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बारीवली वेस्ट में स्थित सुमेरनगर में भिनमाल निवासी शा. सुमेरमलजी हंजारीमलजी लूंकड़ एवं तेजराजजी गोवाणी द्वारा निर्मित श्री श्रीचिंतामणि पार्श्वनाथ जैन मंदिर एवं प्रभु श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की मूर्ति की प्रतिष्ठा करवाने हेतु १०/१/९१ को मंगल प्रवेश किया। २० जनवरी को इसी सुमेरनगर में सोसायटी की ओर से श्री पार्श्वपद्मावती महापूजन का विराट् आयोजन हुआ। सुमेरनगर में इस महापूजन का यह प्रथम आयोजन था। माघ शुक्ला ५ से महोत्सव का प्रारंभ हुआ जो अनवरत विविध अनुष्ठानों के साथ माघ शुक्ल ११ शनिवार को एतिहासिक रथयात्रा का आयोजन हुआ। सैंकड़ों की जन संख्या में श्रद्धालुगण सम्मिलित थे। यह रथयात्रा भी इस क्षेत्र की अर्पूव थी। २०४७ माघ शुक्ला १२ रविवार २७ जनवरी १९९१ को प्रात: से ही श्रद्धालुगण प्रभु प्रतिष्ठा महोत्सव के लिए उत्सुक थे। "ॐ पुण्याहं पुण्याहं", "ॐ प्रियंतां प्रियंतां" की ध्वनियों से आकाश मण्डल भी गुंज उठा था। अपूर्व उत्साह था यहाँ के भक्त गणों में। सोसायटी की ओर से आयोजकों का भाव-भीना स्वागत किया गया। दानवीर श्रेष्ठीवर्य श्री सुमेरमलजी एवं धर्मपरायण तपस्वी श्रीमति सुआबाई की प्रभु भक्ति भी अपने आप में अनोखी व प्रेरणादायी है सुमेरनगर जैन समाज का योगदान भुलाये पर भी नही भूल सकते है।
श्री सुखराजजी बाबूलालजी नाहर द्वारा निर्मित घाटकोपर वेस्ट में सर्वोदय नगर अस्पताल के विशाल प्रांगण में प्रभु श्रीमदविजयराजेन्द्रसुरीश्वरजी म.सा. के गुरु मूर्ति की प्रतिष्ठा हेतु वि.सं. २०४७ फाल्गुन शुक्ला ३ रविवार १७ फरवरी १९९१ को प्रतिष्ठा का शुभ मुहूर्त था। विशेष ज्ञातव्य यह है कि यह गुरुमंदिर इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि सर्वोदय नगर अस्पताल में सर्व धर्म समन्वय की भावना से मानव मंदिर के रुप में सभी धर्म के आराध्य देव बिराजमान है। जो कि भारतीय संस्कृति और उसकी सभ्यता की याद दिलाता है। यह मानव मंदिर हमें प्रेम और भाई चारे की ओर आकृष्ट करता है। ऐसे मानव मंदिर में २० वीं शताब्दी के महान युगप्रवर्तक उपकारी गुरुदेव का मंदिर निर्माण उनके पावन आदर्शो का युगो युगो तक प्रतिपादन करता रहेगा मानवीय मूल्यों की गौरव गाथा का यह एक कीर्तिस्थंभ है ।
फाल्गुन शुका ३ रविवार को हजारों की जन मेदिनी में जय जयकार के जयघोष में विश्ववंद्य गुरुदेव श्री राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की गुरुमूर्ति प्रतिष्ठा का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।
इस धर्मयात्रा वृतांत में पूज्यश्री का विहार, उनकी धर्मयात्रा और धार्मिक आयोजनों का सजीव चित्रण करने का प्रयास किया गया है। "कोंकण केशरी' पदप्रदान के उपलक्ष्य में अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन किया जा रहा है। इतिहासने सदा सर्वदा युगपुरुषों, दानवीरों और शुरवीरों की यशोगाथाँए गायी है। पूज्य मुनिराजश्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी म. के बहु आयामी व्यक्तित्व का चित्रण इस महाग्रन्थ में शब्दों द्वारा प्रकटीकरण करने का आंशिक प्रयास किया गया है। क्यों कि धर्म पुरुषों के पावनीय चरित्रों का चित्रण करने में लेखनी सदा असमर्थ रही है। परन्तु मनुष्य सदा धर्म पुरुषों के अनन्त उपकारों के प्रति कृतज्ञ रहा है। उसी का प्रतिबिम्ब है यह अभिनन्दन ग्रन्थ।
परम श्रद्धेय श्रमण सूर्य पूज्य मुनिराजश्री लक्ष्मणविजयजी म.सा. की सातवी पुण्यतिथि चैत्रवदि ९ रविवार को भायंदर इस्ट में मनायी जा रही है। उक्त अवसर पर इस ग्रन्थ का समर्पण समारोह भी है। कोंकण केशरी पूज्य मुनिप्रवर को यह अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पण करते हुए आत्मीय प्रसन्नता का अनुभव कर रहे है। कि धर्मप्राण धर्म पुरुष के प्रति आदरांजलि के रुप में समर्पण करने का एक अहोभाग्य प्राप्त हुआ है।
"कोकण केशरी" पूज्य मुनिप्रवर आप सदैव जिनशासन एवं गुरुगच्छ के विकास में चहुमुखी योगदान प्रदान करते रहे। इसी मंगल कामना के साथ।
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मन की पंखुडीयाँ जब एक्यता के
से पृथक ले जाती है तो प्रत्येक मानवीय प्रयत्न सफळ नहीं हो सकते
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