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अब आइये थोड़ा सा आसनों का अभ्यास करें।
आसन शब्द से चौंकिये मत। मैं आपको ऐसे साधारण और हल्के आसन बताऊँगा जिन्हे आप सरलता से कर सकेंगे।
आसन का अभिप्राय है - शरीर को स्थिर करना, शरीर की चंचलता समाप्त करना। क्योंकि ध्यान साधना पद्धति में ऐसा नियम है कि शरीर की स्थिरता से ही मन स्थिर होता है। यदि आपका शरीर स्थिर न रहा, बार-बार आसन बदलते रहे तो मन भी चंचल बना रहेगा और जब तक मन स्थिर न होगा, स्वानन्दानुभूति भी न होगी।
योग ग्रन्थों में दो प्रकार के आसन बताये गये हैं - (१) ध्यानासन और (२) शरीरासन। शरीरासनों को स्थूल आसन और ध्यानासनों को सूक्ष्म आसन भी कहा जा सकता है। ध्यानासन पद्मासन, कार्योत्सर्ग आदि हैं, यह ध्यान में - आत्मानुभूति में सहायक होते हैं।
शरीरासनों का उद्देश्य शारीरिक और मानसिक कम्पनों में संतुलन स्थापित करना है। यह शरीर और मन को स्थिर भी करते है। साथ ही यह ध्यानासनों की पूर्वभूमिका निभाते हैं। स्थूल आसन सिध्ध होने के बाद ही सूक्ष्म आसन सिध्ध हो पाते हैं। ध्यान साधना पद्धति में शरीर आसनों का यह विशेष महत्व है।
अब मैं आपको ऐसे सरल आसन बताता हूँ जिनके द्वारा आप शारीरिक और मानसिक स्फूर्ति तो प्राप्त करेंगे ही, साथ ही साथ शरीर की माँसपेशियों और धमनियों में लचीलापन आयेगा, रक्त संबंधी विकार दूर होंगे और शरीर में स्थिरता आयेगी, यानी आप लोग अधिक समय तक एक आसन से स्थिर बैठे रहने पर भी न ऊब का अनुभव करेंगे और न थकेंगे ही। - हाँ तो, अब आप सब लोग स्थिर हो कर बैठ जायें। शरीर न अधिक तना रहे, और न शिथिल हो। मेरूदण्ड (सुषुम्ना-रीढ़ की हड्डी) सीधा रहें, उसी सीध में गरदन और कपाल
भी।
___ अब आप अपना दाहिना पांव फैलाइए, सीधा कर दीजिये और फिर सिकोड़िये, पूर्व स्थिति में ले आइये। इस तरह ९ बार करिए। इसी प्रकार बाँये पाँव और दायें तथा बाँयें हाथों
को सिकोड़िए फैलाइए। यह सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करिए। ___ अब आप अपनी गरदन को धीरे-धीरे दायीं ओर घुमाइए और फिर बाँयीं ओर घुमाइए, फिर पूर्ववत् सीधी करिए, सामने देखने लगिए। यह एक बार की क्रिया हुई, ऐसी क्रिया नौ बार करिए.
इसी प्रकार आँखों का व्यायाम भी करिए। पुतलियाँ पहले सीधी रखिए। फिर दायीं ओर, ऊपर की ओर, बाँयी ओर और नीचे की ओर घुमाकर, पुतलियों को सीधी करके एक बिन्दु पर तथा सामने किसी भी वस्तु पर टिका दीजिए। कुछ क्षण तक अपलक दृष्टि से उस बिन्दु को देखते रहिए मन को उस वस्तु से-उसके रूप, आकार, रंग आदि से संयोजित करने का प्रयास करिए। जितने अधिक समय तक देख सकें, देखते रहिए, लेकिन ध्यान रखें, आँखें थकें नहीं, उनमें पानी न आ जाए। __ हाओं और पैरों, तथा गर्दन के इस हल्के व्यायाम से नसों में लचीलापन रहता है, स्फूर्ति आती है। गरदन का व्यायाम गरदन में लचीलापन लाने के साथ-साथ ध्यान में भी सहायता होता है, क्योंकि विशुद्धि चक्र आनन्द केन्द्र कण्ठ स्थान में ही अवस्थित है, गरदन के व्यायाम से वह सजग होने को प्रेरित होता है।
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आस-पास के संसार को भूले-बिना तनम्यता मिलती ही नही और तन्मयता बिना कोई सिद्धि भी प्राप्त नहीं कर सकता।
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