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परम पूज्य शांतमूर्ति, गच्छाधिपति वर्तमान आचार्यदेवेश
श्रीमद्विजय हेमेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. का "कोंकण केशरी' पद
समारोह पर शुभाशिर्वाद - शुभसंदेश
श्री राजेन्द्र विहार दादावाड़ी
पालीताणा ता. १८/१२/eo मुझे यह जानकर अत्यधिक प्रसन्नता हुई है कि राजस्थान ने. जैन श्री संघ मोहने व्दारा समस्त कोंकण प्रदेश की भावना का स्वागत करते हुए मुनि श्री लेखेन्द्रशेखरविजयजी को 'कॉकण केशरी" पद से विभूषित किया जा रहा है।
मुनिश्री ने विगत दो वर्षों से अनेक उल्लेखनीय धर्म आयोजन किये हैं। विशेष तौर पर कोंकण की धर्मपरायण जनता सबसे अधिक लाभान्वित हुई है। क्षेत्रीय भावना को देखते हए "कॉकण केशरी' पद प्रदान समारोह कोंकण क्षेत्र की गरिमा को महिमा मंडित करती है।
आज इस शुभ संदेश के माध्यम से कोंकण की जनता को धन्यवाद दंगा कि उन्होंने दोनों मुनिवरों के माध्यम से जो विविध आयोजन करवा कर धर्मोद्योत किया है वह वास्तव में प्रशंसनीय है।
मुनिश्री लेखेन्द्रशेखरविजयजी को गौरवमय पद पर पदारुढ़ करते हुए आत्म प्रसन्नता का अनुभव कर रहा है। मेरा आशिर्वाद है कि समस्त कोंकण प्रदेश में इस प्रकार का धर्मोद्योत करते रहें। समस्त जैन संघ को धर्मलाभ।
- विजय हेमेन्द्रसूरी
2008
चंद्र और सूर्य पर छाये हुए बादलों का घेरा तो अल्पक्षणों का है। बादलों का घेरा हटते ही सूर्य
और चन्द्र स्वच्छ व निर्मल से घोतित होने लगते हैं किंतु वासना-कामना बुढापे के 'काया' पर छाये बादल कभी भी दूर होना संभव नही।
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संपूर्ण सुख में सहनेवाला मानव जब दु:ख के दावानल के बीच फंस जाता है तब वह दुःख का मुकाबला कर नहीं सकता। कारण १५
यह है कि उसकी पूर्ण शक्ति सुख और वैभव में ही समाप्त हो गई होती है। Jain Education International
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