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आपको प्रमुख सात केन्द्रों के बारे में ही बताऊँगा। साथ ही इन्हें जागृत करने की विधि और इनके जागृत होने पर जो विशेष उपलब्धियाँ प्राप्त होती हैं; उन पर भी प्रकाश डालूँगा।
(१) मूलाधार चक्र - इसका स्थान गुदामूल में, जहाँ सुषुम्ना नाड़ी का अन्त होता है, इसका आकार ४ दल वाले कमल जैसा है, वर्ण लाल हैं। कमल दल के बीजाक्षर वं, शं, षं, सं, हैं। शिखाकर स्वर्णिम ज्योति के रूप में ध्यान किया जाता है। इस पर ध्यान करने का फल आयोग्य और अध्यात्म विद्या में प्रवृत्ति के रूप में मिलता है। यह ऊर्जा केन्द्र है। साधक चक्रों में प्रवेश इसी केन्द्र से करता है।
(२) स्वाधिष्ठान चक्र - इसका स्थान नाभि और लिंगमूल के मध्य में है। कमल दल छह हैं, बीजाक्षर हैं - बं भं मं यं रं लं। वर्ण सिन्दूरी है। बिजली की रेखा के समान इसका ज्योति स्वरूप है और इस चक्र पर ध्यान करने से वासनाओं का क्षय होता है तथा तेजस्विता बढ़ती है। इसे स्वास्थ्य केन्द्र भी कहा गया है।
(३) मणिपूर चक्र - इसे शक्ति केन्द्र भी कहते हैं। इसका स्थान नाभि और वर्ण नील है इसकी ज्योति का स्वरूप बाल सूर्य के समान अरूण है यानी इस केन्द्र पर ध्यान करते समय बाल सूर्य की अरूणाभा का ध्यान किया जाता है। इस चक्र की आकृति दस कमल जैसी है। बीजाक्षर है-डं, ढं, णं, तं, थं, दं, धं, नं, पं, फं। इस चक्र पर ध्यान करने से साधक को आरोग्य, आत्म साक्षात्कार और प्रभावशीलता की उपलब्धि होती है।
(४) अनाहत चक्र - इसे तैजस केन्द्र भी कहा जाता है। इसका स्थान हृदय और वर्ण अरूण है। यहाँ अग्निशिखा का ध्यान किया जाता है। यह १२ दल कमलाकार है। बीजाक्षर है - कं खं गं घं डं. चं छं जं झं अं टं ठं। इस पर ध्यान करने से आत्मस्थता और यौगिक उपलब्धियाँ साधक को प्राप्ती होती हैं। __आत्मस्थता की दशा में साधक को एक विशेष मधुर ध्वनि हृदय स्थान से निकलती हुई सुनाई देती हैं। इसी ध्वनि को मध्यकालीन साधकों ने 'अनहदनाद' कहा है।
(५) विशुद्धि चक्र - इसे आनन्द केन्द्र भी कहा गया है। इसका कारण यह है कि इस चक्र के जागने पर कामना-विजय होती है और कामनाओं (इच्छाओं) की विजय से विशिष्ट आनन्द की अनुभूति साधक को होती है।
यह चक्र कंठ स्थान में अवस्थित है। सोलह दल कमलाकृति रूप है। इसके बीजाक्षर 'अ' से 'अ' तक १६ मातृका वर्ण है। वर्ण इसका धुम्र के समान है किन्तु इस पर दीपशिखा का ध्यान किया जाता है।।
आग्नेयी धारणा मं जो अष्टकर्म उनके प्रथम अक्षरांकित औंधे अष्टदल कमल की कल्पना की जाती है, उसका नाल कंठ प्रदेश में अवस्थित होता है और वह कमल-दल हृदय प्रदेश पर कल्पित किया जाता है। वह कमल और उसकी नाल धूम्रवर्ण की होती है, इसी कारण विशुद्धि चक्र (जब तक वह जागृत नहीं होता तब तक) का वर्ण धूम्र रहता है। और जागृत होने पर दीपशिखा के समान उज्जवल हो जाता है, जैसे निर्धूम अग्नि-शिखा।
(६) अज्ञा चक्र - इसको दर्शन केन्द्र भी कहा जाता है। यह भूमध्य में अवस्थित है। इसका वर्ण श्वेत है और शरदचन्द्र की ज्योति स्वरूप ध्यान किया जाता है। यहाँ द्विदल कमलाकृति की रचना है। इसके बीजाक्षर है - हं क्षं। इस पर ध्यान करने से अन्तर्ज्ञान की प्राप्ति और वासिद्धि की उपलब्धि होती है, साधक जो कुछ भी कह देता है, वैसा ही हो जाता है।
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अकार्य में जीवन बिताना गुणी और ज्ञानी जन का किंचित भी लक्षण नहीं।
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