेफड़े, हृदय से नीचे की ओर ले जाते हुए गुदामूल तक पहुँचा दें, सुषुम्ना नाड़ी का यही प्रवेश द्वार हैं, जो मूलाधार चक्र कहलाता है। इस चक्र में वायु का प्रवेश करावें और सुषुम्ना नाड़ी में ऊपर की ओर धकेलें ।
यह क्रिया बार-बार करनी पड़ेगी पहली बार में ही सफलता मिलना बहुत कठिन है, किन्तु बार-बार के अभ्यास से सरल सहज हो जायेगी।
अब मूलाधार चक्र मार्ग से सुषुम्ना में ऊपर की ओर चढ़ती हुई प्राणवायु को और ऊर्ध्वगामिनी बनावें, स्वाधिष्ठान चक्र में प्रवेश करायें
इसी तरह स्वाधिष्ठान, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञाचक्र तक प्राणवायु को ले जायें और नासिकारन्ध्र से इसका रेचन करें।
ध्यान रखें यह सभी चक्र सुषुम्ना नाड़ी में एक सीध में अवस्थित हैं अतः प्राणवायु का संचरण सुषुम्ना नाड़ी में स्तम्भ के समान ऊर्ध्वगामी होता चला जाय ।
प्रत्येक चक्र पर उनके स्वरूप में बताये अनुसार बीजाक्षरों वर्णो आदि का भी ध्यान करते चलें। इस विधि से चक्र शीघ्र ही जाग्रत हो जाते हैं।
दूसरी विधि यह है कि मूलाधार और स्वाधिष्ठान चक्र को छोड़ दें। दीर्घश्वास लेकर नाभि प्रदेश में कुम्भक करें, फिर उस प्राणवायु को अनाहत और विशुद्धि चक्र में प्रवेश कराते हुए आज्ञा चक्र पर ले जायें। इन तीनों चक्रों को पार करते सिर्फ आज्ञा चक्र पर ही प्राणवायु का स्तम्भन कर दें रोग दें और मन को स्थिर करके आज्ञाचक्र के स्वरूप में बताये गये बीजाक्षर, वर्ण, कमलदल आदि का ध्यान करें जब मन स्तम्भित होना शुरू हो जाय, ध्यान में एकाग्र होने लगे तो मन का आश्रय छोड़कर आत्मस्थ हो जायें ।
इस विधि से अनाहत, विशुद्धि और आज्ञाचक्र शीघ्र ही जागृत हो जाते है।
यह दूसरी विधि अध्यात्म योगियों के लिए अधिक हितकर है; क्योंकि नामि प्रदेश से नीचे गुदा स्थान तक का (पेडू और वह भाग जहाँ जननेन्द्रिय है) भाग काम केन्द्र है। यदि साधक के हृदय में वासना का कुछ भी अंश होता है तो काम केन्द्र भड़क सकता है, परिणामस्वरूप साधक अपनी ऊर्ध्वमुखी साधना से पतित हो सकता हैं।
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यही कारण है कि कुण्डलिनी जागरण करने वाले बहुत से साधक बीच ही में पतित होते देखे जाते हैं। वे अपने को भगवान तो कहलवाते हैं; किन्तु बन जाते है वासना के दास ।
अतः अच्छा यही है कि शक्ति एवं उर्जा प्राप्त करने की लालसा में इन काम केन्द्र अवस्थित चक्रों को छेड़ा ही न जाए। जो साधक इनको नहीं छेड़ते उनके पतित होने की संभावना बहुत कम रह जाती है।
यह सामान्य जिज्ञासा है कि अमुक चक्र जागृत हुआ अथवा के प्रश्न करते है।
इस प्रश्न का समाधान में प्रस्तुत कर रहा हूँ, ऐसी पहचान बता रहा हूँ जिससे आप स्वयं
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केन्द्र जागृत होने की पहचान
हमें इतने दिन ध्यान साधना करते हुए हो गये किन्तु हमारा नहीं। बहुत से साधक मेरे पास आते हैं और इसी प्रकार
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मन जब लागणी के घाव से घवाता है तब कठोर बन ही नहीं सकता।
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