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________________ [४५ ] दिया था । दक्षिण में गुजरात के प्रदेश भड़ोच तक यह राज्य फैला हुआ था । भागराजा के संसार पक्ष के काका श्रीमल्ल जो साधु हो गये थे और जिनका नाम सोमप्रभ प्राचार्य था, विहार करते-करते वि. सं. ७७५ की साल में भीनभाल पधारे थे। उन्होंने भीनमाल के राज्य परिवार को उपदेश देकर उनके पारिवारिक क्लेश को दूर किया। श्री भाणराजा की विनति पर आचार्य जी ने भीनमाल में चातुर्मास किया। भागराजा ने शत्रु जय एवं गिरनारकी संघसहित यात्रा की। उन्होंने अपने कुलगुरु शंखेश्वरगच्छ के आचार्य उदयप्रभसूरिको निमंत्रण देकर संघके साथ यात्रा करने को बुलाये । भागराजा की यह संघयात्रा बड़ी विशाल थी । पौराणिक कथानुसार भाणराजा को उक्त संघयात्रा में, सात हजार रथ, सवालाख घोड़े, दस हजार हाथी, सात हजार पालकी, पचीस हजार ऊंट एवं ग्यारह हजार बैलगाड़ियाँ थीं । भारणराजा के संघवी पदके तिलक करने के बारे में एक विवाद उत्पन्न हुआ। जिस पर भिन्न-भिन्न गच्छ के आचार्यों को एकत्रित कर इस विषय पर विचार किया । विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय किया गया कि संघवीपदका तिलक कुलगुरुको ही करने का अधिकार है। इसके बाद श्री उदयप्रभसूरिजी ने भागराजा को संघवी पदका तिलक किया । भाग राजा ने उक्त संघ में अठारह करोड़ सोनामोहरों का खर्च किया । भविष्य में भी ऐसे विषयों पर कोई विवाद उत्पन्न न हो इसलिये सभी गच्छों के प्राचार्यों ने मिलकर यह मर्यादा बांधी कि जो प्राचार्य जिस श्रावक को प्रतिबोध देकर जैन बनावे वह साधु उस श्रावक का कुलगुरु माना जायगा | कुलगुरु अपनी बही में अपने श्रावकका नाम दर्ज करेगा एवं भविष्य में उस श्रावकके द्वारा कोई प्रतिष्ठा आदि कार्य उसके कुलगुरु के द्वारा ही संपन्न कराया जायगा । यदि वे कुलगुरु कहीं दूर विराजमान हों तो उन्हें निमंत्रण देकर बुलाना आवश्यक है। यदि किसी कारणवश कुलगुरु न आ सकें तो उनकी श्राज्ञा लेकर अन्य श्राचार्य से ये कार्य संपन्न कराये जा सकते हैं । उसके बाद जो प्राचार्य जिन्होंने उपरोक्त कार्य संपन्न कराया हो वे उस श्रावक के कुलगुरु माने जायेंगे। इस व्यवहारको लिपिबद्ध किया गया एवं उस पर विभिन्न गच्छ के प्राचार्यों ने एवं श्रावकों हस्ताक्षर किये। जो निम्नप्रकार हैं: ने गच्छ का नाम नागेंद्र गच्छ Jain Education International ब्राह्मण गच्छ उपकेशगच्छ निवृत्तिगच्छ विद्याधरगच्छ सांकेरगच्छ शंखेश्वरगच्छ आचार्य का नाम श्री सोमप्रभाचार्य श्री जिज्जगसूरि श्री सिद्धसूि श्री महेंद्रसूरि श्री हरियानंदसूरि श्री ईश्वरसूरि श्री उदयप्रभसूरि इसके अतिरिक्त श्री हरसूरि आर्द्रसूरि, जिनराजसूरि, सोमराजसूरि, राजहंससूरि, गुणराजसूरि, पूर्णभद्रसूरि हंसतिलकसूरि, प्रभारत्नसूरि, रंगराजसूरि, देवरंगसूरि, देवानंदसूरि, महेश्वरसूरि, ब्रह्मसूरि विनोदसूरि, कर्म राजसूरि तिलकसूरि, जयसिंहसूरि, विजयसिंहसूरि, नरसिंगसूरि, भीमराजसूरि, जयतिलकसूरि, चंदहससूरि, वीरसिंहसूरि, रामप्रभसूरि, श्री कर्णसूरि, श्री विजयचंदसूरि एवं अमृतसूरि ने भी हस्ताक्षर किये । उक्त लिखित पर श्री भाणराजा, श्रीमाली जोगा, राजपूर्ण एवं श्री कर्ण यादि श्रावकों ने भी हस्ताक्षर किये । શ્રી આર્ય કલ્યાણૌતમ સ્મૃતિગ્રંથ Die For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012034
Book TitleArya Kalyan Gautam Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalaprabhsagar
PublisherKalyansagarsuri Granth Prakashan Kendra
Publication Year
Total Pages1160
LanguageHindi, Sanskrit, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size35 MB
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