________________
जैन समाज में प्रथम शक्ति पीठ
लेखक- चन्दनमल बी. मुथा
मोहने (कल्याण) महा.
श्री शंखेश्वर तीर्थ में इतिहास सदा सत्य का उद्गाता रहा है। अतीत, अनागत और वर्तमान में सत्य सदा एक ही रुप में जीवंत है। परिवर्तन सृष्टि का एक सहज नियम है। परन्तु इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठ अतीत के आलोक को सदा प्रकाशित व पथ प्रदर्शक रहे है। अतीत को चौविसी में श्री दामोदर स्वामी हुए हैं जिन्होंने आषाडी श्रावक की भव परम्परा अन्त अनागत चौविसी के २३ तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ प्रभु के गणघर के रुप में होगा। तीर्थंकर की वाणी सुनकर श्रावक की जिज्ञासा बढ गयी और श्री पार्श्वनाथ का स्वरुप आदि की जानकारी प्राप्तकर उसी आकार से श्री पार्श्वनाथ जिन बिम्ब बनवाकर भविष्य के अनन्त उपकारी होने वाले तीर्थंकर की भक्ति में भाव विभोर हो गया। कालान्तर में यही जिन प्रतिमा देवलोक, पाताल लोक में श्री घरणेन्द्र पद्मावती द्वारा पजित हई भगवान नेमिनाथ के समय के जरासंघ और यादवों के बीच घमासान लडाई हुई। जराविद्या के प्रयोग से ५६ कोटि यादव मुर्छित हो गये। तब श्रीकृष्णने अठ्ठम तप की तपस्या की माँ भगवती पद्मावतीदेवी प्रकट हुई। उनके द्वारा पुजित श्री पार्श्वनाथ प्रतिमा का पक्षाल कर मुर्छित यादवों पर छींटते ही चेतना आ गयी। उसी समय श्रीकृष्ण ने शंखनाद कर शंखपुर नाम से गाँव की स्थापना की। और यह प्रतिमा का जिन मंदिर भी यही बनाया गया। कालान्तर में यही तीर्थ श्री शंखेश्वर नाम से जग विख्यात हुआ। इस तीर्थ पर कई बार आक्रमण हुए अनेक बार जिर्णोद्वार भी हुआ। परन्तु महान अतिशयवन्त श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ प्रभु की महिमां युगो-युगो तक अविछिन्न रुप से रही है। गुजरात की पावन धरा पर स्थित यह महान तीर्थ आज भी अपनी वर्षों की गौरव गाथा लिए श्रद्धा का केन्द्र बना हुआ है।
गुजरात की पावन धरा पर वि.सं. २०४३ में पोष कृष्ण ५ को पुज्य मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी एवं पूज्य मुनि श्री लोकेन्द्रविजयजी म.ने श्री शंखेश्वर की भूमिपर प्रवेश किया। पोष वदि १० के मेले पर सैकडों की जन संख्या में अट्ठम तप की आराधना की हजारों श्रावको का भक्तिभाव अनोखा था। इस अतिशय तीर्थ पर पूज्य मुनिराज द्रय के अन्तरतम में एकभाव उठा कि इस पावन भूमि पर श्री पार्श्व पदमावती शक्ति पीठ की स्थापना करके इस तीर्थ को और भी महिमा मंडित किया जाय। क्यों कि आज जैन समाज में कहीं पर भी श्री पद्मावती देवी का शक्ति पीठ नहीं है। अगर शंखेश्वर में शक्ति पीठ की स्थापना हो तो वीतराग भक्ति के साथ शक्ति उपासना का भी केन्द्र स्थल बन जायेगा। पावन भूमि पर उठे विचारों ने २०४५ में १४ जानवरी १९८९ में साकार रुप करने हेतु जमीन ली गयी। और इन्दापुर तलाशेत में घोषणा की गई। १५ मई १९८९ में वैशाख शक्का १० सोमवार को भूमि पूजन एवं खात मुहूर्त किया गया। देखते ही देखते तीन मंजिला भवन निर्मित हो गया।
२०२६ में पूज्य मुनिराज श्री लक्ष्मणविजयजी 'शीतल' म.सा. ने साधना के द्वारा २४ भुजा
१२२
अपनी कोई भी वस्तु सर्वश्रेष्ठ हो तो गर्व होना सहज ही है किंतु यह सर्वनाश का कारण भी है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org