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हैं। अवचूरि सहित है। पत्र के चारों और संस्कृत भाषा में अवचूरि लिखी हुई है। पत्र के एक तरफ मध्य में आकृति दे रखी है और पत्र में दूसरी तरफ तीन डिजाइने दे रखी हैं। जो पासमानी और लाल स्याही से तथा प्राकृति का मध्य स्वर्ण स्याही से अंकित है। बोर्डर में दो दो लाल स्याही की लकीरों के मध्य में स्वर्ण स्याही की लाइन दी है। इस प्रति में पश्चिमी भारत की जैन चित्र शैली, मुख्यत: राजस्थानी जैन कला के कूल ३६ चित्र हैं जो कि स्वर्ण प्रधान पांच रंगों में है।
परिशिष्ठट२
भीनमाल में अचलगच्छ का प्रभाव अंचलगच्छ के प्रथम आचार्य श्री आर्यरक्षितसरि एवं आपके पट्टधर श्री जयसिंहसरि ने भीनमाल में पदार्पण किया था । अचलगच्छ के नायक पट्टधरों में श्री धर्मप्रभसरि एवं श्री भावसागरसूरि का जन्म भीनमाल में हुअा था। अंचलगच्छके महाप्रभावक पू. प्राचार्य श्री कल्याणसागरसूरिने भी भीनमालको पावन किया था। भीनमालमें आपके शिष्यका चातुर्मास हा था। प्रायः महोपाध्याय देवसागरजीका चातुर्मास हुआ था। तब आप खंभात (गुजरात) में चातुर्मास स्थित थे। भीनमालसे देवसागरजी ने आपको संस्कृत पद्य-गद्य में ऐतिहासिक पत्र लिखा था-जिसमें भीनमाल एवं खंभातमें अंचलगच्छ के साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविकाओंका एवं धर्माराधनापर्वाराधनाके वर्णन प्राप्त है। श्री कल्याणसागरसूरि जब भीनमाल पधारे थे तब आपने गोडीपार्श्वनाथका स्त्रोत रचा था । स्तोत्र के आदि एवं अंतिम श्लोकों का यहां उल्लेख कर रहे हैं :
वामेयं मरुदेशभूषणतरं श्रीपार्श्वयक्षाचितम् । कल्याणावलि वल्लीसिंचनधनं श्रीक्ष्वाकुवंशोद्भवम् । आराद् राष्ट्र समागतःनरवरैः संसेवितं नित्यशः।
श्रीमच्छ्रीकर-गौडिकाभिधधरं पार्श्व सुपार्श्व भजे ॥ वामादेवीके नंदन, मरुदेशके उत्तम भूषण, पार्श्वयक्षके द्वारा पूजित, कल्याणकी परम्पराको लताको सिंचन करनेवाले मेघ, उत्तम इक्ष्वाकुवंशके राजा अश्वसेन के पुत्र, नजदीकके राष्ट्रोंके राजाओं द्वारा हमेशा पूजित, ज्ञानलक्ष्मी वाले, और लक्ष्मी देनेवाले, गौडिक नाम धारण करनेवाले उत्तम पार्श्ववाले पार्श्वनाथ स्वामीका मैं शरण लेता हूं।
भिन्नमाले सदा श्रेष्ठे गुणवच्छष्दभूषिते । पुष्पमालेतराभिख्येऽनेकवीहारसंयुते ॥ श्रीमतः पार्श्वनाथस्य स्तवनं जगतोऽवनम् ।
कल्याणसागराधीशः सूरिभी रचितं मुदा ॥ जो नगर गुणवाले शब्दोंसे अलंकृत है, पुष्पमाल जिसका अपर नाम है और जो अनेक जिन मन्दिरोंसे समृद्ध है ऐसे सदैव श्रेष्ठ भिन्नमाल नगरमें, अचलगच्छके स्वामी प्राचार्य महाराज श्री कल्याणसागरसरिने जगतके जीवोंका रक्षण करनेवाला तीर्थंकर पार्श्वनाथस्वामीका यह स्तवन आनंदपूर्वक रचा है।
(ક) આ શ્રી આર્ય કલ્યાણગોતમ સ્મૃતિ ગ્રંથ
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